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________________ फाल्गुण, वीर नि०सं०२४५६] तौलवदेशीय प्राचीन जैनमंदिर (सहारनपुर आदि)स्थानों में यहाँसे पहुँचगई हैं फिर भी क परिझानके लिये थोड़ा बहुत हिन्दीभाषाका ज्ञान यहाँ के लोगों की गाढनिद्रा अभी तक भी नहीं खुलती, भीकराया जाता है। इस पाठशालाका वेतन वगैरह सो सखेदाश्चर्य है । क्या करें ? कलिकाल की लीला के लिये ३००) २० मासिक खर्च लगता है। परन्तु अपार है !! कौन रोक सकता है !!! ध्रुव फंड बहुत कम है । गवर्नमेंटमे सालाना १०००) (१७) श्रीमठदवस्ति। यहाँ बहुत सुंदर कृष्णपाषाणमय म०मिलता है । दातारों को चाहिये कि वे दान देने १॥ फुट ऊँचाई की श्रीपार्श्वनाथ भगवान की मूल के शुभावसरों पर इस विद्यालयको न भूलेंनायक प्रतिमा है।अन्यान्य प्रतिमायें भी यथायोग्य योग्य सहायता करते रहें। मजावट के साथ विराजमान की गई हैं। यहां श्री. अन्त में इतना और बतलाना चाहता हूं कि आज भट्टारक महाराज रहते हैं, वेशांत तथा अतिसरल परिणाम वाले हैं। इस मंदिर तथा अन्यान्य मे क़रीब ४०० वर्ष पहले यह मूडबिद्री नगर अतीव मंदिरोंकी देख रेख भी वे ही करते हैं और यहाँकी उन्नति शिस्वरको पहुँचा हुआथा । उस समय यहाँ पर जैनियों के ७०० घरथे, अब केवल ५० घर ही दिल्जैन संस्कृत पाठशाला में पढ़ने वाले ३०-४० विद्यार्थियों के भोजनका प्रबंध भी करते हैं। रहे हैं। उस समयके लोग देश-विदेशमें जाकर बड़े (१८) पाठशालाका मंदिर। उक्त मठकं सामनेजैन बड़े व्यापार करते थे, जिसका प्रत्यक्षभूत निदर्शन यहां के बड़े बड़े शिलामय मंदिर और अपूर्व तथा पाठशाला है । इसमें विद्यार्थियोंके दर्शनार्थ तथा अलभ्य रत्न प्रतिमायें हैं। परन्तुग्वेदके साथ लिपूजन के लिये अमृतशिलामय १।। फुट ऊंची श्री ग्वना पड़ना है कि इस ममय यहाँ पर १०० में एक मुनिसुव्रतस्वामी की मूर्निको विराजमान किया गया व्यापार करनेवाला जैनी भी अतीव कष्ट साध्य है । है । हमेशा अष्टमीतथा चतुर्दशीके दिन मब विना विद्या, बुद्धि और विभवादिक सभीमें यह पीछे हैं, र्थीलोग अध्यापकों के साथ पूजा करते हैं। इस जिमका बड़ा ही अफसांस है। भवितव्यं भवत्येव' पाठशालामें तीन विभाग हैं (१) कन्नड विभाग (२) इस नीतिके अनुमार जो कुछ होने वाला है मा संस्कृत विभाग । तथा (३) अंग्रेजी विभाग । इन होता ही है । नहीं मालूम इन लोगोंका भाग्योदय तीनों विभागों में करीब १५० विद्यार्थी पढ़ रहे हैं कब होगा । भगवान जान! और ११ अध्यापक हैं । यहाँ पर प्रचलित भाषा कर्नाटक होनस,कन्नड आठवीं कक्षातक पढाई जानी इस प्रकार यहाँके जिनमंदिरादिका यह थोड़ा सा है। अंग्रेजीथर्ड फोर्म Thi | तक पढ़ाई मंक्षेपमात्र परिचय दिया गया है । शेप वंगुर, कार्कल जाती है, और संस्कृत विभागमें प्रवेशिका, विशारद वगैरहकं जैनमंदिरों का भी यथावमा परिचय दिया तथा शास्त्री कक्षा तक पढाई होती है। व्यावहारि- जायगा ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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