SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बैत्र, वीर नि०सं०२४५६] महाराज खारवेल २८५ ऐतिहासिक विषयों पर बहुत ही सावधानीसे णमोकार मंत्रानुसार अर्हन्तों और सिद्धोंको नमस्कार विचार कर मत प्रकट करना उचित है और तिस पर किया गया है। महाराज खारवेल के शिलालेख पर तो अभी तक पुरा- सृष्टान्दके पूर्व की शताब्दियों की भारतीय ऐतितत्त्ववेत्ताओं की लेखनी चल ही रही है । हासिक सामग्रियों में यह लेख एक अद्वितीय स्थान इस शिलालेखके अस्तित्व का पता सबसे पहिले रखता है। काल-क्रम से तो भारत कुलपनि सम्राट स्टलिंग साहब को सन् १८२५ में लगा था, तबसे चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र महाराज पशांककं बादका यही आज तक अनेक पुरातत्त्वान्वेषि-गण इस पर निन- दूसरा शिलालंग्व है। जैन-इतिहासकी दृष्टि में भाज नया प्रकाश डालते आरहे हैं और अभीतक अन्वेषण नक इस रत्नगी भारत वमंघम पर जितने भी लम्ब का अन्त नहीं हुआ है। हाँ, यह बात सिद्ध हो चकी उत्कीर्ण हुए पाये गये हैं उन सब में यही शिलालम्ब है कि महाराज खारवेल जैनधर्मावलंबी थे तथा इस पार्यप्रतिपादकत्व अधिक रखता है। इस नेम्व में यह शिलालेखमें बहुत मी जैनधर्मसंबंधी बातों का उल्लेख है। भी प्रमाणित होता है कि अंतिम तीर्थकर श्री बढ़मान इस विषय में आज मैं कुछ अधिक न लिख कर महावीरस्वामी के निर्वाण से सौ सबासौ वर्ष के बाद कंवल दो एक बातें ही पाठकोंको बताना चाहता हूँ। भी जैनधर्म का प्रकाश कलिंग देश में जोरों के साथ कलिंगदेश (उड़ीसा) में ग्वंडगिरि-उदयगिरि नामक था भोर जनधर्म गजधर्म था। प्रसिद्ध दिगम्बरजैन क्षेत्र भुवनेश्वर स्टेशन में ३ मील महाराज ग्यारवेलनं १५ वर्षको अवस्थामें युवराज पर है। यहाँ अनक गुफायें, शिलालेख और दीवार में पर प्राप्त किया था तथा २४ वर्ष की अवस्था में इनका लगी हुई मूर्तियाँ हैं। यही हाथीगफामें महाराज म्वार- महागज्याभिषेक ( प्राज में २१५२ वर्ष पहिले ) हुमा वंल का वह २१०० वर्ष का प्राचीन प्रसिद्ध शिलालग्य था। ३१ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हुमा था। भी है । जो प्रायः पाँच गज लम्बा और दो गज चौडा इन्होनं मातकर्णी, गष्ट्रिक. भोजक, मूषिक, पांच्या है। इस में १७पंक्तियाँ हैं। प्रत्यक पंक्ति में ५० १०८ यादि गज्यों पर विजय प्राप्त की थी। मगध बीर भानक अक्षर हैं। इसकी भाषा, कुछ स्थलों को छोड़ कर, रतवर्ष (उत्तर भारत)पर इन्होंने अपनी विजय पताका विशेपनः धर्मग्रन्थों में व्यवहत पाली है । इम की लिपि फहराई थी । मर्वविजय के पश्चात् ये अपना समय (अक्षर) स्रष्टाल पूर्व १६० वर्ष की उत्तरीय ब्रानी है। धर्माचरण में बिताने लगे और नमी कुमारी पर्वत ( उ. अनेक अक्षर नष्टप्राय होचकं हैं तो भी अधिक भाग भली भाँति पढा जाता है। प्रथम ही इम में प्रसिद्ध दयगिरि) पर इन्होंने प्रहन्तचैत्यालयों का जीर्णोद्धार कराया था। प्रापकी ऐर, महागज, महामेघवाहन, __* जिम हा तक अकी लेखनी चल रही है उमी रु तक कलिंग-प्रधिपति, धर्मगज, भिक्षुराज, मगज मावि दुसर विद्वानांका असर विचर भी चल रहा है और चलना चाहिये। उपाधियाँ थीं। बाग्वेल की महारानी ने अपने शिलाउमी में पुरातत्याको अनुसथान विशेष करने और अपनी भल की मुधारने तक का असर मिलता है। इसमें प्रापतिकी कोई बात नहीं लेनमें महाराज को 'कलिंग चक्रवर्ती भी लिखा है। और न माने प्रतिकूल विचार को सुनकर प्रवीर होने की ही सनत राज्याभिषेक के १२३ वर्ष में महाराज मारवेल -सम्पादक की वृतीय चढ़ाई मगध पर हुई थी-यहाँ इतनी चतु
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy