SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फाल्गुन, वीरनि० सं०२४५६] मेवाडोद्धारक भामाशाह बिना अपने जीवन में बहुत आदमी पीछे रह गये हैं सामने ही उनको प्राप्त कर गये। और बहुत पाश्मी संसारकीरंग-भूमिमें विफल मनोरथ जब हम यह बात याद करते हैं कि मानव-जीवन होगये हैं। क्या भोपभी उनमेंसे एक हैं? नहीं, आपको कुछ साठ सत्तर वर्षों में ही परिमित नहीं है, यह जीवन ऐसा न रहना चाहिये। यदि आप व्यक्तित्वप्राप्ति की बहुत से जीवनों में से एक है और नवीन जीवन सदा तीव्र इच्छा करें तो आप भी इस शक्ति को पा सकतं वहाँ में प्रारम्भ होता है. जहाँ प्राचीन जीवन समाप्त हैं। अब भी आपके जीवन का अन्तिम भाग दृढ होता है, तब हम यह जानते हैं कि यदि हम अपने और सुन्दर बन सकता है । यदि भूतकाल में आप इस जीवन-पथ के अन्तिम भागपर भी पहुँच गये हैं-बिल्कुल महती शक्ति के प्रभाव से अमफल हात रहे हैं, यदि वृद्धहोगये हैं-तब भी यही अकछा है कि हम व्यक्तित्व आपको अपनं त्रुटिपूर्ण व्यक्तित्व के कारण हानियाँ प्राप्ति का प्रयत्न करें । कारण कि इससे हम अपने उठानी पड़ी हैं, तो भी आपके लिये यही उचित तथा नवीन जीवन में बहुत से सुभीतों के साथ प्रवेश करेंगे उपयोगी है कि श्राप प्रयत्न करके उस वस्तुको प्राप्त और उन वस्तुओंको प्राप्त करेंगे जिनके लिये इस जीवन कर लो जिसका तुम्हारे जीवन में प्रभाव था और में हमारे हृदय लालायित रहे थे किन्तु जिन्हें हम न जिसके बिना जीवन-पथ में दूसरे आदमियोंको अपनं पासके थे । * में आगे निकलता देखते हुए भी तुम सबसे पीछे रह - हिन्दी-ग्रन्थ-रमाकर-कार्यालय, बम्बई द्वारा शीघ्र ही प्रकागये। जिसके अभावसे तुम अपनी मनोवांछित वस्तुओं शित होने वाली 'व्यक्तित्व' नामक पुस्तक का प्रथम परिच्छेद । को प्राप्त नहीं कर सके जब कि दूसरे आदमी तुम्हारे मेवाड़ोद्धारक भामाशाह HIRAARLengtMI स्वाधीनताकी लीलास्थलो वीर-प्रसवा मेवाड़-भूमि स्वतंत्रता की वेदी पर अपने प्राणों की माहुति दे दी, के इतिहासमें भामाशाह का नाम स्वर्णाक्षरों में किन्तु दुर्भाग्य कि वे मेवाड़ को यवनों द्वारा पपलिन अहित है। हलदीघाटी का युद्ध कैसा भयानक हुमा, होने से न बचा सके । समस्त मेवाड़ पर यवनोंका यह पाठकों ने मेवार के इतिहास में पढ़ा होगा। इसी आतंक छागया । युद्ध-परित्याग करने पर राणा प्रताप युद्धमें राणा प्रतापकी ओर से वीर भामाशाह और मेवाड़ का पुनरुद्धार करने की प्रबल भाकांक्षा को उसका भाई ताराचन्द भी लड़ा था ४ । २१ हजार लिये हुवे वीरान जंगलों में भटकते फिरते थे । उनके राजपतोंने असंख्य यवन-सेनाके साथ युद्ध करके ऐशोभाराम में पलने योग्य को भोजनके लिये उनके x देखो, उदयपुर राज्यका इतिहास पाली जिल्द छ । चारों तरफ रोते रहते थे। उनके रहने के लिये कोई
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy