SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्र, वीरनि०सं०२४५६] अनेकान्त पर लोकमत ३१५ 'अनेकान्त' पर लोकमत ५२ पं०हंसराजजी शर्मा, बिलगा(जालंधर)- विद्वानोंसे भी मैं सविनय निवेदन करता हूँ कि वे ""अनेकान्त' के दर्शनका सौभाग्य प्राप्त हआ। सज्जन धन और ज्ञानका दिल खोल कर इस महा अनेकान्त पत्ररूप भास्करकी इन चार किरणों ने ज्ञान सत्रमें पर्याप्त रूपसे उपयोग करें।" मेरे हृदय को इतना प्रफल्लित किया है कि उसका ५३ पं० प्रज्ञारत्नजी, न्यायतीर्थ, धर्मशास्त्री' वर्णन करना इस मूक लेखिनी के सामर्थ्य से (भूतपूर्व कमलकिशोर), स्वरईबाहिर है। इसमें सन्देह नहीं कि यदि आपके सम्पा- "मैंन 'अनेकान्त'(सूर्य)की ४ किरणोंसे जबजैनपत्रों दकत्व में नियमित रूपसे इस पत्र का प्रकाशन को (तुलनाकरके)देखा तोतमाम जैनपत्र दीपकिरण होता रहा तो वर्तमान जैन-समाजमें चिरकाल से नजर आये। मुझे इन किरणोंसे जोरोशनी मिली है घुसा हुआ मोहान्धकार दूर होगा, इतना ही नहीं । उससे मेरा इतिहास-सम्बन्धी अंधकार दूर होता किन्तु जैनधर्म का सदियोंसे खोया हुआ तात्विक जाता है । यह पत्र यदिमामाजिक झगड़ों में बिना और व्यावहारिक गौरव भी उसे फिरसे प्राप्त होगा। पड़े आगे बढ़ा तो मुझे विश्वाम है कि संसारमें एवं प्राचीन समयकी भान्ति संसारके सभी प्रति- इसकी किरणें अपूर्व रोशनी पैदा कर देंगी। मापन ठित धर्मों में उसका अामन अपने विशिष्ट गुणों इम पत्रको निकाल कर जो अनेकान्तकी सेवाका द्वारा एक असाधाण स्थानको प्रहण करेगा । मुझे भार उठाया है उसके लिये मैं हदयमे स्वागत विश्वास है कि 'अनेकान्त' की उज्वल नीनि, सु- करता हूँ और आशा रम्बता हूँ कि यह पत्र लिन चार सम्पादन और मद्रावसे प्रेरित अन्तःकरण दूना उन्नतिशील होगा।" की निर्मलवृत्ति अपना प्रभाव दिखाय बिना न ५४ लाला मूंगालाल हज़ारीलालजी बजाज़, रहेगी । अनेकान्तकं गवेषणापूर्ण लेखों और स्वरई जि.सागरमारगर्भित हृदयप्राहि-टिप्पणियों प्रादिकेसम्पादन 'अनकान्त' की चार किरणांक अवलोकन म द्वारा आपने जन-समाजकी पवित्र सेवाका जो हमें जो आनन्द हुआहै वह लिखा नहीं जा सकता। श्रेय प्राप्त करनेकी मनमें ठानी है तदर्थ भापको जैनहितैषी के प्रभावसे जो साहित्य-पिपासा, अनेकानेक साधुवाद । अन्तमें जैनसमाजके नेता- मां गई थी वह फिर हरी भरी हो गई है मापके . भों विशेषतः वदान्य व्यक्तियों और प्रतिष्ठित इस सत्प्रयासकी कदर इस समयकी हकीई
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy