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________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण १ इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि अमितगति ने लेखों में एक शिलालेख इससे भी पहिले विक्रम संवत् प्रचलित विक्रम संवत् से भिन्न किसी दूसरे ही विक्रम के उल्लेख को लिये हुए है और वह चाहमान चण्ड संवत् का उल्लेख अपने उक्त पद्यों में किया है । ऐसा महासेनका शिलालेख है, जो धौलपुरसे मिला है और कहने पर मृत्युसंवत् १०५० के समय जन्मसंवन् जिसमें उसके लिखे जानेका संवत् ८९८ दिया है; जैसा ११३० अथवा राज्यसंवत् १११२ का प्रचलित होना कि उसके निन्न अंश से प्रकट है:ठहरता है और उस वक्त तक मुंज के जीवित रहने का वमनव अष्टौ वर्षागतस्य कालस्य विक्रमाख्यस्य । काई प्रमाण इतिहास में नहीं मिलता । मुंजके उत्तरा यह अंश विक्रम संवन् को विक्रमकी मृत्युका संवत् धिकारी राजा भोज का भी वि० सं० १११२ से पूर्व ही । देहावसान होना पाया जाता है। बतलाने में कोई बाधक नहीं है और न 'पाइअलच्छी अमितगति आचार्यके समय में, जिमे श्राज साढ़े नाम माला' का 'विक्कम कालस्स गए अउणत्ती [एणवी नौ सौ वर्ष के करीब होगये हैं, विक्रम संवन विक्रमकी सुत्तर सहस्सम्मि' अंश ही इसमें कोई बाधक प्रतीत होता है, बल्कि ये दोनों ही अंश एक प्रकार से साधक मत्यु का संवत् माना जाता था यह बात उनसे कुछ जान पड़ते हैं; क्योंकि इनमें जिस विक्रम कालके बीतने समय पहल के बने हुए देवसेनाचार्य के ग्रन्थों से भी प्रमाणित होती है । देवसेनाचार्यने अपना 'दर्शनमार' की बात कही गई है और उसके बादके बीते हुए वर्षों ग्रंथ विक्रम संवत ९९० में बनाकर समाप्त किया है। की गणना की गई है वह विक्रम का अस्तित्व कालइममें कितने ही स्थानोंपर विक्रम संवन का उल्लेख करतं उसकी मृत्यु पर्यंतका समय-ही जान पड़ता है । उसी का मृत्युकं बाद बीतना प्रारंभ हुआ है । इसके सिवाय, हुए उसे विक्रम की मृत्युका संवत् सूचित किया है। " जेमा कि इसकी निम्न गाथाओं से प्रकट है:- दशनसारमें एक यह भी उल्लेख मिलता है कि उसकी - गाथाएँ पर्वाचार्योंकी रची हुई हैं और उन्हें एकत्र संचय छत्तीसे वरिससये विक्रमरायस्स मरणपत्तस्स। करके ही यह ग्रंथ बनाया गया है । यथाः सोरटे बलहीए उप्पएणो सेवडो संघो । ११॥ पंचसए छब्बीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । पव्वायरियकयाई गाहाई संचिऊण एयत्थ । दक्षिणमहुराजादोदाविडसंघो महामोहो॥२॥ सिरिदेवसणगणिणा धाराए संवसंतेण ॥४६॥ सत्तसए तेवराणे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स। रइओ दसणसारोहारो भव्वाण णवसरणवए। णंदियडे वरगामे कहो संघो मुणेयव्वो ॥३८॥ सिरिपासणाहगेहे मुविमुद्धे माहसुद्धदसमीए॥५० विक्रम संवत्के उल्लेख का लिये हुए जितन प्रन्थ इससे उक्त गाथाओं के और भी अधिक प्राचीन अभी तक उपलब्ध हुए हैं उनमें, जहाँ तक मुझे मालम होने की संभावना है और उनकी प्राचीनता से विक्रम है, सबसे प्राचीन ग्रंथ यही है । इससे पहले धनपालकी संवत् को विक्रमकी मृत्युका संवत् मानने की बात और 'पाइअलच्छी नाममाला' (वि०सं०१०१९) और उससे भी ज्यादा प्राचीन हो जाती है । विक्रम संवत् की यह भी पहले अमितगति का 'सुभाषितरत्नसंदोह' ग्रंथ मान्यता अमितगतिके बाद भी अर्से तक चली गई पुरातत्त्वज्ञों द्वारा प्राचीन माना जाता था । हाँ, शिला- मालूम होती है । इसीसे १६वीं शताब्दी तथा उसके
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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