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________________ ३३२. अनेकान्त वर्ष १, किरण ६.७ हिन्दी उर्दू-- जौ लौ देह तरी काहू गंग मौं न घरी जौ लौं, "खुशनसीबी है फ़िदा हुब्बे वतन पर होना । जरा नाहिं नरी जासौं पगधीन परि है। नाशेहस्ती तो बहरहाल है मिट जाने को।' जो लों, जमनामा वैरी देय ना दमामा जो लौं, मानै कान रामा बुद्धि जाइन बिगरि है। ऐब यह है कि करो ऐब हुनर दिखलाओ। ती लौ मित्र मेरे निज कारज मँवार ले रे, वरना याँ ऐब तो सब फ़ोबशर करते हैं । पौरुप थकेंगे फेर पीछे कहा करि है। __ x x -हाली' अहो आग आयें जब झोंपरी जरन लागी, एक दिन था जब मयेजरअत से दिल सरशार था कुआ के ग्यदाए तब कहा काज सरि है। बजदिलीसे५१ हमको नफरत वीरता से प्यार था ।। x भूधरदास। x x -'नाज' "जिहँ लहि पनि कछ लहनकी श्रास न मनमें होय । अपनी नज़र में भी याँ, अव तो हकीर१३ हैं हम । जयति जगत पावन करन 'प्रेम' वरण ये दोय ॥" xxx बेगैरती१४ की यारो ! अब जिन्दगानियाँ हैं । पारस मणि के मंगत काञ्चन भई तलवार । x -'हाली' 'तुलसी' तीनों ना नजे धार-भार-आकार ॥ "हम ठोकरें खान हुए भी जोश में आत नहीं । मन अहग्न अरु शब्द घन सद्गम मिले सुनार। जड़ हो गये ऐसे कि कुछ भी जोश में आते नहीं ।।" 'तुलसी' तीनों ना रहे धार-भार-आकार ।। ___ X X तुलसीदास । सका हाथ जब बन गये पारसा१५ तुम । "मींची थौ हित जान के इन की उलटी रीत । नहीं पारसाई यह है नारसाई१६ ॥ सिर उपर रस्ता कियौ यही नीच की प्रीत ।। x x -'दाली' नीर न डोबै काठ को कहां कौन सी प्रीत ? "कालों के सर पै वार है गोरों के बट का। अपनी सांचौ जानकै, यही बड़न की गत ॥" फल पा रहा है मुल्क यह आपस की फट का ।। - X X X मैं समझता था कही भी कुछ पता तंग नहीं। जो कहिये ना झठी जो सुनिय तो सनी । आज 'रॉकर' त मिला तो कुछ पता मेग नहीं । म्युशामद भी हमने अजब चीज़ पाई ।। तिनका कबहुँ न निंदिये जा पॉवन तर होय। X x -'हाला । कबहूँ उडि ऑखिन परै पीर धनी होय ॥ “किसीकी कुछ नहीं चलती कि जब तक़दीर फिरती है' ___ x x कबीर । - X X X विचारमें तो मवीर ही हैं, शुरू किया काम अधीर ही हैं। "जो परार पै पानी पड़े मुत्तसिल११। विपत्तिमें जोबनते सुधीर हैं, प्रसिद्ध वेही जगदेक वीर हैं। तो बेशुबह घिसजाय पत्थर की सिल ॥" __ x x -दरबारीलाल। xxx ईति-भीति व्यापे नहिं जगमें, वृष्टि समय परहुआ करे, - धर्मनिष्ठ हा कर राजा भी न्याय प्रजाका किया करे। १ महोभाग्य. २ बलिदान. गंत्रम. ४ मस्तिचकित रोग-मरी-दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शान्ति से जिया करे, ५६ हालतमें. ६ दोष. ७ गुणा. = नहीं तो यहां. : व्यक्ति त परम अहिंसा-धर्म जगत में फैल सर्वहित किया कर। मनुष्य. १० वीरताके नसे. ११ पूर्ण. १२ कायरता. ही १४ कार्मी. १. साधु त्यागी, १६ अप्रामि. १७ गलहर । x 'युगवीर'
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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