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________________ बैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] कर्नाटक-जैनकवि . . . . . . . . कर्नाटक-जैनकवि ... .. .... ........ .... .... ... [ अनुवादक-श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी ] (किरण ३ से आगे) १० मंगरस नीसरा (ईस्वी सन १५०८:) नाथपुराण के कर्ता 'नागचंद्र', नमिचरिन के का इसके पितामह का नाम 'माधव' और पिता का 'कगणप', लीलावतीके कर्ता नमि' और हरिवंशाभ्यनाम 'विजयभूपाल' था, जो होयसल देशान्तर्गत होस- दयके कर्ता बन्धुवर्म' का स्मरण किया है। अपने इतर वत्ति प्रदेशकी गजधानी कलहल्लि का महाप्रभु था ग्रंथों में इसने 'अग्गल' और 'सुजनोत्तंस' का भी स्म और जिसके उद्धव कुलचूड़ामणि, शार्दूलाङ्क उपनाम रण किया है। 4। यदवंश के महामंडलेश्वर चेंगालनप के मचिव 'जयनपकाव्य' परिवद्धिनी षटपदी में लिप्वा गलमे यह उत्पन्न हुआ था। इसकी माता का नाम गया है, जिसमें १६ मन्धियाँ और १०३७ पद्य है । इस दविले' था। इसके गरु का नाम 'चिक प्रभेन्दु' था। में कुरुजांगल देश के गजा गजप्रभदेवके पुत्र जयनृप यभराज और प्रभुकुलरत्नदीप इमके उपनाम थे । की कथा वर्णित है । कविन लिम्वा है कि यह परित विजयभूपाल' विशेषणसे मालम होता है कि यह बड़ा पहले जिनसेन (?) ने रचा था और दूधमें शर्करा के भारी वीर योद्धा था। इसके बनाये हुए जयनपका. मिश्रणके ममान संस्कृतमें कनड़ी भाषा मिला कर इस च्य, प्रभजनचरित, श्रीपालग्नि नमिजिनेश पन्थकी यह रचना की गई है । इसमें गणभद्र, कवि. मंगनि और मपशास्त्र नामक ग्रन्थ हैं । इमन मम्य परमेष्ठी, बाहबान, अकलंक, जिनमेन,पग्यपाद. प्रमेन्द +पकौमुदी की रचना ई०म० १५८८ में की है । इमन और नत्पत्र श्रनमुनिका स्मरण किया गया है। अपने पूर्ववर्ती कवियों से आदिपगणके कर्ता पंप. श्रीपालनग्नि' मांगत्य इन्दोर मम जिनचरितके को 'मन'. चन्द्रभपगणक को मान्धया और १५२६ पद्य है। हममे पगगकिणी परीकं गजा गणपाल के पुत्र की कथा है, । मंगलाच. श्रीविजय', पुष्पदन्तपुराणकं कर्ना गणवर्म'. अनन्न गके बाद मभद्र, पज्यपान, मद्रवाह पाहाल. गौतम. नाथचरित के कर्ता 'जन्न'. धर्मचरिनके कर्ता 'मधुर', गगणभद्र और कविपरमेष्ठी की प्रशंमा की गई है। शान्तीशचरित के कर्ता 'पोन्न', रामायण और मल्लि 'प्रमंजनग्नि ' की एक अपूर्ण पनि उपलब्ध ___पहले सन १६८० तक के कवियों का हाल मा चुका था, है। इसमें शुभदेश के मंभापरनरेश देवमेनके पत्र फिर यह सन् का नया सिलसिला शुरु किया गया, जिमकव प्रमंजनकी कथा है । पंथारंभमें जिन, मध्यमगुरु, उपा. कारण मालुम नहीं हो सका। क्या इन कवियोका हाल पहले मिलसिले में घट गया था प्रथवा मूल पुस्तकमें भी ऐसा ही क्रमभग ध्याय, साथ, सरस्वती. यक्ष, नवकोटि मुनि और स्व. पाया जाता -सम्पादक गुरु चिक प्रभेन्दु का स्मरण किया गया है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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