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अनेकान्त
[वर्ष१, किरण ४ दूसरों को नहीं । बहुत से बड़े और प्रतिष्ठित स्त्री-पुरुषों अब तो ज्ञान-बल भी व्यक्तित्व के बलके वास्ते स्थान के सामने जाते भादमी घबड़ा जाता है। घरसे जो छोड़ता जा रहा है। अब तो व्यक्तित्वयुक्त पुरुष और कुछ सोचकर पाता है उसका आधा भी ठीक रूप से सियाँ ही संसार में महान शक्तिशाली हैं । यह इनका उनके सामने नहीं कह सकता । कारण यही है कि वे आरम्भ मात्र है उसका यह प्रभात ही है। जो पुरुष और पुरुष तथा सियाँ प्रभावशाली होते हैं और आगन्तुक स्त्रियां अपने साथियोंके वास्ते उपयोगी होना चाहते हैं, लोग उनके प्रभावसे दब जाते हैं। कई बार हम सुनते जो भविष्य में महान, प्रभावशाली और प्रतिष्ठित पदों भी हैं कि अमुक पुरुष रौब वाला तथा प्रभावशाली है पर पहुँचना चाहते हैं उन्हें निश्चय से अपने व्यक्तित्व
और अमुक स्त्री रौब वाली तथा प्रभावशालिनी है। को दृढ़ करना होगा, व्यक्तित्व को बनाना होगा। धन, उपाधि, उचजन्म,प्रसिद्धि और दूसरी ऐसी वस्तुएँ इस अद्भुत शक्ति को सभी आदमी समान रूप से व्यक्तित्व के सामने नहीं ठहर सकतीं जिनको शक्ति प्राप्त कर सकते हैं । यह किसीके देने से प्राप्त नहीं हो सम्पन्न तथा प्रभावशाली बनाने वाला समझा जाताहै। सकती, इसे प्रदान भी कौन कर सकता है? यह बाजार व्यक्तित्व इन सबसे बड़ा है । मध्यकाल में धनी आदमी से खरीदी भी नहीं जा सकती । व्यक्तित्व कुछ बड़े बड़े शक्तिसम्पन्न समझे जाते होंगे। वास्तव में अबसे कुछ भादमियों का ही अधिकार नहीं है, उनकी पैतृक सम्पत्ति ही पहले धनबल को सभी मानते थे परन्तु एक समय या मौरूसी जायदाद नहीं है। किसीके नामइसका पट्टा भाया जब कि लोगों ने धन को विशेष सम्मान तथा भी नहीं लिखा हुआ है। यदि आज कुछ आदमीदूसरे महत्वकी दृष्टिसे न देखा । उसे साधारण तथा आदमियों से अपेक्षाकृत अधिक व्यक्तित्व युक्त हैं तो तुच्छ वस्तु समझ कर ठुकरा दिया । फिर विद्वताका इसका अर्थ यही है कि उन्होंने पूर्व जन्म में इसकी युग आया और विद्वत्ता की पूजा होने लगी। जो आदमी प्राति के वास्ते अधिक प्रयल किया था। जो आदमी दूसरे आदमियों और दूसरीवस्तुओं के विषयमें अधिक इसको प्राप्त करते हैं उन मब का इस पर समान बातें जानता था वह धंनिक पुरुष से भी अधिक बलवान अधिकार है । जिस बोके माता पिता व्यक्तित्वके समझा जाने लगा। लोग ज्ञानको ही शक्ति कहने लगे महत्व तथा मूल्यको समझते हैं और अपने बोके (Knowledge is powerअबकुछ समयसंज्ञानबल व्यक्तित्वके विकोशकी ओर उसकी बाल्यावस्थासे के स्थान पर वास्तविक शिक्षाको मान्यता होने लगी। ही समुचित ध्यान देते हैं,सचमुच उस बच्चे का जन्म निस्सन्देह,जिसपुरुषके पास बहुतसीलिंगरियां हैं और जो धन्य है। भादमी कुछ कालेजों के चिन्हरूपवन पहिने हुये हैं वह जिन आदमियों को वाल्यकाल में व्यक्तित्व-प्राप्ति सम्मानके योग्य हैं। किन्तु बहुतसी उपाधियों डिगरियों तथा उसको विकसित करने के सुभीते प्राप्त-न थे, अब के होनेपर भी यह सम्भव है कि ये भादमी शिक्षा यदि उनकी युवावस्था मी ढल चुकी हो, तो भी उन्हें वास्तविक अर्थों में शिक्षित न हों, कारण कि विद्वत्ता- यह समझने की आवश्यकता नहीं है कि अब उनके प्राति और बहुत सी परीक्षाओं को पास करने का अर्थ लिये व्यक्तित्व प्राप्त करने में देर हो गई है, उसका सदा मशिक्षा और संस्कार नहीं होता। किन्तु समय निकल गा है। व्यक्तित्व की महती शक्ति के