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फाल्गुण, वीर नि०सं०२४५६] तौलवदेशीय प्राचीन जैनमंदिर
२२३ खलासन हैं। इस मंदिरके भामे मानस्तंभ भी है। वैश्य पहले अतीव गरीब था, उस समय उसके (९) लेप्यदवस्ति-यहॉपर लेप्य निर्मित श्रीचंद्रनाथ मनमें इच्छा हुई कि 'सभी लोग मंदिर बनवाते हैं
भगवानकी मूल प्रतिमा है । मिट्टीसे निर्मित होनेके मैं भी बनवाऊँ इस प्रकार मनमें संकल्प करके कारण इस मूल प्रतिमाका अभिषेक वगैरह नहीं ___उसने अपनी कमाईका एक चतुर्थाश संग्रह करते किया जाता है । यहाँ पर (मूडबिद्रीमें) कई मंदिरों करते इसको बनाया है। यह भी अत्यन्त प्रसिद्ध में मिट्टीकी प्रतिमाएँ विराजमान हैं; तो भी उनका तथा मनोहर है। इसमें भरनाथ, मल्लिनाथ और प्रक्षालण और अभिषेक नहीं होता है । इस प्रकार मुनिसुव्रतनाथ भगवानकीकृष्णपाषाणकी पद्मासन की प्रतिमाओंसे क्या फायदा है? पूर्वजों ने इनको प्रतिमायें अतीव चित्ताकर्षक हैं । मूलनायक प्रतिक्यों बनवाया? कौन जाने! लेप्यमय मूर्ति होनेसे ही मा तीन फुट ऊँची कमलासन पर है। इस मंदिरको इस मंदिरको लेप्पदबस्ति कहते हैं। यहाँ उक्त लेप्य रत्नत्रय मंदिर भी कहते हैं। मूल प्रतिमाके नीचे के से निर्मित श्रीज्वालामालिनी देवीकी मूर्ति भी बहुत भागमें श्वेतपाषाणमय २४ भगवान् की मूर्तियाँ ही चित्ताकर्षक है । साल भरमें हजारों लोग उक्त बहुत ही मनोरंजक हैं । ऊपर दूसरा खंड भी है देवीकी पूजा या उपासना करनेके लिये आया करते यहाँ मल्लिनाथ भगवान की पद्मासन मूर्ति विराजहैं और अपनी अपनी इष्टसिद्धि के लिये पूजा मान है। करवाते हैं । यह एक अंधश्रद्धाका नमूना है । इस
(१२) चोलसेहिपस्ति- इस मंदिरको 'चोलसेटुि' मंदिरके आगे एक विशाल मानस्तंभ भी है । यहाँ
नामक एक सेठनं बनवाया था इसी लिये इसे हरसाल चैत्र बदी २को विशाल मंडप बनाकर यहाँ
चोलसेटिबस्ति कहते हैं। यह भी ३०० वर्ष पहले के चौटर धर्मसाम्राराज्यजी अभिषेक पूजा
का और शिलामय है । यहाँ सुमति, पद्मप्रभ, और वगैरह महोत्सव करवाते हैं । यह महोत्सव देखने
सुपार्श्वजिन की तीनों ही मूर्तियाँ चार चार फुट योग्य है।
ऊँची हैं। ये कृष्णपाषाणमय पद्मासन प्रनिमायें (१०)कन्लुबस्ति--यह मंदिर शिलामय होने के कारण
बहुत ही मनोज्ञ तथा देवन योग्य है । इम मंदिरक इसका 'कल्लुबस्ति' अन्वर्थक नाम है । कनडीमें
अगले भागमें-दांये बांये वाले कोठों में-२४ पत्थरको 'कल्लु' बोलते हैं । इस मंदिरमें यद्यपि
भगवानकी मूर्तियाँ विराजमान हैं, इसीसे इसको शिलालेख वगैरह नहीं हैं, तथापि बहुत प्राचीनसा
'तीर्थकरबस्ति' या 'येडवलबस्ति' भी कहते हैं। मालूम पड़ता है। इसमें श्रीचन्द्रप्रभ स्वामीकी खड्गासन दो फुटकी मूल प्रतिमा है। इस मंदिरके (१३) महादेवसेदिवस्ति-इसको महादेव संठने भूमहमें प्राचीन ताडपत्र-प्रन्थ-भंडार था, जिमको बनवाया था। इसमें कृष्ण पाषाणमय ५ फुट ऊँची अभी मठमें विराजमान किया गया है।
खगासन मूर्ति विराजमान है जोबड़ी मनोहाहै। (११) देरमसेहि वस्ति-इसको देरम्म' नामक इस प्रतिमाके चारों ओर २४ भगवानकी प्रतिमायें
एक वैश्यने बनवाया था। 'लोग कहते हैं कि, उक्त विराजमान हैं।