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________________ मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६] भगवान महावीर और उनका समय महावीरका विशेषण है । इस विशेषण-पदके निकाल सहस्र वर्षाणां प्रभवति हि पंचाशदधिके । देनेसे इस वाक्यकी जैसी स्थिति रहती है और जिस समाप्त पंचम्यामवति धरिणी मुंजनपतौ , स्थितिमें आम तौर पर महावीरके समयका उल्लेख किया सिते पक्षे पोपे बुधहितमिदं शास्त्रमनघम् ।। जाता है ठीक वही स्थिति त्रिलोकसारकी उक्त गाथा तथा हरिवंशपराणादिकके उन शककालसचक पद्यों इसमें, 'सुभाषितरत्नसंदोह' नामक ग्रन्थको की है। उनमें शकराजाके विशेषण रूपसे ' तदभ्यन्तर समाप्त करते हुए, स्पष्ट लिखा है कि विक्रम राजा के वायुः' इस आशयका पद अध्याहृत है, जिसे अर्थका स्वगोरोहणके बाद जब १०५० वाँ वर्ष (संवत्) बीत स्पष्टीकरण करते हुए ऊपरसे लगाना चाहिये । बहुत रहा था और राजा मुंज पृथ्वीका पालन कर रहा था सी कालगणनाका यह विशेषण-पद अध्याहृत रूपमें उस समय पौष शुक्ला पंचमीके दिन यह पवित्र तथा ही प्राण जान पड़ता है । और इसलिये जहाँ कोई हितकारी शास्त्र समाप्त किया गया है। इन्हीं अमितबात स्पष्टतया अथवा प्रकरणसे इसके विरुद्ध न हो गति प्राचार्यने अपने दूसरे ग्रन्थ 'धर्मपरीक्षा' की वहाँ ऐसे अवसरोंपर इस पदका आशय ज़रूर लिया समापिका समय इस प्रकार दिया है:जाना चाहिये । अस्तु । संवन्सराणां विगते सहस्र ___ जब यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरनिर्वाणसे ६०५ ससप्ततौ विक्रमपार्थिवस्य । वर्ष ५ महीने पर शकराजाके राज्यकालकी समाप्ति हुई इदं निषिध्यान्यमतं समाप्तं और यह काल ही शक संवतकी प्रवृत्तिका काल है जैनेन्द्रधर्मामृनयुक्तिशास्त्रम् ॥ जैसा कि ऊपर जाहिर किया जा चुका है-तब यह इस पद्यमें, यद्यपि, विक्रम संवत् १०७० में ग्रन्थ म्वतः मानना पड़ता है कि विक्रम राजाका राज्यकाल की ममाप्तिका उल्लेख है और उसे स्वर्गारोहण अथवा भी वीरनिवाणस ४७० वर्ष के अनन्तर समाप्त हो गया मृत्यका संवत ऐसा कुछ नाम नहीं दिया; फिर भी इस था और यही विक्रम संवतकी प्रवृत्तिका काल है- पद्य को पहले पद्यकी रोशनीमें पढ़नेसे इस विषयमें तभी दोनों संवतोंमें १३५ वर्षका प्रसिद्ध अन्तर कोई संदेह नहीं रहता कि अमितगति प्राचार्यने प्रचबनता है। और इसलिये विक्रम संवतको भी विक्रमके लित विक्रम संवत का ही अपने ग्रंथों में प्रयोग किया जन्म या राज्यारोहणका संवन न कहकर, वीरनिवोण है और वह उस वक्त विक्रमकी मृत्यका संवत् माना या बुद्धनिर्वाण संवतादिककी तरह, उसकी स्मृति या जाता था। मैंवत्के साथमें विक्रमकी मृत्युका उल्लेख यादगारमें कायम किया हुआ मृत्यु संवत् कहना किया जाना अथवा न किया जाना एक ही बात थीचाहिये । विक्रम संवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् है, उससे कोई भेद नहीं पड़ता था-इसीलिये इस पद्यमें यह बात कुछ दूसरे प्राचीन प्रमाणोंसे भी जानी जाती उसका उल्लेख नहीं किया गया । पहले पद्य में मुंज के है, जिसका एक नमूना श्रीअमितगति आचार्यका राज्यकालका उल्लेख इस विषयका और भी खास तौर यह वाक्य है: से ममर्थक है; क्योंकि इतिहास से प्रचलित वि०संवन् ममारूढे वृतत्रिदशवसतिं विक्रमनृपे १०.५० में मुंजका गज्यामीन होना पाया जाताहै । और
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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