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________________ २२ अनेकान्त इधर मगधकी कालगणनामें शामिल हो गई । इस तरह भूलोंके कारण कालगणना ६० वर्षकी वृद्धि हुई और उसके फलस्वरूप वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना जाने लगा। हेमचन्द्राचार्यने - भूलको मालूम किया और उनका उक्तप्रकारसे दो में ही सुधार कर दिया है। बैरिष्टर काशीप्रसाद (के.पी.) जी जायसवालने, जार्लचापेंटियरके लेखका विरोध करते हुए, हेमचन्द्राचार्य पर जो यह आपत्ति की है कि उन्होंने महावीरके निर्वाणके बाद तुरत ही नन्द वंशका राज्य बतला दिया है, और इस कल्पित धार पर उनके कथनको 'भूलभरा तथा अप्रामाणिक' तक कह डाला है उसे देखकर बड़ा ही आश्चर्य होता है। हमें तो बैरिष्टर साहबकी ही साफ़ भूल नजर है। मालूम होता है उन्होंने न तो हेमचंद्रके परिशिष्ट पर्व को ही देखा है और न उसके छठे पर्वके उक्त श्लोक नं०२४३ के अर्थ पर ही ध्यान दिया है, जिसमें साफ़ तौर पर वीरनिर्वाण ६० वर्षके बाद नन्द राजा का होना लिखा है । अस्तु; चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण - समयकी १५५ वर्षमंख्या में आगे के २५५ वर्ष जोड़देन से ४१० हाजात हैं, और यही वीरनिर्वाण से विक्रमका राज्यारोहणकाल है | परंतु महावीरकाल और विकूमकालमें ४७० वर्ष का प्रसिद्ध अन्तर माना जाता है, और वह तभी बन सकता है, जबकि इस राज्यारोहणकाल ४१० में राज्यकालके ६० वर्ष भी शामिल किये जावें । ऐसा किया जाने पर विक्रमसंवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् होजाता है और फिर सारा ही झगड़ा मिट जाता है। वास्तव में, विक्रमसंवत्‌को विक्रमके [ वर्ष १, किरण राज्याभिषेकका संवत् मान लेनेकी ग़लतीसे यह सारी गड़बड़ फैली है । यदि वह मृत्युका संवत् माना जाता तो पालकके ६० वर्षों को भी इधर शामिल होनेका अवसर न मिलता और यदि कोई शामिल भी करलेता तो उसकी भूल शीघ्र ही पकड़ ली जाती । परन्तु राज्याभिषेक के संवत् की मान्यताने उस भूल को चिरकाल तक बना रहने दिया । उसीका यह नतीजा है जो बहुत से प्रन्थोंमें राज्याभिषेक संवत् के रूपमें ही विक्रम संवत् का उल्लेख पाया जाता है और कालगणनामें कितनी ही गड़बड़ उपस्थित होगई है, जिसे अब अच्छे परिश्रम तथा प्रयत्नके साथ दूर करनेकी जरूरत है । इसी ग़लती तथा गड़बड़ को लेकर और शककालविषयक त्रिलोकासारादिकके वाक्यों का परिचय न पाकर श्रीयुत एस. वी. वेंकटेश्वरनं, अपने महावीरसमय - सम्बन्धी - The date of Vardhamana नामक - लेख में यह कल्पना की है कि महावीर - निर्वाण मे ४७० वर्ष बाद जिम विक्रमकालका उल्लेख जैन ग्रन्थोंमें पाया जाता है वह प्रचलित सनन्द- विकूम संवत् न होकर अनन्द विक्रम संवत होना चाहिये, जिसका उपयोग १२वीं शताब्दीकं प्रसिद्ध कवि चन्दवरदाईने अपने काव्य में किया है और जिसका प्रारंभ ईसवी सन ३३ के लग भग अथवा यों कहिये कि पहले ( प्रचलित ) विक्रम संवत्के ९० या ९१ वर्ष बाद हुआ है। और इस तरह पर यह सुझाया है कि प्रचलित वीरनिर्वाण संवत् में से ९० वर्ष कम होने चाहियें - अर्थात् महावीरका निर्वाण ईसवी सन्से ५२७ वर्ष पहले न * देखो, विहार भौर उडीसा रिसर्व सोसाइटीके जरनलका सितम्बर सन् १६१५ का ग्रह तथा जैनसाहित्यसंशोधक के प्रथम डा ४ था क *यह लेख सन् १६१७ के 'जनरल आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसाइटी' में पृ० १२२ - ३० पर प्रकाशित हुआ है और इसका गुजराती अनुवाद जैनसाहित्यसशोधकके द्वितीय खंडके दूसरे में निकला है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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