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________________ अनकान्त [वर्ष १, किर: हिन्दी उर्दूचेतन चिन-परिचय बिना, जप तप सबै निरन्थ । होती है सचकी कद्र पै बेनद्रियों के बाद । कन बिन तुस जिमि फटकते. श्रावै कछ न हत्य ।। इसके खिलाफर हो तो समझ उसको शाजरे त।' -रूपचंद। X x -हाली। बालपनैन सँभार सक्यों कछ, जानत नाहिं हिताहितहीका ___ "जिंदगी जिन्दादिली का नाम है। यौवनवैस वसी वनिता उर, कै नित राग रसो लछमीको। मुदोदिल स्वाक जिया करते हैं !" योपन दोय विगोइ दय नर, डारतक्यों नरकै निज जीको; पापागायनरडारतक्या नरकानज जाका; X x x आये हैं 'सेत' अौंमठ चेत,'गई सुगई अबरावरहीको। दुश्मन से बढ़ के कोई नहीं आदमी का दोस्त । x -भधरदास। मंजूर अपने हाल की इसलाह हो अगर ।। मनमें प्रण हो पक्का, फिर विघ्नांका जरा नहीं डर है। x x -हाली' । कायर-क्षुद्रहृदय को, विघ्न भयंकर पिशाच बनते हैं। "जो छिपाते हैं हक अंदेश-ए-कमवाई से। माधन हैं यदि थोड़े, तो भी अपना सुलक्ष्य मत छोड़ो। घान में उनके लगी बैठी है रुसवाई भी।" श्रागे कदम बढ़ाओ, वहीं मिलेंगे अवश्य ही साधन ॥ X x -'हाली'। x x -दरबारीलाल । दोस्त अगर भाई न हो दोस्त है तो भी लेकिन । कोटि करम लागे रहें, एक क्रोधकी लार । भाई गर दोस्त नहीं, तो नहीं कुछ भाई भी। किया कराया मब गया, जब आया हंकार ।। x x -'हाली'। जानो दिल क़ौम पै अपना जो फ़िदा करते हैं । X X -कबीर। बड़ी नीत लप नीत करन है, बाय सरत बदाय भरी।। कहीं ममवाई से वे लोग डरा करते हैं । फोड़ा आदि फुनगनी मंडित, सकन्न देह मनोरोग-दरी ॥ कौमेमुर्दा में किसी तरह से जॉ पड़ जाए। शोणित-हाड-मांसमय मूरत, तापर रीझन घरी-घरी । हम शबोगेज- इसीधन में रहा करते हैं। -मंगतराय। ऐमीनारि निरखकर केशव.'रसिकप्रिया' तुम कहा करी फल नो दो दिन बहारे जिन्दगी दिखला गये । x x -भैयाभगवतीदाम। हमरतर उन रांचों५० है जोबिन खिले मुरझा गये।। करत करत अभ्यासके, जडमति होत सुजान । x -'जोक'। रसरी भक्ति जात ते, सिल पर परत निसान ।। "किस्मन की ग्वबी देखो कि टूटी कहाँ कमन्द। दी एक हाथ जब कि लबे बाम रह गया ।" तुलमी साथी विपतके, विद्या विनय विवेक । माहस सुकृत सत्यवत, राम भरोसो एक ।। यह चमन यो ही रहेगा और हजारों जानवर x x -तुलसीदाम । अपनी अपनी बोलियों सब बोलकर उड़ जायेंगे।। क्या मुँह ले हँसि बोलिये, दादू दीजे रोय । जनम भमोलक पापणा, पले अकारथ खोय ।। दस्तैसवाल१४ सैकड़ों ऐबों का ऐब है। x x दादूदयाल । जिस दस्त में यह ऐव नहीं वह दस्तरोब है ॥ कोई बरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी भावे या जावे, x x -गालिब । लाखों वर्षों तक जीऊँ या मत्य माज ही भाजावे। १ प्रतिष्टा २ विरुव. ३ प्रसाधारण. ४ सुधारणा. ५ सत्यको अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने भावे, अपकीर्ति के भय से ७ बलिदान ८ रात दिन. ६ प्रफमोस-खेद मो भी न्यायमार्गसे मेरा कभी न पद रिंगने पाये॥ १. कलियों. १ स्मी १२ कोठे के निकट. १२. उपा-बाय x -'यगवीर' १४ याचना कर हाय दोषों. १६ प्राय काय।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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