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________________ वर्ष १, किरण ३१८ * बूढ़ी चंदेरी और हमारा कर्त्तव्य * [लेखक-धर्मरत्न पं० दीपचंदजी वर्णी ] पाठक 'अनेकान्त'की दूसरी किरणमें 'देवगढ़' का १०-१२ मीलके फासले पर स्थित है । ३० अप्रेल सन् हाल पढ़ चुके हैं, मैं भी अर्से से वहाँ के मंदिर-मूर्तियोंकी १९२४ को मुझे इसके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। भूरि भूरि प्रशंसा पत्रों द्वारा तथा दर्शकोंके मुखसे इस पुगतन क्षेत्रका पता मुझे चंदेरीके एक बालकने सुनता पा रहा था और उमसे प्रेरित हो कर मुझे भी दिया था, और जब मैंने वहाँ के दर्शनों की इच्छा प्रकट वहाँ के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। दर्शन करने की तो चंदे के भाईयोंन मुझे यह उगवा दिया कि पर मुझे उस सुनी हुई प्रशंसाका मूल्य मालूम पड़ा स्थान बहुत दूर है, वहाँ कुछ नहीं है, जंगल है, शेर और मैंने उन मंदिर-मूर्तियोंको उससे कहीं सहस्रगणी लगता है, रास्ता नहीं है, इत्यादि । परंतु जब मेग प्रशंसाके योग्य पाया है। परंतु उनके दर्शनसे जितना अत्यामह देखा तो १०-१२ भाई बैल गाड़ियाँ लेकर आनन्द हुआ उससे अधिक दुःख तथा खेद समाजकी मेरे साथ हो लिये । सौभाग्यसे उन दिनों मार्ग सुधारा उदासीनता और अकर्मण्यता को देख कर हुआ, गया था, क्योंकि कुछ ही दिन पहले ग्वालियरनरेश जिसके कारण वह अभी तक उस पवित्र क्षेत्र की वहाँ शेरके शिकार को गये थे और उन्हें वहाँके अनि रक्षार्थ कुछ भी उल्लेखयोग्य कार्य नहीं कर सका है। शय अथवा दैवयोगसे शिकारकी प्राप्ति नहीं हुई थीमिःसन्देह समाज की यह उदासीनता और अकर्मण्यता वे दो तीन दिन यों ही भटक-भटकाकर खेदित हु। उसके प्राचीन गौरव को लुप्त करने के लिये बहुत बड़ा लौट आये थे। इसमें शक नहीं कि रास्ता खराब तथा काम कर रही है और इससे धर्म तथा धर्मायतनोंके जंगली है, जंगली जानवरोंका संवार भी रहता होगा; प्रति उसके भक्तिभाव की स्थिति बहुत ही दयनीय क्योंकि यह स्थान 'अब बिलकुल जनशून्य बिया जान पड़ती है। प्रस्तः आज मैं अनेकान्तके पाठकों बान जंगल हो गया है। परन्तु ऐसा नहीं है कि वहाँ : को एक ऐसे ही दूसरे क्षेत्रका परिचय कराना चाहता जा न सके। हूँ जो देवगढसे कुछ कम महत्व नहीं रखता और हम लोग लगभग १२ बजे दिनके वहां पहुंच गा, जिसकी हालत और भी ज्यादा शोचनीय हो गई है। थे। पहुँचते ही प्रथम एक भग्नावशेष कोट मिला यह क्षेत्र है 'बूढ़ी देरी'। उसमें होकर आगे बढ़े, तब दूसरा कोट मिला, फिर चंदेरी के नामसे, ययपि, हमारे भाई भाम तौरसे चौर भागे बढ़ने पर तोसरा कोट मिला । इन कोटी परिचित हैं और जो लोग थोवनजी मादि की यात्रा की दीवारें पत्थर की है जो गिरते गिरते मनुष्य के को जाते हैं वे रास्में चन्देरीके भी जरूर दर्शन करते बराबर रह गई हैं। इन्हें पारकर जामंदर गए तो देखा है। परंतु 'पदी देरी से, जिसे राजा शिशुपालकी कि जहाँ तहाँ बड़े बड़े चौकोर तथा लम्बे पत्थरोंके ढेर 'पुरानी चंदेरी' भी कहते हैं,बहुतही कम भाई परिचित- के ढेर पड़े हुए हैं। हम लोग यह समझकर उनपर चढ होंगे। यह क्षेत्र जङ्गली को रास्ते पर वर्तमान चंदेरीमे गए थे कि पुराने इमारती पत्थर होंगे जो कि इमारतों
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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