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________________ भनेकान्त वर्ष १, किरण ६,७ - - THE INDIAN HangitatinAHAPANS Po पुरानी बातों की खोज ATHA R- STED (१७) उसे बुद्धिपूर्वक संकल्प करना चाहिये । वर्षाकाल मे चातुर्मास का नियम मार्ग प्रायः जीवजन्तुओं से घिरा रहता है, इससे श्राबहुत प्राचीन कालस माधुजन वर्षाकालमें, जिस चा पाढी पौर्णमासी से कार्तिकी पौर्णमासी तक एक जगह तुमाम अथवा चौमामा कहते हैं, अपने विहारको ठहरे रहना चाहिये-विहार अथवा पर्यटन नहीं करना गककर एक स्थान पर ठहरतं आए हैं और इसमें उन चाहिय। की प्रधान दृष्टि अहिंमाकी रक्षा रही है । इस नियम हाँ, बुद्धदेवने शुरू शुरू में अपने साधुओं के लिये का पालन केवल जैन माध ही नहीं बल्कि हिन्दुधर्मके चातुर्मास का कोई नियम नहीं किया था, उनके साध माधु भी किया करते थे। उनके शास्त्रोंमें भी इस विषय वर्षाकाल में इधर उधर विचरते और विहार करते थे की स्पष्ट श्राज्ञाएँ पाई जाती हैं; जमा कि अत्रि ऋषि तब जैनों तथा हिन्दुओं की तरफ से उन पर आपत्ति के निम्न वाक्योंसे प्रकट है: की जाती थी और कहा जाता था कि ये कैसे अहिंसा"वर्षाष्वेकत्र तिष्ठत स्थाने पुण्यजलावते । वादी साधु हैं जो ऐसी रक्त-मांस मय हुई मेदिनी पर श्रान्मवत्सर्वमतानि पश्यन भिक्षश्वरेन्महीम, विहार करते हैं और असंख्य जीवों को कुचलते हुए चले जाते हैं । इस पर बौद्ध साधुओंने अपनी इस असनि प्रतिबन्धे तु मासान्वै वार्षिकानिह। निन्दा और अवज्ञाको बुद्धदेव से निवेदन किया और निवसामीनि संकल्प्य मनसा बद्धिपर्वकम ॥ उस वक्त से बुद्धदेव ने उन्हें भी चातुर्मास का नियम पायण पावृषि प्राणि कुलं वर्त्म दृश्यते । पालन करने की आज्ञा दे दी थी; ऐसा उल्लेख बौद्ध भाषाढचादिचतुर्माम कार्तिक्यन्तं तु मंवसेतो. साहित्य में पाया जाना है। यह उल्लेख इस समय मेरे -यतिधर्मसंग्रह। मामने नहीं परंतु इसका हाल मुझे विद्वद्वर पं० बेचरअर्थात्-वर्षाकाल में भिक्षुको पुण्य जल से घिरे दासजी से मालूम हुआ है, जो प्राप्त होने पर प्रकट हुए किसी एक स्थान पर रहना चाहिये और सर्व कर दिया जायगा । अस्तु । प्राणियोंको प्रात्मवत समझते हुए पृथिवी को देख- दिगम्बर सम्प्रदायमें इस वर्षाकालीन नियमकोक्या शोध कर चलना चाहिये ॥ 'कोई खास प्रतिबन्ध न मर्यादा है, इसका कुछ पता हालमें मुझे 'भगवती आ. होने पर वर्षा काल के महीनों में मैं यहाँ रहूँगा ऐसा गधना' की अपराजितमरि विरचित 'विजयोदया'
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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