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________________ २२६ अनेकां राजा खारवेल और उसका वंश [ लेखक - श्री० मुनि कल्याणविजयजी ] --------------- पाटलिपुत्रीय मौर्यराज्य-शाखा को पुष्यमित्र तक पहुँचाने के बाद 'हिमवंत - थेरावली' कारने कलिंगदेश के राजवंश का वर्णन दिया है । हाथीगुफा के लेख से कलिंगचक्रवर्ती खारवेल का तो थोड़ा बहुत परिचय विद्वानों को अवश्य मिला है, पर उसके वंश और उनकी संततिके विषयमें अभी तक कुछ भी प्रामाणिक निर्णय नहीं हुआ था। हाथीगुफा-लेखके "चेतवसबधनस" इस उल्लेख से कोई कोई विद्वान् खारवेल को 'चैत्रवंशीय' समझते थे तब कोई उसे 'चेदिवंश' का राजा कहते थे । हमारे प्रस्तुत थेरावली - कारने इस विषयको बिलकुल स्पष्ट कर दिया है । थेरावली के लेखानुसार खारवेल न तो 'चैत्रवंश्य' था और न 'चेदिवंश्य'. किन्तु वह 'चेटवंश्य था । क्योंकि वह वैशाली के प्रसिद्ध राजा 'चेटक' के पुत्र कलिंगराज ' शोभनराय' की वंश परम्परामें जन्मा था । अजातशत्रु के साथ की लड़ाई में चेटक के मरने पर उसका पुत्र शोभनराय वहाँ से भाग कर किस प्रकार कलिंगराजा के पास गया और वह कलिंग का राजा हुआ इत्यादि वृत्तान्त थेराबली के शब्दों में नीचे लिखे देते हैं, विद्वान गरण देखेंगे कि कैसी अपूर्व इक़ीक़त है । [वर्ष १, किरण ४ "वैशाली का राजा चेटक तीर्थंकर महावीरका उत्कृष्ट श्रमणोपासक था । चम्पानगरीका अधिपति राजा कोणिक - जोकि चेटकका भानजा था - ( अन्य श्वेताम्बर जैन संप्रदाय के प्रन्थों में कोणिकको चेटकका दोहिता लिखा है ) वैशाली पर चढ श्राया और लड़ाई में चेटक को हरा दिया। लड़ाई में हारने के बाद अन्नजलका त्याग कर राजा चेटक स्वर्गवासी हुआ । चेटक का शोभनराय नाम का एक पुत्र वहाँ से (वैशाली नगरी से ) भागकर अपने श्वशुर कलिंगाधिपति 'सुलोचन' की शरण में गया । सुलोचन के पुत्र नहीं था इस लिये अपने दामाद शोभनरायको कलिंगदेश का राज्यासन देकर वह परलोकवासी हुआ । भगवान् महावीरके निर्वाण के बाद अठारह वर्ष बीते तब शोभनरायका कलिंग की राजधानी कनकपुर में राज्याभिषेक हुआ । शोभनराय जैनधर्म का उपासक था, वह कलिंग देश में तीर्थस्वरूपकुमार पर्वत पर यात्रा करके उत्कृष्ट श्रावक बन गया था । शोभनराय के वंश में पांचवीं पीढ़ी में - ' चण्डराय' नामक राजा हुआ जो महावीरके निर्वाण से १४९ वर्ष बीतनंपर कलिंग के राज्यासन पर बैठा था । चण्डराय के समय में पाटलिपुत्र नगर में आठवाँ नन्दराजा राज्य करता था । जो मिध्याधर्मी और अ ति लोभी था। वह कलिंगदेशको नष्ट-भ्रष्ट करके तीर्थ स्वरूप कुमरगिरि पर श्रेणिकके बनवाये हुए जिनमन्दिर को तोड़ उसमें रही हुई ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठाकर पाटलिपुत्र में ले आया । * अन्य जैनशास्त्रोंमें भी "कंच्णपुरं कलिगा" इत्यादि उदेखोंमें कलिंग देशकी राजधानीका नाम 'कञ्चनपुर' (कनकपुर) ही लिखा है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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