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________________ ३३४ अनेकान्त वर्ष १, किरण ६,७ ___ 'सपशास्त्र' वाधिक पट्पदी के ३५६ पद्योंमें हैं। पिता का नाम नागय्य है । यह ग्रंथ ई०स० १५२८ में इसमें पिष्टपाक,कलमान्नपाक, शाकपाक आदि विषयों लिखा गया है। का प्रतिपादन है । संस्कृत सपशास्त्र में जो कहा गया है, ४२ रत्नाकर वणी (ई० स० १५५७ ) वही कवि ने इसमें लिखा है और नल-भीम-गौरी के इसन 'त्रिलोकशतक', 'अपराजितशतक', 'भग्नमतानमार कहने की प्रतिज्ञा की है। श्वरचरित' आदि ग्रंथ लिखे हैं। इसके रत्नाकरसिद्ध और रत्नाकरअण्ण नाम हैं और निरंजनसिद्ध इसका 'नेमिजिनेशसंगति' में ३५ सन्धियाँ और उपनाम है। यह वेणुपुर ( मूडबिदिरी ) का रहनेवाला १५३८ सांगत्य छन्द हैं । इसमें नेमितीर्थकरका चरित्र था और इसके दीक्षागुरु देशीयगणाप्रणी 'चारकोनि वर्णित है । मंगलाचरणके बाद तत्त्वार्थवृत्ति (सूत्र ?) योगी' तथा मोक्षगा 'हंसनाथ' थे । हंसनाथकी आज्ञा के उद्धारक गद्धपिच्छाचार्य , चतुर्विंशतितीर्थकर- से इसने भग्तश्वरचरित' की रचना की है। कथाकार कविपरमेष्ठी, गणभद्र, कलियुगगणधर माघ- देवचंद्र की 'राजावलिकथ' में इस कविके विषय नन्दि, छन्दोलंकार-शब्द-शास्त्रकी प्रत्यक्ष मूत्ति देवनन्दि, में एक कथा दी है। बौद्धों का पराजय करने वाले अकलंक, म्वगुरु प्रभेन्दु, त्रिलोकशतक' में १२८ श्लोक हैं। इसमें जैनधतशिष्य श्रतमुनि और उनके सहादर विमलकीर्ति का मानमार लोकस्थितिका वर्णन है। म्मरण किया है। 'अपराजितश्वर-शतक' में १२७ पद्य हैं। प्रत्येक 'सम्यक्त्वकौमुदी' में १० मंधियाँ और ५२ पद्य के अन्तमें अपराजितेश्वर शब्द आया है। इसमें पद्य ( उहंड पटपदी ) हैं । अहंदासश्रेष्ट्री की स्त्रियों ने नीति,वैराग्य, अात्मविचार आदि विषय प्रतिपादित हैं। कही हुई कथायें सुन कर मम्यक्त्व प्राप्त किया और भरतेश्वरचरित' में ८० मंधियाँ और ५९६९ पदा फिर दीक्षा लेकर म्वर्गलाभ किया, यही इसका कथा- हैं। भग्तेशवैभव और भरतेशसंगति भी इसे कहते हैं। नक है । मंगलाचरण के बाद गौतम, देवनंदि, गुण- इसमें तत्त्वोपदेशप्रसंगमें कुछ जैन ग्रंथोंके नाम दिये हुए भद्र, जिनमेन, गरल, कोंडकुन्द, भुजबलि, हेमदेव, हैं जो इस प्रकार है-कुन्दकुंदाचार्यकृत प्राभत और श्रमुनिचन्द्र, पद्मनभ, मयरपिच्छ नन्दिमित्र, समन्तभद्र, नप्रेता, अमृतचंद्रसरि कृत समयसारांक नाटक,प्रभाकर केशव, माघनन्दि,अकलंक, भद्रबाहु, कुमुदेन्दु, प्रभेन्दु भट्टकृत कथा (?), पद्मनंदिकृत स्वरूपसम्बोधन, पूज्यका स्मरण किया गया है। पादकृत समाधिशतक, ज्ञानवर्णन, योगरत्नाकर,सकला४१ पनकवि (ई०स० १५२८) निधि, रत्नपरीक्षा, आराधनासार, सिद्धान्तसार, इष्टोप___ इसका बनाया हुमा 'वर्द्धमानचरित' है। यह देश, अध्यात्मनाटक, भष्टसहस्री, नियमसार, अध्यात्मसांगत्य छन्द में है और इसमें १२ सन्धियाँ हैं । इसके सार । भवसेन नामक एक गुरुका नाम भी आया है। • इन माचार्य की जिन शनों में जा उपख है बर मा यो ४३ पूज्यपाद योगी (ल०१६००) का न्यो भविफन अनुवाद के मा प्रकाशित होना चाहिये। पायणवर्णी के 'झानचंद्रचरित' से मालूम होता है -सम्पादक कि इसने कनसी पट्पदी में 'झानचंद्रचरित' लिखा है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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