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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] कर्नाटक-जैनकवि पहले वामपचंद मुनिने 'प्राकृत ज्ञानचंद्रचरित' लिखा व्याख्यान है । मत्र, वत्ति और व्यायान तीनों ही और उसका अनवाद पूज्यपाद योगी ने किया । इसी संस्कृतमें हैं। प्राचीन कनड़ी कवियों के प्रन्थों पर में अनुवाद परसे पायणवर्णीने ई०स०१६५९ में 'ज्ञानचंद्र- उदाहरण दिये हैं । नागवर्म के 'कर्णाटकभापाभपण' चरित की सांगत्य छन्दमें रचना की । अतएव यह कवि की अपेक्षा यह विस्तृत है। 'शब्दमणिदर्पणा की अपेक्षा १७५५ के पहलेका ई०स०१६२० के लगभग हुआ होगा। इसमें विषय अधिक हैं। कनड़ी भाषा का यह अत्य १४ भट्टाकलंकदेव ( ई० स० १६०४ ) त्तम व्याकरण है। इमन 'कर्णाटकशब्दानशासन' नामक व्याकरण ५५ शान्तिकोनि मुनि ( १६१९ । गया है और अपने गुरु का परिचय इन शब्दों में इन्होंने 'शांतिनाथचरित' की रचना की है. जिसमें दिया है- "मूलसंघ-देशीयगण-पस्तकगच्छ-कंड- २३ संधियाँ हैं । मि० गइम माहबके मतमे यह प्रन्य कंदान्वय-विराजमान श्रीमदाय ला . तुलदेश के वेणुपर के वपभजिनालय में शक १४४० चार्य महावादिवादीश्वरवादिपिनामह मकलविद्र- ३० (ई० स०१५१९ :*) में बनाया गया है। जनचक्रवर्तिवल्लालरायजीवरक्षापालकत्यादि ६ पायण वणी ( १६५५ ) नंकावतविरुदावलीविराजमान श्रीमन्नारकीति- इमन 'ज्ञानचंद्रचरित' लिग्वा है। यह चारुकीलपण्डितदेवाचार्य शिष्यपरम्पगयातश्रीसंगीतपर पगिडनाचार्य का शिष्य था और बलगोल के नागपश्य मिहामनपट्टाचार्य श्रीमदकलंकदेवन"। यह ग्रंथ के वंशमें इसका जन्म हुआ था । शक मं०१५८१ (ई. शक मंवत् १५२६ ( ई०स०१६०.४ ) में रचा गया है। म.१६ । म यह ग्रन्थ ममान हा। विलंगिया तालुके के एक शिलालेखम इमकी परम्पग पनगाडिदशकं नंदियपरका रहने वाला सम्यनय. विषयक बहुत बातें मालम होती हैं। कौमुदी का कना पायगण बनी ( १... ) और श्रीदेवचन्द्र ने अपनी 'गजावलिकथं' में लिया है कि गंगपट्टणनियामी 'मन कुमारचग्नि' का कना पाया मुधापुर के 'भट्टाकलंक म्वामी' मर्वशास्त्र पढ़ कर महा गान ये दोनों पायगण वणी में जदा मा म हान है। ___पर्व कवियोमम जिनमन, गगाभद. अकलंक, कविद्वान हुए । इसके बाद प्राकृत, मंकन. मागधी कन्या नकोत. नाकर (भग्नेश्वरचम्ति-गना), कम वन्द. दि पड़भाषाकवि होकर उन्होंने कर्नाटक ब्याकग्गा प्रभाचंद्र. मामदयका टमने मग्गा किया है। की रचना की और प्रसिद्धि प्राप्त की। अपने ग्रंथ में इन्होंने पंप, होन्न, रन्न, नागचंद्र. तानचन्द्रग्नि ' मांगन्य छन्दमें है । ममं । नमिचंद्र, गद्रभट्ट, अग्गल, अंडय्य, मधुर आदि कवियों अध्याय या मन्धियों और ३३३४ पहा है। हमम नप. का म्मरण किया है। श्वर्या करके मोक्ष प्राप्त करनेवाले चंद्रवंशी गजा ज्ञान___'कर्णाटकशब्दानुशान' कनड़ी भाषाका व्याकरण चन्द्र' को कथा है । ग्रंथारंभमें मिद्ध,मरम्वनी, गणधर है। इसमें ४ पाद और ५९२ सूत्र है । इन मंत्रों पर यहां मन १.१५ सौर सीकर गयी ५:- दिया। भाषामंजरी नामकी वत्ति और मंजगमकरंद नामका तक क्या ग्रन्थकी ममापिका समय कम० १.१..। - सम्पादक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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