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________________ फाल्गुण, बीर नि०सं०२४५६ ] भगवती आराधना और उसकी टीकाएँ भगवती आराधना और उसकी टीकाएँ [ लेखक - श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी ] ( गतांक से आगे ) १ - विनयोदया टीका पुनेके भाण्डारकर प्राच्यविद्या संशोधक मन्दिर में इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ मौजूद हैं जिन्हें मैंने देखा है * । इन में से पहली सवाई जयपुर नगर में संवत् १८०० में और दूसरी मथुरा में संवत् १८८५ में लिखी गई थी । इस टीकाके कर्ता अपराजित रि हैं। जो चन्द्रनन्दि नामक महाकर्मप्रकृत्याचार्य के प्रशिष्य और बलदेव सूरिके शिष्य थे, आरातीय चाय के चड़ामणि थे, जिनशासनका उद्धार करनेमें धीर तथा यशस्वी थे और नागनन्दि गरिणकं चरणों की सेवासे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था । श्रीनन्दिगरिएकी प्रेरणा से उन्होंने यह विनयोदया टीका लिखी थी । प्रन्थके आद्यन्त अंश नीचे दिये जाते हैं प्रारंभ २०९ * २०१११४ मा १८६१-६५ और २० १११५ भाफ़. १८६१-६५ * उदयपुर के पास बारडा ग्रामके अमवालोंके जैनमन्दिर में कुछ प्राचीन ग्रन्थों का भण्डार है । उसमें भी इस विनयेोदया टीकाकी एक प्रति मौजूद है, जो संवत् १७८६ में सागवादेमें लिखी गई थी। द्वि० जेठ वदी २ संवत् २४४६ के जनमित्रमें महाचारी शीतलप्रसाद जी ने इसकी प्रशस्ति प्रकाशित की है। एक और प्रति बम्बई के 'कपणाखाल सरस्वतीभवन' में है, जो अपूर्ण है और हाल ही की लिखी हुई है । तपसामागधनायाः स्वरूपं विकल्पं तदुपायसाधकान् सहायान् फलं च प्रतिपादयितुमुद्यतस्य (स्यास्य ) शास्त्रस्यादौ मंगलं स्वस्य श्रोतृणां च प्रारब्धकार्यमत्यूह - निराकृतौ क्षमं शुभपरिणामं विदधता तदुपायभूतेयमरचि गाथा सिद्धे जयप्पसिद्ध इत्यादिका । अन्त नमः सकलत स्वार्थप्रकाशकन महौजसे भव्यचक्र महाचूडा रत्नाय सुखदायिने ॥ १ ॥ श्रुतायाज्ञानतमसः मोचद्धर्माशवे तथा । केवलज्ञानसाम्राज्यभाजं भव्यैकधान्धवे ॥ २ ॥ + चन्द्रनन्दिमहाकर्मकृत्याचार्य-प्रशिष्येण भारतीयसूरिचूला मलिना पादप सेवा जातमतिलवेन बलदेव भूरि नागनन्दिगणि नमः सिद्धेभ्यः । दर्शनज्ञान चारित्र- शिष्येण जिनशासनोद्धरणधीरेण लब्धयशः प्रसरेणापगजिन सूरिणा श्रीनन्दिगलिना चोदितेन रचिता आराधनाटीका श्रीविजयादया नाम्ना समाप्ता ॥ छ | एवं भगवती - राधना समाप्ता । इति श्रीभगवती आराधनाaastri श्रीविजयोदया नाम्ना समाप्ता ॥ छ ॥ शुभं भवतु | + वे दोनों श्लोक भगवती आराधना की भाषा क्यामें भी वचनिकायारके पापड परिचयके बाद मुक्ति हैं ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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