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________________ फाल्गण, वीर निसं०२४५६] राजा खारवेल और उसका वंश इसके बाद शोभनराय की ८वीं पीढ़ीमें क्षेमराजक और निर्मन्थियों के चातुर्मास्य करने योग्य ११ ग्यारह नामक कलिंग का राजा हुआ, वीरनिर्वाण के बाद गुफायें खुदवाई थीं। २२७दो सौ सत्ताईस वर्ष पूरेहुए तब कलिंगके राज्या- भगवान महावीरके निर्वाणको ३०० तीनसौ वर्ष पुरे सन पर क्षेमराज का अभिषेक हुआ और निर्वाणसे हुए तब बुट्टरायका पुत्र भिक्खुराय कलिंगकाराजा हुआ। २३९ दो सौ उनतालीस वर्ष बीते तब मगधाधिपति भिक्खुरायके नीचे लिखेतीन नाम कहे जाते हैंअशोक ने कलिंग पर चढ़ाई की और वहाँ के राजा निम्रन्थ भिक्षुओं की भक्ति करने वाला होनेसे क्षेमराजको अपनी आज्ञा मनाकर वहाँ पर उसने अपना उसका एक नाम "भिक्खुराय" था। गुप्त संवत्सर चलाया । पूर्वपरम्परागत "महामेघ" नाम का हाथी उसका * महावीर निर्वाणसे २७५ दो सौ पचहत्तर वर्ष क वाहन होनेसे उसका दूसरा नाम "महामेघवाहन" था। बाद क्षेमराज का पुत्र बुट्टराज कलिंग देशका राजा उसकी राजधानीसमुद्र के किनारे पर होनेसे उसका हुआ, बट्टराज जैनधर्म का परम उपासक था, उसनं तीसरा नाम "खारवेलाधिपति" था *। कुमरगिरि और कुमारीगिरिनामक गदोपर्वतों पर श्रमण भिक्षुराजअतिशय पराक्रमी और अपनी हाथी आदि __हाथीगुफा वाले खारवेलके शिलालेखमें भी पक्ति १६वीं की सेनासे पृथवीमण्डल का विजेता था, उसने मगध में “वमराजा स” इस प्रकार खारवेलके पूर्वजके तौरसे क्षेमराजका देशके राजा पुष्यमित्रxकोपराजित करके अपनीमानामालेख किया है। ज्ञा मनाई, पहिले नन्दराजा ऋषभदेवकी जिस प्रतिमाको ____कलिंग पर चढ़ाई करनेका जिकर अशोकके शिलालेख में भी है, पर वहां पर अशोकके राज्याभिषेकके आठवें वर्षके बाद उठा कर लेगया था उसे वह पाटलिपुत्र नगरसे वापिस कलिंग विजय करना लिखा है। राज्य-प्राप्तिके बाद ३ या ४ वर्ष अपनी राजधानी में लेगया + और कुमरगिरि तीर्थ में पीछे अशोकका राज्याभिषेक हुमा मान लेने पर कलिंग का युद्ध श्रेणिक के बनवाये हुए जिनमन्दिरका पुनरुद्धार कर प्रशोकके राज्यके १२--१३वे में भायगा। येरावलीमें प्रशोक के आर्य सुहस्ती के शिष्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध नाम के की राज्यप्राप्ति निर्वागासे २०० वर्षके बाद लिखी है, अर्थात् २१० स्थविरों के हाथ से उसे फिर प्रतिष्ठित कराकर उस में में इसे राज्याधिकार मिला और २३६ में कलिंग विजय किया, इस स्थापित की। हिमाबसे कलिंगविजय वाली घटना अशोकके राज्यके ३० कि अन्तम माती है। जो कि शिलालेखसे मेल नहीं खाती। * हाथीगुफा वाले लग्व में भी 'भिराजा' 'महामेषवाहन' प्रशोकके गुप्त क्सक्लानेकी बात ठीक नींचती। मालूम मौर 'खारवेलसिरि' इन तीनों नामों का प्रयोग खारवल के लिव होता है, पेशवली लेखकने अपने समयमें प्रचलित गुप्त राजाओंक ___x खारवलके शिलालेखमें भी मगधक गजा भम्पनिमित्र की चनाये गुप्त संवत् को प्रशोकका चलाया हुमा मान लेने का धोखा जीतनका उलेख है। वाया है । इली उखसे इसकी प्रति प्राचीनताके गंवन्धमें भी शका ना पैदा होती है। ___+ नन्दराजा द्वारा ले जाई गई जिनमूर्तिको वापिस कलिंग बाज'का भी खारवेलके हाथीगुफा वाल लखमें “व:- लेजाने का हाथीगुफा-लखमें नीचे लिखे अनुमार पट उं.ख है:-- राजा म" इस प्रकार का उख है। "नन्दराजनीतं च कालिंगजिनं संनिवेसं...गहग्ननान ___ उड़ीसा प्रान्तमें भुवनेश्वर के निकटके 'खगडगिरि' और 'उदय- पडिहारेहि अंगमागध-वसं च नेयानि [0]" गिरि पर्वत ही विकमकी १०वीं तथा ११वीं शताब्दी तक क्रमशः -हाथीगुफालेख-पंक्ति १२वीं: बिहार-यास्सिा जर्नल, पाम्युम 'कुमगिरि और 'कुमारीगिरिकहलाते थे। ४, मग ४।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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