SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त वर्ष १ किरण ६, . और राज्यको खूब ममृद्ध और सत्त्वशील बनाया था, कनिष्ट और नीचा गिना जाता है । जहाँ प्रजामें मत्व उम धर्मके प्रचारमे देश या प्रजाकी अधोगति कैसे नहीं वहाँ सम्पत्ति, स्वतन्त्रता आदि कुछ नहीं । इस हो मकनी , " देशकी पराधीनता या प्रजाकी निर्वीर्य- लिए प्रजा की नैतिक उन्नतिमें अहिंसा एक प्रधान नाम कारणभन 'अहिंसा' कभी नहीं हो मकती। कारण है । नैतिक उन्नतिके मुकाबलेमें भौतिक प्रगनि जिन देशों में हिसा' का खूब प्रचार है जो अहिंसाका को कोई स्थान नहीं है और इसी विचारसे भारतवर्ष के नाम नफ नही जानते हैं, एक मात्र मांस ही जिनका पुरातन ऋषि-मुनियोंने अपनी प्रजाको शुद्ध नीतिमान शाश्वत भक्षण है और पशुम भी जो अधिक कर होते बननेका ही सर्वाधिक सदुपदेश दिया है । यगेपकी है, क्या वे सदैव म्वतन्त्र बन रहत है ? रोमन साम्रा- प्रजाने नैतिक उन्नतिको गौण कर भौतिक प्रगतिकी ज्यान किस दिन अहिंसाका नाम सुना था ? और कब ओर जो आँख मींच कर दौड़ना शुरू किया था, उम मांस-भक्षण छोड़ा था। फिर क्यों उसका नाम मंसार का कट परिणाम आज सारा संसार भोग रहा है। में उठ गया । तुर्क प्रजामेंसे कब हिंसाभाव नष्ट हा संसारमें यदि सभी शान्ति और वास्तविक स्वतन्त्रता और करताका लोप हुमा ? फिर क्यों उमक माम्राज्य के स्थापित होनेकी आवश्यकता है तो मनुष्योंको शुद्ध की आज यह दीन दशा हो रही है ? आयलैंण्डमें कब नीतिमान् बनना चाहिए। अहिंसाकी उद्घोषणा की गई थी ? फिर क्यों वह शुद्ध नीतिमान वही बन सकता है जो अहिमाकं भाज शतानियोस स्वाधीन हानके लिए तड़फड़ा तत्त्व को ठीक ठीक ममझ कर उसका पालन रहा है । दूसरे देशोंकी वान जाने दीजिए-वद करता है। अहिंसा तो शान्ति, शक्ति, शुचिता, दया, भारतहीके उदाहरण लीजिये । मुराल माम्राज्यकंचा- प्रेम, क्षमा, सहिष्णुता, निर्लोभता इत्यादि सर्व प्रकारजकोन कब महिसाकी उपासना की थी जिससे उनका के सद्गणोकी जननी है । अहिंसाके आचरणम प्रभुत्व नामशेष हो गया? और उसके विरुद्ध पेशवानी मनुष्य के हृदयमें पवित्र भावोंका संचार होता है, वैर. ने का मांस-भक्षण किया था जिससे उनमें एकदम विरोधकी भावना नष्ट होती है और सबके साथ बन्धवीरत्वका वेग उमड़ पाया ? इससे स्पष्ट है कि देशकी त्वका नाता जड़ता है । जिस प्रजामें ये भाव खिलतं रायवैविक उमति-अवनतिमें हिंसा-अहिंसा कोई कारण हैं, वहाँ ऐक्यका साम्राज्य होता है। और एकता ही नहीं है । इसमें नो कारण केवल राजकर्ताओंकी कार्य- आज हमारेदेशक अभ्युदय और स्वातन्त्र्यका मूल बीज पक्षवा और कर्तव्त-परायणता ही मुख्य है। है। इसलिए अहिंसा देशकी अवनतिका कारण नहीं हाँ, प्रजा की नैतिक उमति-अवनति में तत्वतः है, बल्कि उन्नतिका एकमात्र और अमाघ साधन है। पहिंसा-हिंसा अवश्य कारणभूत होती है। महिंसाकी हिंसा' शम्न हननार्थक 'हिंसि' धातु परसे बना है। भावना से प्रजामें सात्विक वृत्ति खिलती है और इसलिए हिंसा'का अर्थ होता है, किसी प्राणीको हनना जहाँ सात्विक वृत्तिका विकास है, वहाँ सत्वका या मारना । भारतीय ऋषि-मुनियोंने हिंसा की स्पष्ट निवास है। सत्वशाली प्रजा ही का जीवन श्रेष्ठ और व्याख्या इस प्रकार की है- 'पाणवियोग-प्रयोजपसमझा जाता है। इससे विपरीत सत्वहीन जीवन नव्यापार' अथवा 'पाणि दुखमाषनव्यापागे
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy