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________________ र्शनसमुषय नाम है कि दिगम्बर ५००) १०,२६, प्रत्येक २५८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ४ (२५) राद्धान्त- यह प्रन्थ आर्यदेवाचार्यकृत है,ऐसा विशेष सचना-इन ग्रंथोंमें नं० ११, १२, १३ के उक्त शिलालेख नं०५४ के निम्न वाक्यसे पाया तीन गन्थ यदि स्वोपज्ञ भाष्य-सहित न मिल कर जाता है-"प्राचार्यवर्यो यतिरार्यदेवो गद्धा- मूलमात्र मिलें तो पारितोषिक प्रत्येक का आधा तकर्ता ध्रियता स मूर्ध्नि " अर्थात् पच्चीस २ रुपये होगा। और यदि तीनों और वीरनन्दि-कृत 'आचारसार' में इसका एक मूल ग्रन्थ 'वृहत्त्रय' आदिके रूपमें एक ही व्यक्तिपद्य भी 'उक्तंच राद्धान्ते' वाक्यके साथ उद्धृत द्वारा प्राप्त हो जाये तो पारितोषिक ७५) के स्थान मिलता है, जिससे यह प्रन्थ अच्छे महत्वका जान में १००) रु० भेट किया जायगा । 'वृहत्त्रय' के पड़ता है। वह पद्य इस प्रकार है : नामसे प्रसिद्ध होने वाले अकलङ्कदेवके ग्रन्थमें स्वयं बर्हिसा स्वयमेव हिंसनं न तत्पराधीनमिड इन्हीं तीनोंगन्थोंके संग्रहकी बहुत बड़ी संभावनाहै। दयंभवेत् । प्रमादहीनोऽत्र भवत्यहिंसकः प्रमाद पारितोषिक दाताओंके नाम युक्तस्तु सदेव हिंसकः ॥ -पारि०, ५०) ५००) सेठ पद्यराजजी रानी वाले, कलकत्ता । ग्रन्थ (२६) सिद्धान्तसार (तर्कग्रन्थ)-श्रीजयशेखर सूरि- नं० ३, ४, ८, ९, ११, १२, १३, १४, २४, २५, जगलकिशोर मुख्तार, सरसावा । गन्थ नं० १, विरचित 'षड्दर्शनसमुषय' नामक श्वेताम्बर ग्रंथ - के निम्न वाक्योंसे मालूम होता है कि दिगम्बर प्रत्येक पर १००) १००) जैनों को जयश्री दिलाने वाले गन्थों में 'सिद्धान्त १०) ला मक्खनलालजी ठेकेदार, देहली। गन्थ नं. ससार' नामक भी गन्थ है और वह 'श्रष्टसहस्री' १०, २६, प्रत्येक पर ५०) ५०) तथा 'न्यायकुमुदचन्द्र की जोड़का बड़ा ही कर्कश १००)बाब रघुवरदयाल एम. ए., लाहौर।गून्थ नं०१७ • तर्क ग्रन्थ है ५००) पं० नाथरामजी प्रेमी, बम्बई । गन्थ नं० १८ १००) बाब राजकृष्णजी, कोलमचेंट, देहली। गन्थ स्थाद्वादविद्योवियोतात्मायः साधर्मिका अमी। नं०५, १६; प्रत्येक पर ५०) ५) परपष्टसहस्त्री या न्यायकरवचन्द्रमाः ॥ २८॥ १००) राजवैद्य शीतलप्रशादजी, देहली । ग्रन्थ नं०७ सिदान्तसार इत्याचास्तोः परमार्कशाः । १००) बाबू सुमेरचन्दजी, एडवोकेट, सहारनपुर । तेषां जयभीदानाय प्रगन्भन्ते पदेपदे।। पारि०,५०) ५० लाजम्बप्रसादजी जैन रईस, नानौता । ग्रन्थ न०६ (२०) वागर्थसंग्रह पुराण- यह ग्रन्थ कविपरमेष्ठी २५) ला०मूलचंद नेमचंदजी लोणंद (सतारा)मन्थन०१५ नामके प्राचार्य का बनाया हुआ है, जिन्हें कवि- २५) राय बबा छोटेलालजी, मुरादाबाद । गन्थ नं०२३ परमेश्वर भी कहते हैं, ऐसा भगवज्जिनसेन-प्रणीत २५) बाबू शिवचरणलालजी,जसवन्तनगर। गन्थनं०१५ भादिपुराणके निम्न वाक्यसे प्रकट है- २५) प्रोफेसर मोतीलालजी एम.ए., बनारस।गन्थ नं०२२ स पूज्यः कविमिर्लोके कवीनां परमेश्वरः। २५) ला० मथुराप्रसादजी, कनखल । गन्थ नं० २१ वागर्थसंग्रां कृत्स्नं पुराणं यः समग्रहीत् ॥ २५) अयोध्याप्रसादजी गोयलीय, देहली । प्रन्थ नं०२२ -पारि०, १०० १५२०) संपूर्ण पत्र व्यवहार का पता:-जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'समन्तभदाश्रम' करौलबाग, देहखी। म. ए., लाहान १८ . गून्थ नं०२७
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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