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मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६ ] हुआ। और दोनों मिलकर ६०५ वर्षका समय महावीर के निर्वाण बाद हुआ । इसके बाद शकोंका राज्य और शकसंवत् की प्रवृत्ति हुई, ऐसा बतलाया है।' यही वह परम्परा और कालगणना है जो श्वेताम्बरों में प्राय: करके मानी जाती है ।
भगवान महावीर और उनका समय
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गाथा परसे अनुवादित किया गया है । अस्तु; इस श्लोक में बतलाया है कि 'महावीरके निर्वाणसे १५५ वर्ष बाद चंद्रगुप्त राज्यारूढ हुआ'। और यह समय इतिहास के बहुत ही अनुकूल जान पड़ता है। विचारश्रेणि की उक्त कालगणनामें १५५ वर्षका समय सिर्फ नन्दोंका और उससे पहले ६० वर्षका समय पालकका दिया है। उसके अनुसार चंद्रगुप्तका राज्यारोहण-काल वीर - निर्वाण से २१५ वर्ष बाद होता था परंतु यहाँ १५५ वर्ष बाद बतलाया है, जिससे ६० वर्ष की कमी पड़ती है। मेरुतुंगाचार्यने भी इस कमीको महसूस किया है। परन्तु वे हेमचन्द्राचार्य के इस कथनको गलत साबित नहीं कर सकते थे और दूसरे प्रन्थोंके साथ उन्हें साफ़ विरोध नजर आता था, इसलिये उन्हों ने 'तचिन्त्यम' कहकर ही इस विषयको छोड़ दिया है। परंतु मामला बहुत कुछ स्पष्ट जान पड़ता है। हेमचंद्रने ६० वर्षकी यह कमी नन्दोंक राज्यकालमें की है-उनका राज्यकाल ९५ वर्षका बतलाया है—क्योंकि नन्दोंसे पहले उनके और वीरनिर्वाण के बीच में ६० वर्षका समय कूरिंणक आदि राजाश्रोका उन्होंने माना ही है। ऐस मालुम होता है कि पहलेसे वीरनिर्वाण के बाद १५५ वर्षके भीतर नन्दोंका होना माना जाता था परन्तु उसका यह अभिप्राय नहीं था कि वीरनिर्वाणके ठीक बाद नन्दोंका राज्य प्रारंभ हुआ, बल्कि उनसे पहिले उदायी तथा कूणिकका राज्य भी उसमें शामिल था । परन्तु इन राज्योंकी अलग अलग वर्ष गणना साथमें न रहने आदिके कारण बादको ग़लतीसे १५५ वर्ष की संख्या अकेले नन्दराज्य के लिये रूढ़ होगई । और उधर पालक राजाके उसी निर्वाण रात्रिको अभिषित होने की जो महज एक दूसरे राज्यकी विशिष्ट घटना थी उसके साथमें राज्यकालके ६० वर्ष जुड़कर वह गलती
परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय के बहुमान्य प्रसिद्ध विद्वान् श्रीहेमचन्द्राचार्यके 'परिशिष्ट पर्व' से यह मालूम होता है कि उज्जयिनीकें राजा पालकका जो समय (६० वर्ष) ऊपर दिया है उसी समय मगधकं सिंहासन पर श्रेणिकके पुत्र कूणिक (अजातशत्रु) और कूणिक के पुत्र उदायका क्रमशः राज्य रहा है। उदायोके निःसन्तान मारे जाने पर उसका राज्य नन्दको मिला । इसीसे परिशिष्ट पर्वमें श्रीवर्द्धमान महावीरकं निर्वाण से ६० वर्ष के बाद प्रथम नन्दराजाका राज्याभिषिक्त होना लिखा है । यथा:अनन्तरं वर्धमानस्वामिनिवारणवासरात् । गतायां षष्ठिवत्सयमेषनन्दोऽभवनृपः ।। ६
६-२४३ इसके बाद नन्दों का वर्णन देकर, मौर्यवंशके प्रथम राजा मम्राट चंद्रगुप्रके राज्यारंभका समय बतलाते हुए, श्रीहेमचन्द्राचार्यने जो महत्वका लोक दिया है. वह इस प्रकार है:
एवं च श्रीमहावीरमुक्तेवषशतं गते । पंचपंचाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवनृपः ।। ८-३३६
इस श्लोक पर जार्ल चापेंटियरने अपने निर्णयका खास आधार रक्खा है और डा० हर्मन जैकोबी के कथनानुसार इसे महावीर - निर्वाण के सम्बन्धमें अधिक संगत परम्परा का सूचक बतलाया है । साथही, इसकी रचना परसे यह अनुमान किया है कि या तो यह लोक किसी अधिक प्राचीन प्रन्थ परसे ज्यों का त्यों उद्धृत किया गया है अथवा किसी प्राचीन