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________________ ३३६ अनेकान्त वर्ष १, किरण ६. की स्तुति करके भद्रबाहु, कविपरमेष्ठी, कुण्डकुन्द, ४८ नागव (ल० १७००) मूलमंघ ही श्रेष्ठ है यह सिद्ध करके दुष्ट (?) श्वेताम्बर इसने 'माणिकस्वामिचरित' की रचना की है । लोगों पर जय प्रान करने वाले उमास्वाति X मुनि इसका पिता कोटिलाभान्वय का 'सोडेसेट्टि' था और अकलङ्क, भोजराज, अमावस्याके दिन पूर्णिमा कर माता 'चौडांधिका' । यह ग्रंथ भामिनी षट्पदीमें निम्बा दिखाने वाले प्रभाचन्द्र, पज्यपाद. कोल्हापुरके माघ- गया है और इसमें ३ मंधियाँ और २९८ पद्य है। हम नन्दि, लब्धि-गांमट-त्रिलोकसारके कना नेमिचन्द्र, में 'माणिक्यजिनेश' का चरित्र निबद्ध है, जिसका मा. अद्वैनमनध्वंमक शुभचन्द्र, नच्छिष्य चारुकीर्ति, गंश यह है-देवेन्द्रने अपना माणिकजिनबिम्ब (प्रनिगोम्मटसार पर सवालाख श्लोकपरिमित सं- मा)गवणपत्नी मन्दोदरी को उसकी प्रार्थना करने पर म्कत टीका* लिखने वाले पंडिनराव, पंडितार्य, दे दिया और वह उसकी पूजा करने लगी। रावणवध देवता जिनकी पालकी उठाते थे वे पंडित मुनि ललित- के बाद मन्दोदरी ने उस मूर्तिको समुद्रगर्भमें रस्य कीर्ति, बलात्कारगण के विद्यानन्दि, काणुरगणके देव- दिया । बहुत समय बीतने पर 'शंकरगंड' नामक राजा कानि और लक्ष्मीमन का स्मरण किया गया है। एक पवित्रता बी की सहायतासे उक्त मूर्तिको ले आया ४७ पमनाम (ल. १६८.) और कोल्लपाक्ष नामक ग्राममें उसकी स्थापना का मने 'पद्मावतीचरित' की रचना की है. जिसकं ग्रंथके प्रारम्भमें माणिकजिनकी और फिर सिद्ध, मा 'जिनदत्तगयचरित' और 'अम्मनवरचरित' नामा- स्वती, गणधर, यक्ष, यक्षी की स्तुति है । तर हैं। कवि ने इसमें अपना और अपने आश्रयदाता ४. चंद्रशेखर ( ल० १७०० ) का भी परिचय दिया है। तुलव देशमें 'किन्निग' नाम इसने 'रामचंद्रचरित' का कुछ भाग लिखा है का गजा हुआ और उसके बाद 'तिरुमल राव' जिस जिसकी पनि पद्मनाभ ने ई० म० १७५० में की है। का निरूमल मामन्त' भी कहते थे, गद्दी पर बैठा । पद्म- यह कवि 'लक्ष्मणवंग' राजाका आस्थानी (दरबारी) नाम इम राजा का कोषाध्यक्ष था। 'पद्मावतीचरित' था और पद्मनाभकी अपेक्षा विशेष प्रमिद्ध कवि था। सांगत्य छंदमें लिखा गया है। इसमें १२ मंधियों और प्रन्ध अपर्ण रहने का कारण उसका असमय मरगा १६७१ पा है और यह पार्श्वनाथ की शामनदेवी जान पड़ता है। यह प्रन्थ हमको अपूर्ण ही मिला है। पद्मावती का चरित है। ५. देवग्म ( न०१७४० । र यह क्या तस्त्रार्थसूत्र के कता में भिन्न कोई कसर उमाम्याति यह वद्धमान भट्टारक का शिष्य था और इसने हैं । इन्होंने श्वेताम्वर्ग पर का क्या विजय प्राप्त की और किम 'श्रीपालचरित' की रचना की है, जो सांगत्य छंद में साहित्य की रचना की ? इन सब बातों की खोज होनी चाहिये। है। इसकी एक अपर्ण प्रति मिली है जिसमें केवल दो -सम्पादक संधियाँ हैं। . यदि सचमुच ही गोम्मटसार पर मस्कृत में ऐसी कोई महती टीका लिखी गई है तो उसका, उसके लेखक के विशेष परिचयके साथ, . शीघ्र ही पता लगाया जाना चाहिये। -सम्पादक * निजाम स्टेट बकुल्पाक नामक तीर्थस्थान ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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