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________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण १ नहीं होता। इसके सिवाय, जार्लचाटियरकी यह आपकी यह आपत्ति भी निःसार है और वह किसी आपत्ति बराबर बनी ही रहती है कि वीरनिर्वाणसे तरह भी मान्य किये जानेके योग्य नहीं। ४७० वर्षके बाद जिस विक्रमराजा का होना बतलाया अब मैं यह वतला देना चाहता हूँ कि जॉर्लचाजाता है उसका इतिहास में कहीं भी कोई अस्तित्व टियरने, विक्रम संवत को विक्रम की मृत्युका संवत् नहीं है * । परन्तु विक्रमसंवतको विक्रमकी मृत्युका न समझते हुए और यह जानते हुए भी कि श्वेताम्बर मंवत मान लेने पर यह आपत्ति कायम नहीं रहती; भाइयोन वीरनिर्वाण से ४७० वर्ष बाद विक्रम का क्योंकि जार्लचापेंटियग्ने वीरनिर्वाणमे ४१० वर्पके गज्यारंभ माना है, वीरनिर्वाणसे ४५० वर्ष बाद जो वाद विक्रम गजाका गज्यारंभ होना इतिहाससे सिद्ध विकमका राज्यारंभ होना बतलाया है वह केवल उनकी माना है x | और यही समय उसके गज्यारंभ का निजी कल्पना अथवा खोज है या काई शास्त्राधार भी मत्य मंवत माननमे आता है; क्योंकि उसकाराज्यकाल उन्हें इसके लिये प्राप्त हुआ है। शास्त्राधार जरूर मिला ६० वर्ष तक रहा है । मालम होता है जार्लचाटियर है और उससे उन श्वेताम्बर विद्वानोंकी ग़लतीका भी के सामने विक्रम संवतके विषय में विक्रमकी मृत्यु का पता चल जाता है जिन्होंने जिनकाल और विकमकाल मंवत होनेकी कल्पना ही उपस्थित नहीं हुई और इमी के ४७८वपके अन्तर की गणना विकमके राज्याभिषेक लिये आपने वीरनिर्वाण में ४१० वर्ष के बाद ही विक्रम से की है और इस तरह विकम संवत को विकम के मंवत का प्रचलित होना मान लिया है और इस भूल गज्यारोहण का ही संवन बतला दिया है । इस विषय तथा ग़लतीके आधार पर ही प्रचलित वीरनिर्वाण मंवन का बलासा इस प्रकार है - पर यह आपत्ति कर डाली है कि उसमें ६० वप बढ़े वताम्बराचार्य श्रीमेमतंगन, अपनी विचारश्रेणि' हुए हैं। इस लिये उमे ६० वर्ष पीछे हटाना चाहिये- मे-जिम स्थविगवली' भी कहते है, 'जं रयणि कालअर्थात इस ममय जो २४५६ संवत प्रचलित है उसमे गया' आदि कुछ प्राकृत गाथाओ के आधार पर यह ६० वर्ष घटाकर उमे २३०६ बनाना चाहिये । अत' प्रतिपादन किया है कि-'जिस गत्रिका भगवान महा वीर पावापुर में निर्वाणको प्राप्त हुए उमी रात्रि को इस पर बैरिष्टर कपी जायसवाल ने जो यह कन्पना की है। कि मातकीर्गा द्वितीय का पुत्र ‘पुलमायि' ही जैनियो का विक्रम है उज्जयिनीमे चंडप्रद्योतका पुत्र 'पालक' राजा राज्याभिअनियोन उपक दमर नाम बिलवय' को लेकर और यह ममभकर पिक्त हुआ, इसका राज्य ६० वर्ष तक रहा, इसके कि इसमें 'क' का 'ल' गया है उम 'विक्रम' बना डाला है बाद कूमशः नन्दो का गज्य १५५ वर्ष, मौर्योका १०८, बरकोरी कल्पना की कपना जान पनी है ।की में भी उमका पापमित्रका ३०, बलमित्र-भानमित्रका ६०, नभोवाहन समर्थन नही होता । (बैग्नि मा० की इम कन्चनाक लिये देखी (नरवाहन) का ४०;गर्दभिल्लका १३ और शकका ४ वर्ष जनसाहित्यमगोधक क प्रथम पड का चौथा अक)। राज्य रहा । इस तरह यह काल ४७० वर्षका हुआ। ____x दायो, जालचाटियग्का वर प्रसिद्ध लेख जो इन्टियन इमैके बाद गर्दभिल्लके पत्र विक्रमादित्यका राज्य ६०वर्ष, एगिटकरी ( जिल्द ४३वी, मन १९१४) की जून,जुलाई मोर अगस्त की मच्याओं में प्रकाशित हुआ है और जिसका गुजराती अनुवाद धर्मादित्यका ४०, भाइल्लका ११, नाइल्लका १४ और जनसाहित्यमगोधक के दूसरे ग्बड के द्वितीय अक में निकला है। नाहडका १० वर्ष मिलकर १३५ वर्षका दूसरा काल 1OT
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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