SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६] भगवान महावीर और उनका समय करीब के बने हुए प्रन्थोमें भी उसका उल्लेख पाया जाता दूसरी पट्टावली में जो प्राचार्यों के समय की गणना है, जिसके दो नमूने इस प्रकार है: विक्रमके राज्यारोहण कालसे-उक्त जन्म कालमें १८ "मते विक्रमभपाले सप्तविंशतिसंयुते । की वृद्धि करके की गई है वह सब उक्त शककालको दशपंचशतेऽन्दानामतीते शृणतापरम् ॥१५७ और उसके आधार पर बने हुए विक्रमकालको ठीक ल डामतमभदेकं ................ ॥ १५८ ॥ न समझनेका परिणाम है, अथवा यो कहिये कि पार्श्व-रत्ननन्दिकृत, भद्रबाहुचरित्र। नाथके निर्वाणसे ढाईसौ वर्ष बाद महावीरका जन्म "सषत्रिंशे शतेऽब्दानां मते विक्रमराजनि । या केवलज्ञानको प्राप्त होना मान लेने जैसी ग़लती है । सौराष्ट्र वल्लभीपर्यामभत्तत्कथ्यते मया॥१८८ ऐसी हालतमें कुछ जैन, अजैन तथा पश्चिमीय और पर्वीय विद्वानांने पट्टावलियोंको लेकर जो प्रचलित वीर -वामदेवकृत, भावसंग्रह । इम संपूर्ण विवेचन परसे यह बात भले प्रकार स्पष्ट निर्वाण संवत् पर यह आपत्ति की है कि 'उसकी वर्ष होजाती है कि प्रचलित विक्रम संवत् विक्रमकी मृत्युका संख्या १८ वर्ष की कमी है जिसे पूरा किया जाना मंवत है, जो वीरनिर्वाणसे ४७० वर्षके बाद प्रारंभ चाहिये' वह समीचीन मालूम नहीं होती, और इसलिये होता है । और इसलिये वीरनिर्वाण से १७० वर्ष बाट मान्य किये जानेके योग्य नहीं । उसके अनुसार वीर विक्रम राजाका जन्म होने की जो बात कही जाती है । निर्वाणसे ४८८ वर्ष बाद विक्रम संवत्का प्रचलित होना और उसके आधार पर प्रचलित वीरनिर्वाण संवन् पर माननेसे विक्रम और शक संवतोंके बीच जो १३५ वर्ष आपत्ति की जाती है वह ठीक नहीं है। और न यह का प्रसिद्ध अन्तर है वहभी बिगड़ जाता है-सदोप का प्रार बात ही ठीक बैठती है कि इम विक्रम ने १८ वर्षकी ठहरता है--अथवा शककाल पर भी आपत्ति लाजिमी अवस्था में गज्य प्राप्त करकं उसी वक्त में अपना संवत आती है, जिस पर कोई आपत्ति नहीं की गई और न प्रचलित किया है। ऐमा माननके लिये इतिहास में कोई यह मिद्ध किया गया कि शकगजाने भी वीरनिवागम भी समर्थ कारण नहीं है। हो सकता है कि यह एक " ६५ वर्ष ५ महीनेके बाद जन्म लेकर १८ वर्षकी विक्रमकी बातको दूसरे विक्रमके साथ जोड़ देनेका ही अवस्थामें राज्याभिषेक समय अपना संवन प्रचलिन नतीजा हो । इमके सिवाय, नन्दिमंघकी एक पट्टावली किया है-प्रत्युन इसके, यह बात ऊपरके प्रमाणोंमे मिद्ध में-विक्रमप्रबन्धमें भी-जो यह वाक्य दिया है कि है कि यह समय शकराजाके राज्यकालकी समाप्ति का समय है । माथ ही, श्वेताम्बर भाइयोंने जो वीरसत्तरिचदुसदजत्तो निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना जिणकाला विकमो हवइ जम्मो।" । __ है और जिसकी वजहमे प्रचलित वीरनिर्वाण मंवन अर्थान-- जिनकालसे ( महावीरके निर्वाणसे) में १८ वर्षके बढ़ानेकी भी कोई जरूरत नहीं रहती उम पविक्रमजन्म ४७० वर्षके अन्तरको लिये हुए है और क्यों ठीक न मान लिया जाय, इसका कोई समाधान १ विक्रमजन्मका प्राशय यदि विक्रमकाल अथवा विक्रमसंक्नकी 'यथा:-विकमरज्जारभा १(प.)रमो सिरिवीर निव्वुई भगिया । उत्पत्तिसे लिया जाय तो यह कथन ठीक हो सकता है । क्योंकि मन-मणि-वेय-जुलो विकमकालाउ जिणकाली। विक्रम संवत् की उत्पत्ति विक्रमकी मृत्यु पर हुई पाई जाती है। -क्विारश्रेणि।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy