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________________ नोट भनेकान्त [वर्ष १, किरण ५ 'ऐलेय' नामके आधार पर खारोलके वंशकी कल्पना कर डाली है वह मुनिसुव्रत भगवानके तीर्थकी और इस लेखकी विचारसरणी, यद्यपि, बहुत कुछ इस लिये आजसे ग्यारह लाख वर्षसे भी अधिक पहल स्खलित जान पड़ती है,सत्यकी अपेक्षा साम्प्रदायिकता की पुगनी बतलाई जाती है । ऐलेय' राजा मुनिसुव्रत की रक्षाकी भोर वह अधिक झकी हुई है और इसीसे भगवानका प्रपौत्र था और इस लिये हरिवंशी था। इसमें कितनी ही विवादस्थ अनिर्णीत बातों अथवा उसकी वंशपरम्परा में जितने भी राजाओंका उल्लेख दूसरे विद्वानों के कथनों को, जिन्हें अपने अनुकूल मिलता है उन सबको हरिवंशी लिखा है-ऐलवंशा समझा, यों ही विना उनकी खली जॉच किये-एक या ऐलेयवंशी किसीको भी नहीं लिखा और न इस पटल सत्य के तौर पर मान लिया गया है, और जिन्हें नामके वंशका शाखोंमें कोई उल्लेख ही मिलता है। प्रतिकूल समझा उन्हें या तो पूर्णतया छोड़ दिया गया ऐसी हालतमें महज शब्दछलको लिये हुए लेखक, है ओर या उनके उतने अंश से ही उपेक्षा धारण की महाशयकी यह कल्पना एक बड़ी ही विचत्र मालूम गई है जो अपने विरुद्ध पड़ता था। और इसका कुछ होती है, जिसका कहींसे भी कोई समर्थन नहीं होता। भाभास पाठकोंको सम्पादकीय फटनोटोंसे भी मिल जब तक आप प्राचीन साहित्य पर से स्पष्ट रूप में यह सकेगा । फिर भी इस लेख परसे उक्त 'थेराबली' की सिद्ध न करदें कि 'ऐल' वंश भी कोई वंश था और स्थिति संदिग्ध पार हो जाती है-भले ही उसे अभी राजा खारोल उसी वंश में हुआ है तब तक आपकी जालीन कहा जा सके और इस बातकी खास जरू- इस कल्पना का कुछ भी मूल्य मालूम नहीं होता । यह रत जान पड़ती है कि उसे जितना भी शीघ्र हो सके भी सोचने की बात है कि खारवेल यदि ऐलेयकी वंश पूर्ण परिचपके साथ प्रकाशमें लाया जाय । चोर इस परम्परा में होने वाला हरिवंशी होता तो वह अपने लिपे मुनिजी जैसे इतिहासप्रिय विद्वानोंको उसके लिये को ऐलवंशी कहने की अपेक्षा हरिवंशी कहने में ही खास तौर से प्रयत्न करना चाहिये। उसके प्रकाश में अधिक गौरव मानता, जिस वंशमें मुनिसुव्रत और बाने पर ही उसके सब गुण-दोष खुल सकेंगे और नेमिनाथ जैसे तीर्थंकरोंका होना प्रसिद्ध है । और यह भी मालूम हो सकेगा कि वह असली चीज है या यदि ऐलेय' राजाके बाद बंशका नाम बदल गया माली और जाली । भीयुत वा० काशीप्रसादजी जाय- होता तो नेमिनाथ भी ऐलवंशी कहलाते परन्तु ऐसा संबाल भी यथार्थ निर्णयके लिये उसकी मूल प्रतिको नहीं है--स्वामी समन्तभद्र जैसे प्राचीन भाचार्य भी जल्दी देखना चाहते हैं । इस विषयमें एक पत्र उनका 'हरिशकेतुरनपथपिनयहमतीयनायकः '. मुनिजीके नाम भी पाया था जो उन्हें मिजवा दिया सभस्तो) जैसे विशेषणोंके द्वारा उन्हें हरिवंशी गया है। ही प्रकट कर रहे हैं। मतः लेखककी उक कल्पना इसके सिवाक, मैं अपने पाठकों को इतना और निर्मल जान पाती है। -सम्पादक पवला देना चाहता कि इस लेखके अंत में लेखक महाराने हरिवंशपरायची जिस कथामें प्रवृहए -
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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