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________________ अनकान्त वर्ष १, किरण .. भाव अहिंसा; स्वरूप अहिंसा और परमार्थ अहिम ; धीरे धीरे अहिंसा व्रतके पालनमें उन्नति करता चला देश अहिंसा और मर्व अहिंसा इत्यादि । किसी चलते जाय । जहाँ तक हो सके, वह अपने स्वार्थोंको कम फिरने प्राणी या जीवको जी-जानसं न मारनेकी प्रति- करता जाय और निजी स्वार्थके लिए प्राणियोंके प्रति माका नाम स्थल अहिंसा है, और सर्व प्रकारके प्रा- मारन-नाड़न-छेदन-आक्रोशन आदि लेशजनक व्यवहागिगयोंको मब तरह क्लेश न पहुँचानेके आचरणका गंका परिहार करता जाय । ऐसे गृहस्थ के लिए कुटन्त्र, नाम सूक्ष्म अहिमा है। किमी भी जीवको अपने शरीर दश तथा धर्मके रक्षणके निमित्त यदि स्थूल हिंसा करनी मे दुःख न देनका नाम द्रव्य अहिंसा है और मब पड़े तो उमसे उसके व्रतमें कोई हानि नहीं पहुँचनी । श्रात्मानों के कल्याणकी कामनाका नाम भाव अहिंसा क्योंकि जब तक वह गहस्थी लेकर बैठा है तब तक है। यही बात म्वरूप और परमार्थ अहिंसाके बारेमें ममाज, देश और धर्मका यथाशक्ति रक्षण करना भी भी कही जा सकती है। किसी अंशमें अहिंसाका उसका परम कर्तव्य है । यदि किसी भ्रान्तिवश वह पालन करना देश अहिसा कहलाता है और मर्व अपने कर्तव्यसं भ्रष्ट होता है तो उसका नैतिक अध पात होता है; और नैतिक अधःपात एक सूक्ष्म हिंसा है। प्रकार-सम्पूर्णनया-अहिंमाका पालन करना मर्व क्योंकि इसमे आत्माकी उच्च वनिका हनन होता है । अहिंसा कहलाता है। अहिंसा धर्मक उपासकके लिए स्वार्थ-निजी लाभ ___यापि आत्माको अमात्यकी प्रापिके लिए और -के निमिन स्थल हिंसाका त्याग पूर्ण श्रावश्यक है। संसारक मर्व बन्धनाम मुन्न होने के लिए अहिंसाका जो मनुष्य अपनी विषय-तृष्णाकी पूर्तिकेलिए स्थन मम्पूर्ण रूपम पाचगण करना परमावश्यक है, बिना प्राणियों को क्लेश पहुँचाता है, वह कभी किसी प्रकार अहिंसा-धर्मी नहीं कहलाता । अहिंसक गृहस्थके लि. वैमा किये मुक्ति कदापि नही मिल मकनी; तथापि ताताप यदि हिंसा कर्तव्य है तो वह केवल परार्थक है । इस मंमानवामी सभी मनुष्योंमें एक दम ऐमी पूर्ण सिद्धान्तम विचारक समझ सकते हैं कि, अहिंसा-त पहिमाके पालन करनेकी शक्ति और योग्यता नहीं आ का पालन करता हुआ भी, गृहस्थ अपने समाज और मकती। इसलिए न्यनाधिक शक्ति और योग्यता वाले देशका रक्षण करने के लिए युद्ध कर सकता है लड़ाई मनुष्योंके लिए उपयुक्त रीनिस तत्त्वज्ञान अहिंसाके लड़ सकता है । इस विषयकी सत्यताके लिए हम यहाँ पर एक ऐतिहासिक प्रमाण भी दे देते हैं। भेव कर क्रमश. इस विषयमें मनुष्यको उन्नत होनेकी । ___गजरातो अन्तिम चौलुक्य नृपति दूसरे भीम सुविधा कर दी है। अहिंसाके इन भेदोंके कारण उसके (जिसको भोला भीम भी कहते हैं) के समयमें, एक बार अधिकारियोंमें भेद कर दिया गया है। जो मनुष्य उसकी राजधानी अणहिलपुर पर मुमलमानोंका हमला अहिंसाका सम्पूर्णतया पालन नहीं कर सकते, वे गह- हुआ । गजा उस समय गजधानीमें मौजूद न था, म्य, भावक, उपासक, अणुव्रती, देशव्रती इत्यादि कह- केवल रानी मौजद थी। मुसलमानोंके हमलेसे शहर लाते हैं । जब तक किसी मनुष्य में संसारके सब प्रकार का संरक्षण कैसे करना चाहिए, इसकी सब अधि कारियों को बड़ी चिन्ता हुई। दण्डनायक (सेनापति) के मोह और प्रलोभनको सर्वथा छोड़ देने जितनी । के पद पर उस समय पाभ नामक एक श्रीमालिक मात्मशक्ति प्रकट नहीं होती, तब तक वह संसारमें वणिक भावक था। वह अपने अधिकार पर नया ही रहता हुमा और अपना गृह-व्यवहार चलाना हुभा आया हुभा श्रा, और साथमें वह बड़ा धर्माचरणी
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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