SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ३ अपने इस प्रन्थ में मैसूरके चिक्कदेव राजा (१६७२- जाकर शासन श्रवण किये । तेलगुराजा जगदेवके त्रास १७०४) की स्तुति की है और फिर उसकी वंशावली दे से गोम्मटेश्वरकी पूजा बन्द हो गई थी। चारुकीर्ति कर उसीको सम्बोधन करके विषय प्रतिपादित किया पण्डित बेल्गोल छोड़कर भल्लातकीपुर भाग गया था है। इससे इसका समय ई०स० १६८०के लगभग होना और भैरवराजाके आश्रयमें रहने लगा था। चामराजा चाहिए। चिक्कदेव राजाकी वंशावली इस प्रकार ने उसे वापस लाकर पूजाक्रम फिर से जारी करा दिया। बेट्टद चामराज, उनके पुत्र तिम्मराज, कृष्णराज मुनि वंशाभ्युदय में जैन मुनियोंकी-मुख्यतः कोंऔर चामराज । चामराजके पुत्र राजनप, बेट्टद चाम- डकुंदान्वयके मुनियोंकी-परम्परा दी है । श्रीभद्रबाहु राज, देवराज और चनराज । इनमेंसे राजनप गद्दी श्रुतकेवली बेल्गोल आये और चन्द्रगुप्तने अहंदली पर बैठा और बेट्टद चामराज युवराज हुआ । राजनप आचार्यके समयमें दीक्षा ली, इसका भी उल्लेखहै । ने श्रीरंगपट्टण जीता। उसके बाद नरसराज, फिर नरस राजका पुत्र चामराज गद्दी पर बैठा। इसने श्रवणबेलगोल (शेष आगे) सिद्धान्तशास्त्री पं० देवकीनन्दनजी का पत्र श्रीमान माननीय विद्ववर मुख्तार सा० सादर जुहारु । अपरंच आपके 'अनेकान्त' के दोनों अंकोंका मननपूर्वक अवलोकन किया । आपके व्यक्तित्व के अनुसार पत्रकी नीति अत्यन्त योग्य है । लेख सब अनुसन्धानपूर्वक लिखे गये हैं । पात्रकेशरीस्वामी । और १००८ महावीर स्वामी के लेख तो बहुत ही खोजपूर्वक लिखे हैं। आप के साहित्य की जो विशेषता है वह किसी विषय में मतभेदके रहते हुए भी हमको आदरणीय प्रतीत होती है । आप के साहित्य से नई शिक्षासे भूषित व्यक्तियों का पूर्ण रीतिसे स्थितिकरण होता है और उस से जैनधर्मके । विषय में श्रद्धा की भी वृद्धि होती है ऐसी मेरी समझ है । जैन साहित्य के लिए जी जान से सर्वस्व त्याग कर सेवा करने वाला आप के समान वर्तमान में शायद ही कोई होगा। आप की सेवाओं से समाज में जागृति दीख पड़ रही है । मैं उत्साह करता हूँ कि कुछ मैं भी आपके पत्रमें लिखू। यदि मौका मिला तो अवश्य ही लेख भेजेंगा। मेरे योग्य सेवा लिखियेगा। श्रीजिनेंद्र से प्रार्थना है कि आप को उत्तरोत्तर साहित्यसेवा में अधिक से अधिक सफलता प्राप्त हो । महावीर-ब्रह्मचर्याश्रम । भवदीय कारंजा, ता० ४-१-३० । देवकीनन्दन'
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy