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अनेकान्त
(वर्ष १, किरण ४ (१४) किपस्ति- इसको बैंकणधिकारी' ने संख्या दो लाखसे भी ऊपर हो गई है। यहाँके श्रुत
कराया था, इसीलिये इसे बैंकणधिकारी या रूढि भंडारसे प्रतिलिपि कराके अन्यत्र भेजे हुएग्रंथोंकीसूची में बंकिवस्तिमीकहते हैं। इसमें श्रीअनंतनाथ स्वामी यदि आवश्यक होगी तो प्रकट की जायगी। परन्तु खेद की खगासन शिलामय मूर्ति है।
के साथ लिखना पड़ता है कि मेरे मित्रवर्य 'अनेकॉत' (१५) केरेबस्ति-इस मंदिरके अगले भागमें तालाब के संपादक महाशय श्रीयुत जुगलकिशोरजी मुख्तारने
होनेसे इसको 'केरेबस्ति' कहते हैं। इसमें कृष्ण समंतभद्राचार्य-कृत 'प्रमाण पदार्थ' नामक ग्रंथको जो पाषाण मय ५ फटकी श्रीमल्लिनाथ भगवानकी सूचीमें दर्ज है तलाश करनेके लिये मुझे कई बार मूर्ति अतीव मनोज्ञ है।
लिखा है लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है जो अब यहाँ (१) पडवस्ति--यह मंदिर पश्चिम दिशामें होनेसे के ताडपत्र ग्रंथ अस्त व्यस्त होरहे हैं--सूचीके अनुसार इसको पडुबस्ति कहते हैं । यहाँ मूलनायक प्रतिमा
ठीक ठीक व्यवस्थित रीतिसे नहीं रक्खे गये हैं । इसी श्रीअनंतनाथ भगवानकी है, जो शिलामय पद्मा- मे मेरे बहुत परिश्रम करके अन्वेषण करने पर भी वह सनस्थ करीब चार फुट ऊँची है। इस मंदिरके प्रन्थ अभी तक नहीं मिल सका और इस लिये मैं मंमप्रहमें अनेक शिलामयसंदूकोंमें कान्य,धर्मशास्त्र, पादक जी की मनोवांच्छा को पूरा करनेमें असमर्थ न्याय,व्याकरण वगैरहके कई हजार ताडपत्र ग्रन्थ हो गया। खेद है कि यहाँके भंडारमें हजारों प्राचीन पूर्वाचार्यों ने विराजमान किये थे। उनकी पहले तथा अन्यत्र अप्राप्य प्रन्थ होने पर भी यहाँ के भाई किसी को खबर न होने से हजारों ग्रंथ क्रिमिकी- या श्रीभट्टारकजी उनका जीर्णोद्धार नहीं करते और टादि-भक्षणसे लप्तप्राय होगये। परंतु संतोषके न योग्य रीतिसे अच्छी सूची वगैरह बनवा कर उन्हें साथ लिखना पड़ता है कि पारा निवासी श्रीयत विराजमान ही कराते हैं । सूची वगैरह तथा प्रन्थक बाबू देवकुमारजीने कीटभक्षणसेबचे हुए ग्रंथोंकी रखनेकी व्यवस्था ठीक ठीक न होनेसे समय पर पुस्तक सूची वगैरह अपने स्वद्न्यसे बनवाकर उन्हें सुर- मिलना अति कष्टसाध्य हो रहा है । मुंबई तथा आराक्षित रीतिसे अलमारियोंमें विराजमान कराये थे। सरस्वतीभवनोंके प्रधानाधिकारियों (मंत्रियोंसे) विशेषअब उक्त अवशिष्ट हजारोंताडपत्र ग्रंथ श्रीभट्टारक तया बाबू निर्मलकुमारजी आरा वालोंसे आग्रह पूर्वक जीके मठ में हैं, जिसका सब श्रेय उक्त बाबजी प्रार्थना है कि, इस श्रुतभंडारकी योग्य रीति से सूची महाशय को प्राप्त है।
बनवाके ग्रन्थोंको सुव्यवस्थित रूपसे विराजमान करने इस श्रुत भंडारसे ही मैंने कई अप्राप्य तथा दुः- का प्रबन्ध करावें, जिससे यथावसर आवश्यकता पड़न प्राप्य ग्रंथोंकी प्रतिलिपि कराकर उन्हें मुंबई, बारा, परमन्थ शीघ्र मिल जाया करें । यहाँ पर अन्यत्र अलकलकत्ता, इन्दौर मौरसहारनपुरवगैरहस्थानोंके सरस्व- भ्य ऐसे अपूर्व तथा दुष्प्राप्य श्रीधवलादिप्रन्थोंको संदूकों तीमंडारोंको भेज दिया है,तथा अभी भी उक्त काम चाल में बंद करके रक्खा जाता है, किसीको भी उनसे यथेष्ट है पाठ दस वर्षों में करीब सौसे अधिक ताउपत्र ग्रंथोंकी लाभ उठाने नहीं दिया जाता, यह अत्यंत दुःखकी बात है। नकल कराई गई है। प्रतिलिपिकी अब तक की लोक- स्थपि श्रीधवल, जयधवल अन्धों की नकल अन्यत्र