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________________ माघ,वीर नि०सं०२४५६] अनेकान्त पर लोकमत ३८ सम्पादक 'जैनमित्र', सरत ४. सम्पादक 'जैनजगत', अजर-- __ "हम इस पत्रका हृदयसे स्वागत करते हैं। "अनेकान्तके सम्पादक जुगलकिशोरजी मुख्तार के नामसे जैनजनता काफी परिचित है। वे एक इसके मुख पत्र पर अनेकान्तका सूर्य अद्भुत छटा इतिहासज्ञ और मार्मिक समालोचक विद्वान हैं। • दिखा रहा है व भीतर श्रीमहावीर-जिनदीक्षा का भामहावारलजनदाक्षा का आपनं समन्तभद्राश्रम नामक एक संस्था की स्थारंगीन चित्र बहुत ही बढ़िया है। महावीरस्वामी पना की है। उसी का यह पत्र है । इसके दो अंक की मूर्ति यथार्थ ही दिखलाई गई है। यह चित्र हमारे सामने हैं । पत्रका शरीर भी सुन्दर और हर एक मंदिर में रखने योग्य है । सम्पादकद्वारा आत्मा भी सुन्दर है। प्रथम अंकमें 'अनेकान्त की लिखित 'भगवान महावीर और उनका समय'लेख मर्यादा' शीर्षक लेख बहुत अच्छा है । भगवान महावीर और उनका समय' शीर्षक मुख्तार साहब बहुत विद्वत्तापूर्ण व उपयोगी है। .... पं० सुख का लेख है नो लम्बा परन्तु आवश्यक है। भगवंत लालजी शास्त्रीका लेख अनेकान्तकी मर्यादा पर गणपति गोयलीय की 'नीच और अछुत' शीर्षक बहुत ही पठनीय है । इसमें दिखलाया है कि सा- कविता बहुत शिक्षाप्रद है। दूमरा अंक पहले अंक माजिक प्रश्नोंकी गाँठको भी अनेकान्तकी पद्धति से भी अधिक कामका है । इस अंकमें 'पात्रकेसरी मे खोलना उचित है । यह पत्र अपने ढंग का और विद्यानन्द''कर्नाटक जैनकवि''हमारी शिक्षा' 'जैनधर्मका प्रसार कैसे होगा' 'जाति भेद पर अपूर्व ही है। अमितिगति आचार्य' शीर्षक लेख विशेष पठनीय ३६ सम्पादक दैनिक 'अर्जुन', देहली- हैं। गायलीयजी की कविताएँ बहुत बढ़िया हैं । ""अनेकान्त'का पहला अंक हमारे सामने है। 'अनुरोध' शीर्षक कविता तो बहुत भावपूर्ण है। इसमें रवीन्द्रकी गीतांजलीका रंग है। प्रतीतगीत' जैन-दर्शनका श्राधार अनेकान्त-सिद्धान्त है उसी शीर्षक कविता भी इमी ढंग की है, 'वीर वाणी' अनेकान्त के सिद्धान्तको स्पष्ट और प्रचलित करने भी अच्छी है । ... ऐसे पत्रकी जरूरत थी इस के उद्देश्यसे इस पत्रका जन्म हुआ है । इस अंक लिये हम सहयोगीका सहर्ष स्वागत करते हैं।" की भीतर की सामग्री से पत्र होनहार जान पड़ता ४१ सम्पादक श्वेतांबरजैन, भागगहै। लेख सभी अच्छे हैं। कवितायें भी साधारणनः __इस मासिक पत्रके दो अंक हमारे सामने हैं। अच्छी हैं । साम्प्रदायिक पत्र होते हुए भी इसकी इनके सब ही लेख उपयोगी है। प्रथम अंक में पण्डित सुखलालजीका 'अनकान्तवादकी मर्यादा' भाषा शुद्ध और साहित्यिक है यह संतोपकी बात शीर्षक लेख सर्वोपरि है। श्रीयुत गोयलीयजी की है। साहित्य-प्रेमी और दर्शन-प्रेमियों के लिये यह 'नीच और अछूत' कविता बड़े मार्के की है। पत्र बड़े कामका सिद्ध हो सकता है । सम्पादक द्वितीय अंकमें 'जैनधर्म का प्रसार कैसे होगा' और पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार पहलेसे साहित्य 'हमारी शिक्षा' शीर्षक लेख बहुत ही अच्छे हैं। क्षेत्रसे परिचित हैं और जैनसाहित्य संबंधी उनकी इन दो अंकोंकी सामग्री और सम्पादककेस्थान पर मुख्तार साइबका नाम देखकर विश्वास होता है खोजोंके लिये जैनसमाजमें उनका विशेष मान और कि भागे चलकर यह जैनसमाजमें एक उबकोटि स्थान है। हम उनके इस नये प्रयल पर साधुवाद का पत्र होगा । हिन्दी जानने वाले भाइयों को ग्राहक बनना चाहिये।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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