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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३ ३१ श्री. रमणीकलालजी, शिक्षण विभाग, विश्वमें 'अनेकान्त' द्वारा अनेकान्तका प्रसार हो अ. भा. चोसंघ, साबरमती
यही मेरी हार्दिक भावना है।" " 'अनेकान्त' के दो अंक मिले । श्रीसुखलाल ३५ पं० विद्यानंदजी शर्मा, उपदेशक दि जैन जीका लेख पढ़ कर आनन्द हुआ । पुरानी वस्तु
महासभाआज के हिन्दुस्तान के प्रश्नों पर मदद देगी तब
"मेरठ में पं० वृजवासीलालजी के पास मैंने उसमें नया प्राण संचार होगा । आपका प्रयत्न
'अनेकान्त' सर्यकी पहली किरण देखी, हृदय कसमाजको बल देगा।"
मलवत प्रफुल्लित हो गया। 'सादर प्रार्थना है कि ३२ पं० शोभाचंद्रजी भारिल्ल न्यायतीर्थ, बीकानेर
पत्र देखते ही 'अनेकान्त' मेरे पास भेज दीजिय।"
३६ बा शिवचरणलालजी रईस,जसवन्तनगर"अनेकान्त' के दर्शन हुए। आभारी हूँ। मुख पृष्ठका चित्र देखते ही हृदय प्रफुल्लित हो गया ।
"जिस समय कवर पर 'अनेकान्त' लिखा देखा दूसरा चित्रभी अत्यन्त आकर्षक और मोहक है।
चित्त प्रफुल्लित हो गया और कवर खोलनेको श्रकहने की आवश्यकता नहीं कि समाज घोराति
धीर हो गया। खोलते ही 'अनेकान्त' के दर्शन घोर अंधकारमें पड़ा है। उसका उद्धार अनेकान्त'
किए । दर असल अब जैनसमाजके सुदिन शुरू सूर्यका उदय होनेसे ही होगा। यह पहली किरण
हुए हैं, ऐसा प्रतीत हुआ है।" इस विश्वासको पुष्ट करने वाली है। मेरी हार्दिक ३७ बा - नाहरसिंहजी एम.ए.,बी.एल. वकील भावना है कि अनकान्तको संसार अपनावे और
हाईकोटे, कलकत्ताउससे उसका कल्याण हो। मैं आपके सदुत्साह
"अब समय परिवर्तन हुआ है और इस शांतिऔर श्रमकी प्रशंसा नहीं कर सकता।"
मय कालमें भारतके सर्व सम्प्रदाय अपनी अपनी ३३ पं० मुन्नालालजी "चित्र" बीकानेर
उन्नतिमें अग्रसर हो रहे हैं। ऐसे समयमें साम्प्र
दायिक और अन्तर्जातीय भिन्नताको अलग रख"भनेकान्त अतिकान्त, भ्रान्तिको हरने वाला;
कर पूर्णरूपमे विषयों पर स्वतंत्र विचार प्रकट सत्यशान्तिका बीज, अहो! मन-भरने वाला।
करने वाले पत्रकी विशेष आवश्यकता थी। प्राशा तत्व-विवेचन, दोष-दलन नित करने वाला,
है मुख्तारजी उन त्रुटियोंकी अपनी पत्रिकासे दूर अपने ढंगका अति उदार गुण रखने वाला।
करेंगे। सम्पादक महोदयकी शुभेच्छा और योग्यदो किरणें ही 'कान्त'की भव्यभाव हैं भर रहीं।
ताका परिचय तीर्थकरों के चिन्ह के प्रबन्ध पर 'मुख्य-तार से बज उठी, गगन मधुर हैं कर रहीं।"
सम्पादकीय टिप्पणीसे ही पाठकोंको अच्छी तरह ३. पं०वी शान्तिराजजी शास्त्री, न्यायतीर्थ, उपलब्ध होगा। पत्रिकामें ऐतिहासिक और खोज काव्यतीर्थ, नागपुर
की दृष्टिसे लिखे गये लेख सर्वत्र और सब समय " अनेकान्त' का सम्पादन सुन्दर हुमा । लेख में उपयोगी होंगे। पत्रिकाके विषयमें अधिक लिगवेषणापूर्ण हैं, विद्वानोंके मनन करनेकी चीज है। खना मात्र पिष्टपेषण के होगा।"