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फालान, वीरनि०स०२४५६ ।
विद्युबर है, पर अब कैसे लग रहे हैं, यह भी जरा देख लेना तीनों क्यों कर यह काम कर सकती हैं। ऐमी ही मब चाहिये।
__ आपत्तियों को स्त्री-भाषा में पेश किया गया। जहाँ-तहाँ से, यत्नपूर्वक, जो श्रोनी में सिकुड़ने
लकिन कुमार को भी क्या मझा हैपड़ने लगी, और किसी विशिष्ट बिन्दु पर अवकाश छूटने लगा कि... फिर वह श्रोन्नी झटपट तान ली
"कुछ कहो, कुछ हर्ज तो मुझे दीखता नहीं।" गई, और वस्त्रावृत मुख झुमक कर नीचे हो गया..
तब कुमार को यह मान लेने को कहा गया कि ___ चौकसी देती हुई कुमार की दृष्टिने यह देखा- रूप का स्वभाव ही ऐमा है, और उस पर कुमार क्यों बोले-'हाँ, हाँ, इसमें क्या हर्ज है ?'
व्यर्थ ममय खोयें। किंतु रूप के लिये तो बहुत बडा हर्ज है। वह कैसे "लेकिन मैं तो चारों से बात करना चाहता है।" कपड़ा हटादे ?-फिर तो उसके गड़ने के लिये सामान
तीनों की प्रतिनिधि होकर पद्य ने ही उना हो जायगा । रूप, इसलिये, और कपड़े को चिपटाकर दियाऔर शरीर को सिमटा कर बैठ गई।
"चौथी का जिम्मा हम पर क्यों पड़ ?" पद्म बोली-रूपश्री, ये क्या करती हो ? शऊर "जब मुझे केवल तीनसं कुछ कहना ही न होतो?' भी नहीं है । और मबकी तरह से ठीक से क्यों नहीं
"तो मनाओ उसे । हमें क्यों बैठाल रक्खा है।" बैठती।' इसी तरह की कुछ बातें विनय और कनक के मन
"लेकिन तुमसे उतना ही कहना है जितना उससे।" मे से निकलीं । मनसे निकलीं, मुंह में रह गई । मुंह से
"पर उसे सुनना भी हो । यों तो बैठी है, और निकली नहीं तो मुंह की भंगीको जरा खट्रा बनाई। तुम उसके पीछे ही पड़े जाते हो। कहते हैं,छोड़ो उसे, कुमार ने कहा-'यह रूप तुम्हारी सहेली, तुम
२. वह आप सुनेगी। पर नहीं,...सुनाना तो उसे है, हमें
क्या।... हम क्या ..." "३" मबम अलग है। मालूम होता है रूठी है । क्यों ? ___ तीनों को इस निर्मूल आक्षेप का प्रतिवाद करने
___ और वाक्य को यों बीच में तोड़ कर शेष बात
दृष्टि से और भंगी मे और पैना कर कही गई और की जल्दी हो आई । तीनों ने जो कहा, तीखापन नष्ट
कुछ-कुछ... करके, उसका भाव यह है- 'रूठने की कोई बात भी?'
इस तरह वातावरण में आर्द्रता-सी ले पाई गई। कुमार-बिना बात के ही रूठना सही। पर अब
पर कुमार के सामने एक ही बिंदु है। कहामना तोलो।
'नहीं-नहीं। यों कैसे बैठेगी? योंही बैठे रहने मे तो __जब रूलना ही संदिग्ध है, तब मनाने का निश्चय काम चलेगा नहीं।' और स्नेह में थोड़ी हुक्म की क्यों किया जाय । इस अनावश्यक कार्य के लिये वे ध्वनि भर कर कहा-'कप!-देखो।' तीनों तैयार न थीं।
रूप, देखने के बजाय देखने को और असंभव ब. कुमार-मनाने में क्या हर्ज है। फिर वह तो छोटी नाकर, मकुच गई।
है। छोटे, न स्लें तो भी, मनन के लिये यों बन कुमार ने तब औरोंसे कहा-'तो तुम लोग मष. जाते हैं। ...सो, मना न लो उसे।
मुच सहायता नहीं करोगी?' फिर वही बात ! यह कार्य नितांत अनावश्यक पग उचर में बाली-'तुम बहुत उस रूप से है। और अप्रिय है। और जब कुमार इसके लिये भा- बोलना चाहते हो तो बोल क्यों नहीं लेते। ...हामाह करते हैं, वब तो अप्रियता कटु हो जाती है। वे बो...।'