________________
फाल्गुण, वीर नि०सं०२४५६ ] महाकवि श्रीहरिचन्द्रका राजनीति वर्णन
महाकवि श्रीहरिचन्द्रका राजनीति वर्णन
[ लेखक - श्रीयुत पं० कैलाशचंद्रजी शास्त्री ]
WWW
१५००
प्राचीन संस्कृतसाहित्य-सागर का मन्थन करने से संस्कृत कवियों के विशाल अध्ययन, सार्वविषयक पांडित्य, तथा बहुदृष्टिता का अपूर्व दिग्दर्शन मिलता है । जहाँ उन्होंने कविता- कामिनी को शृंगार रससे शृंगारित किया है वहाँ समाज-शास्त्र, प्रकृति व र्णन, अध्यात्म, एवं राजनीति जैसे विद्वत्प्रिय मनोहारि अलंकारों से अलंकृत भी किया है । कविगण राष्ट्र के प्राण होत हैं, उनके शब्दोंमें वह अपूर्व शक्ति होती है जो मुर्दा दिलों को जिन्दा, कायर को वीर और रासे भागती हुई सेना को “मुत्वा वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोदयमे महीं" की स्मृति करा कर रा विजयिनी बनाती है । वास्तव में कविके सदृश राजा का सच्चा मित्र दूसरा नहीं । इसी से धर्मशर्माभ्युदय राजनीति का वर्णन करते हुए, कवि महोदय लिखते हैं
विचार तद्यदि केsपि बान्धवामहाकविभ्योऽपि परे महीभुजः । यदीयसत्तामसीकरैरसी
तोsपि पञ्चाशु जीवति ।। १८-४१ 'महाकवियों से अधिक नरेशों का कोई बांधव नहीं है, जिनके वचनामृत के सिंचन से मुर्दादिल भी जिन्दा हो जाते हैं, अथवा मृत्यु को प्राप्त होने पर भी
२३५
AAJJJ
लोक में उनका जीवन - यशः शरीर बना रहता है।' जरा उन्हीं मृतों को जिलाने वाले महाकवियों में गणनीय कविश्रेष्ठ श्रीहरिचन्द्रजी की राजनीति का कुछ वर्णन सुनिये। यह वर्णन उन्होंने धर्मशर्माभ्युदयके १८वें सर्ग में राजा महासेन के मुखसे धर्मनाथ के प्रति कराया है। अर्थात्,
I
राजा महासेन क्षणभंगुर सांसारिक भोगों से विरक्त होकर अपने पुत्र श्रीधर्मनाथ को राज्यतिलक करके बनको जाना चाहते हैं । श्रीधर्मनाथ, यद्यपि, तीर्थंकर होने के कारण जन्म से ही मति, श्रुत, अवधि इन तीन ज्ञान से युक्त हैं, फिर भी राजा पुत्रमोह के कारण या राजनीतिके नियमानुसार उन्हें राज्याभिषेक से पूर्व कुछ राजनीति के रहस्यों से परिचित करा देना अपना कर्तव्य समझते हुए उपदेश करते हैंउपात्ततंत्रोप्यखिलाङ्ग रक्षणे न मंत्रिसान्निध्यमपेतुमर्हसि । श्रिया पिशाच्येव नृपश्यचस्वरे परिस्खलन् कश्छलितो न भूपतिः ॥ १६ ॥ 'समम्त देशके रक्षण करनेमें समर्थ 'चतुरङ्ग सैन्य के होते हुए भी कभी मंत्रिविहीन नहीं रहना अथवा मंत्रियोंका तिरस्कार नहीं करना। इस त्रुटि के कारण राजन्व रूपी चौराहे पर लक्ष्मी पिशाचिनी के द्वारा कौन भूपति नहीं ठगा गया ।'