SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ४ ____पहिले जो बारह वर्ष तक दुष्काल पड़ा था उसमें मगध, मधुरा, वंग, प्रादि देशोंमें तीर्थंकरप्रणीत धर्म आर्यमहागिरि और आर्यसुहस्तीके अनेक शिष्यशुद्धा - की उन्नति के लिये निकल पड़े। हारन मिलनेके कारण कुमरगिरि नामक तीर्थमें अनशन उसके बाद मिक्खुरायने कुमरगिरि और कुमारीकरकेशरीर छोड़चुके थे, उसीदुष्काल के प्रभावसे तीर्थ- गिरिनामक पर्वतों पर जिन प्रतिमाओंसे शोभित अनेक करों के गणधरों द्वारा प्ररूपित बहुतेरे सिद्धान्त भी गुफायें खुदवाई, वहाँ जिनकल्प की तुलना करने वाले नष्टप्राय होगये थे,यह जानकर भिक्खुरायनेजैनसिद्धान्तों निम्रन्थ वर्षाकालमें कुमारी पर्वत की गुफाओं में रहते का संग्रह और जैनधर्मका विस्तार करने के वास्ते संप्रति और जो स्थविरकल्पी निम्रन्थ होते वे कुमर पर्वतकी राजा की तरह श्रमण निम्रन्थ तथा निन्थियोंकी एक गुफाओं में वर्षाकालमें रहते, इस प्रकार भिक्खुराय ने सभा वहीं कुमारी पर्वत नामक तीर्थ पर इकट्ठी की, निम्रन्थों के रहनेके वास्ते विभिन्न व्यवस्था करदी थी। जिसमें आर्य महागिरिजी की परम्पा के बलिस्सह, उपर्युक्त सर्व व्यवस्थासे कृतार्थ हुए भिक्खुराय ने बोधिलिंग, देवाचार्य,धर्मसेनाचार्य,नक्षत्राचार्यपादिक बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामाचार्यादिक स्थविरों को २०० दो सौ जिनकल्पकी तुलना करनेवाले जिनकल्पी नमस्कार करके जिनागमों में मुकुटतुल्य दृष्टिवाद-अंग साधुतथा आर्यसुस्थित,आर्यसप्रतिबद्ध, उमास्वाति है, का संग्रह करने के लिये प्रार्थना की। श्यामाचार्य प्रभृति ३०० तीन सौ स्थविरकल्पी निर्मन्थ भिक्खुराय की प्रेरणासे पूर्वोक्त स्थविर प्राचायाँ उस सभा में आये,आर्या पोइणी आदिक ३०० तीनसौ ने अवशिष्ट दृष्टिवादको श्रमणसमुदायसे थोड़ा थोड़ा निन्थी साध्वियां भी वहां इकटी हुई थीं। भिक्खराय, एकत्र कर भोजपत्र, ताड़पत्र और बल्कल पर अक्षरों सीवंद, चूर्णक, सेलक श्रादि ७०० सात सौ श्रमणोपा- . ' से लिपिबद्ध करके भिक्खुराय के मनोरथपूर्ण किये और सक और भिक्खुराय की स्त्री पूर्णमित्रा आदि सातसौ संरक्षक हुए। इस प्रकार करके वे आर्य सुधर्म- चित द्वादशांगी के श्राविकायें ये सब उससभामें उपस्थित थे। उसी प्रसंगपर श्यामाचार्य ने निग्रन्थसाधुसाध्विया पत्र,पौत्र और रानियोंके परिवारसेसशोभितभिक्ख- के सुखबोधार्थ 'पन्नवणा सूत्र' की रचना की है। रायने सब निर्मथों और निथियों को नमस्कार करके स्थविर श्रीउमास्वातिजी ने उसी उद्देश से नियुक्ति कहा हे महानुभावो! अब पापवर्धमान तीर्थकर-प्ररूपित महित 'तत्वार्थमृत्र' की रचना की X । जैनधमेकी उन्नति और विस्तार करने के लिये सर्व स्थविर आर्य बलिस्सहने विद्याप्रवादपूर्वमें में 'अंग शक्ति से उद्यमवन्त हो जायें।' विद्या' श्रादि शास्त्रों की रचना की + । भिक्खुरायके उपर्युक्त प्रस्ताव पर सर्व निथ और * श्यामाचार्य-कृत 'पावणा' सूत्र अब तक विद्यमान है । निन्थियोंने अपनीसम्मति प्रकट की और भिक्षुराजसे x उमास्वातिकृत 'तत्त्वार्थसूत्र' और इसका स्वापज्ञ 'भाष्य पूजित,सत्कृत और सम्मानित निन्थ प्रभी तक विद्यमान हैं। यहां पर उल्लिखित नियुक्ति' शब्द संभवत: इस भाष्यके ही अर्थमें प्रयुक्त हुमा जान पड़ता है। * तत्वार्थसूत्रके कर्ता 'मास्वाति' भी मिसराय खारवेसकी अंगविया' प्रकीर्णक भी हल तक मौजूद है । कोई इस सभामें उपस्थित थे, यह बात बहुत ही संधि तथा प्रापत्तिके ... नौ हजार श्लोक प्रमाणका यह प्राकृत गद्य-पथम लिखा योग्य जान पाती है। -सम्पादक हुमा 'सामुखिक विद्या' का प्रन्यो।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy