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________________ २७६ नन्दी 'आचार्य के नामसे रचा गया हो और इसके रचयिताका नाम खुद 'वसुनन्दी' न हो। यदि ऐसा न हो कर किसी दूसरे हो वसुनन्दिसूरि ने इसकी रचना की है तो कहना होगा कि वे कोई साधारण व्यक्ति थे, 'उन्होंने दूसरों की कृतियों को चुराकर जो उन्हें अपनी कृति प्रकट किया है वह एक सूरिपदके योग्य नहीं है। और ऐसी हालत में यह मालूम होने की जरूरत है कि कब हुए हैं और किसके शिष्य थे ? प्रन्थ की शैली को देखते हुए वह कुछ महत्त्व की मालूम नहीं होती । ( १६ ) यांगमार और अमृताशीति । पिटर्सन साहब की पाँचवीं रिपोर्ट में, नं० ९० पर, 'योगसर' नामके एक ग्रंथ का आदि और अन्त इस मकार दिया हुआ है: Begins: • अनेकान्त ॐनमो वीतरागाय विश्वकाशि महिमानममान पंकमोमन्तरायखितवाङ्मयहेतुभूतम् । शंकरं सुगनमीशमनीशमाद्दुरद्दन्नमूर्जितमहं तमहं नमामि ॥ १ ॥ Ends: I ॥ श्री जयकीर्ति रीया शिष्य एा । मलकीर्तिना । लेखितं योगसाराख्यं विद्यार्थिनामकीर्तिनात् ॥ १ संवत् ११६२ ज्येष्ठभुक्लपक्षं त्रयोदश्यां पंडित साम्हणेन - लिखितमिदमिति ॥ [वर्ष १, किरण ५ अन्तिम भाग भी जिसे कहना चाहिये वह नहीं दियाअन्तिम भाग के नामसे जो कुछ दिया है उसे प्रति लिखाने और लिखने वाले की प्रशस्ति अथवा परिचय कह सकते हैं और इससे प्राथः इतना ही मालूम होना है कि 'योगसार' की यह ग्रंथप्रति जयकीर्ति सूरिके शिष्य अमलकीर्ति ने लिखवाई है और पं० साल्हण ने उसे सं० १९९२ की ज्येष्ट सुदि त्रयोदशी को लिखा है। अस्तु; इस मंथका जो मंगलाचरण दिया है वही मङ्गलाचरण 'अमृताशीति' नामके योगप्रन्थ का है. जो माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला के 'सिद्धान्तसारादिसंगह नामक २१ वें गून्थमें छप चुका है और जिसमें ग्रन्थ कर्ता का नाम योगीन्द्रदेव दिया हुआ है; जैसा कि उसके निम्न अन्तिम भागसे प्रकट है: साथ ही, यह भी लिखा है कि यह ग्रंथ प्रति ताडपत्रोंके ऊपर अनहिलवाड़पाटन के भण्डारमें सुरक्षित है । परन्तु मूल प्रन्थका कर्ता कौन है और वह कब बना है इस विषय में कोई सूचना नहीं दी । प्रन्थका चञ्चच्च द्रोरुचिरुचिरतरचचः क्षीरनीरप्रवाहे मज्जन्तोऽपि प्रमोदं परम्परनरा संग मोगुर्यदीये । योगज्वालायमान ज्वलदनल शिखा क्लेशवल्ली विहोना योगीन्द्रो वःस चन्द्रप्रभविभुरविभुर्मङ्गलं सर्वकालम् ॥ ८२ ॥ इति योगीन्द्रदेव कृतापनाशीतिः समाप्ता । यहि पाटन की वह गून्थप्रति और अमृताशीति दोनों एक ही हों तो कहना होगा कि 'अमृताशीति'का दूसरा नाम 'योगसार' भी है और वह संवत् १९९२ से पहले का तो बना हुआ जरूर ही है । परंतु ये दोनो ही नाम गून्थ के किसी पद्य परसे उपलब्ध नहीं होते । आशा है श्रीमुनि पुण्यविजयजी अथवा दूसरे कोई सज्जन, जिन्हें, पाटन की इस ग्रन्थप्रति को देखने का अवसर मिला हो, वे दोनों की तुलना करके ठीक हाल से सूचित करने की कृपा करेंगे। जुगलकिशोर मुख्तार
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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