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चैत्र, वीरनि०सं०२५५६] राजा खारवेल और उसका वंश
३०१ (४) इसके कुल नौ राजा थे।
नामक नगरी भी स्थापित करनेमें सफल हुमा । ऐलेय इस वंशका मेघ नाम खारवेलकी 'मेघवाहन'उपा- एक राजा बन गया और फिर वह दिग्विजयको निकधिका द्योतक है, यह मिजायसवाल प्रकट करते हैं। ला । इस दिग्विजयमें ऐलेय ने नर्मदा तट पर माहिइसका समर्थन एक प्राचीन उड़िया काव्यसे होता है, मतीनमरी की नींव डाली । अन्तको वह दिगम्बर जो 'इंडियनम्यजियम' में मौजद है। उसमें लिखा है मुनि हो गया और उसका पुत्र कुणिम राजा हुआ । कि 'कलिङ्ग का मगधके नंद राजाओं ने जीत लिया कुणिमने विदर्भदेशमें कुन्डिनपुर को बसाया । यह भी था; किन्तु बादको ऐर राजाने नंद राजाको हरा कर मुनि हो गया और इसके बाद पुलोम राजा हुमा, उसका उद्धार किया। यह नन्द कट्टर वैदिक धर्माव- जिसने पौलोम नगर बसाया। इसके उत्तराधिकारी लम्बी था, किन्तु ऐर पाखण्डी था । ऐरका विरोध इनके दो पुत्र-पुलोम और चरम हुये जिन्होंने इन्द्रपुर अशोकसे भी विशेष था । पहले ऐर की राजधानी की नींव डाली । इनकी सन्तानमें बहुत राजामों के दक्षिण कौशल की कौशला नगरी थी, बादको उन्होंने बाद जिनके नाम गिनाना फिजूल है, एक राजा ममिअपनी राजधानी खण्डगिरि पर बनाई है। इस उल्लेख चन्द्र हुआ । इसनं विन्ध्याचल पर्वतके पृष्ठ भाग में से भी खारवेल के पर्वजोंका दक्षिण कौशल से आना चेदिराष्ट्र की स्थापना की । इसकी रानी उप्रवंशी वसुमिद्ध होता है । और यह बात हिन्दू पराणोंक उपर्यक्त मती नामक थी। उल्लेख के अनुकूल है । इसके अतिरिक्त ऐर अर्थको पुष्ट
(हरिवंशपुराण, मर्ग १, मांक १-३९) करने वाला कोई उल्लेख नहीं मिलता । हाँ, जैन हरिवं
इम कथन से राजा. वारवेलके वंशका ठीक
परिचय मिलता है और इसके अनमार उनकी 'ऐर' शपुराणसे उत्तर कौशलके हरिवंशीय गजा दक्षके
उपाधिका अर्थ 'ऐलवंशज' होना ठीक है । सथापि' द्वारा खारवेलका ऐलवंशज होना प्रकट है और यह भी
ऐलवंशज अभिचन्द्रन ही 'चेदिराष्ट्र' की स्थापना की, प्रकट है कि वह उनके राज उत्तरम पाकर दक्षिणकी
इम लिये खारवेलका“चेतिराजवमवधेन" होना ठीकही ओर विन्ध्याचल पर्वतके पृष्ठ भागमें चेदिगष्ट बना कर
है क्योंकि उनके पूर्वज विन्ध्याचल पर्वतके निकटवर्ती वहाँ शासन करने लगे थे। वह कथा इस प्रकार है:'हरिवंशीय राजा दक्षका एक ऐलेय नामका पुत्र
महाकौशलसे पाये थे, औग्वेचेदिराष्ट्र के उत्तराधिकारी
थे। मतः 'हिमवंत-थेगवली' के अनुसार राजा खारऔर मनोहरी नामकी सुंदर कन्या थी। दक्ष मनोहरी
वेल का जो वंश परिचय उपस्थिति किया गया है, वह पर आसक्त हो गया और उम नीचने उम अपनी पत्नी
ठीक नहीं है। उसके स्थान पर उक्त प्रकार से जो बना लिया। इस कारण रानी इशा अपने पतिम
दिगम्बर जैनपुराण, हिन्दू-पराण, और स्वयं खारवेल इस दुष्कर्मके कारण रुष्ट होगई और अपने पुत्र एलेय शिलालेखके अनमार वंश वर्णन किया गया है वह को लेकर दूसरे देशको चली गई । ऐलेय दुर्गे देश में विशेष प्रामाणिक है अर्थात् उत्तर कौशलके राजपुत्र पहुँचा और वहाँ उसने 'इलावर्द्धन' नामक नगर स्था- ऐलेय हरिवन्शीकीसन्तानचेदि कुलकीजओथी, और जो पित किया। इसके बाद वह वादेश में ताम्रलिति विन्याचलके पास दक्षिण कौशल में भारही थी, उसी * Ibid. V. 480-482..
के वंशज बारवंल थे। ना० १०-३-१९३०