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________________ चैत्र, बीरनि० सं० २४५६] थेरावली - विषयक विशेष नोट युवकों से युवकों से [ लेखक - श्री० कल्याणकुमार जैन 'शशि' ] पिछले नोटको प्रेस में देने और उसके कम्पोज हो जाने के बाद हिमवंत थेरावली के गुजराती अनुवादको अंचलछकी पट्टावली में प्रकाशित करने वाले पं० हीरालाल हंसराजजी जामनगर वालोंकी ओरसे प्राप्त हुए उत्तर पत्र से मालूम हुआ कि हिमवन्तसूरि-कृत मूल थेरावली भी अब भाषान्तर सहित छप रही है। इससे उसके शीघ्र प्रकट हो जाने की आशा है। साथ ही, श्वेताम्बर - माज के प्रसिद्ध विद्वान् श्रीमान् पं० सुखलालजीसे, जो २ समय हुआ अति सोते सोते, ३ श्राओ, करुणा-हम्त बढ़ाओ, पतितों- दलितों को अपनाओ, सब समान हैं गले लगाओ, तज अनुदार विचार ' ४ 16 पहिन भीरूपन का जो बाना, हुए हैं किये बहाना न छोड़ना उन्हें उठाना, करके पाद प्रहार ! पड़े अब इस समय आश्रममें तशरीफ़ रखते हैं, मालूम हुआ कि उन्होंने संदेह होने पर थेरावलीके अनुवादक उक्त पं० हीरालाल हंसराजजीसे ग्रंथकी मूल प्राचीन प्रतिकी बाबत दर्यात किया था और यह भी पूछा था कि अनुवादके साथमें कुछ गाथाएँ देकर जो व्याख्या की गई है वह व्याख्या उनकी निजी है या किसी टीकाका अनुवाद है । उत्तरमें उनके यह लिखने पर कि वह व्याख्या टीकाका ही अनुवाद है और मूलप्रति कच्छ के श्रंचलगच्छीय धर्मसागरजीके भंडारमें मौजूद है, जां नागौर या बीकानेर से वहाँ पहुँची है, उस भंडारसे उसकी प्राप्तिके लिये कोशिश की गई । परंतु अनेक मार्गों से छह सात महीने तक बराबर प्रयत्न करने पर भी वह मूल प्रति अभी तक देखने को नहीं मिल inst और न यही मालूम हो सका कि वह प्रति वहाँ मौजूद भी है या कि नहीं। अन्यत्र भी तलाश जारी है। ऐसी हालत में जब तक मूलप्रति देखने को न मिलजाय और उस परसे प्रथके असली होनेका निश्चय नहो जाय तब तक उसके प्रकाशित होने पर भी उस पर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता, ऐसी उनकी तथा पं० बेवरदासजी और जिनविजयजीकी राय है। और यह ठीक ही है । सत्यके निर्णयार्थ मूल प्रतिके दिखलानेमें किसीको भी संकोच न होना चाहिये । तद्विषयकं संदेहको दूर करना उसके प्रकाशकोंका पहला कर्त्तव्य है। ५ सम्पादक १ युवक, अब बनो न भू पर भार ! उठ कर शुभ सन्देश सुनाओ, वीरों-सा नव वेश सजाओ, क्यों सोता है देश ? उठायो, नवल शक्ति सञ्चार । कायर बन कर रोते रोते, गौरव- वैभव खोते खोते, सहते अत्याचार | किन्तु सामने कई कटक हैं, पग पग पर उनमें कटक हैं, उन्नत मार्ग न निष्कण्टक हैं, करना उनको प्यार | ६. सत्य मार्ग में यदपि प्रलय हो, उसका तुम्हें न किश्चित भय हो, मार्ग तुम्हारा मंगलमय हो, सब को सुख दातार ! ७ उथल-पुथल 'गुरुडम' में करना, विपदाओं से रा न डरना, 'शशि' बन व्योति जगत में मरना, ..... करना नित्य सुधार !.. सर्वक, अब बनो न भूपर भार ! ३०३
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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