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माघ, वीर नि०सं०२४५६]
कर्णाटक-जैनकवि अकलंकका स्मरण किया है।
नामका उल्लेख 'अभिनव नागचन्द्र' या 'नल नागचन्द्र' _ 'विजलरायचरिते' में १२ सन्धियाँ और १२३९ रूपमें किया जान पड़ता है। दोनों कवियोंको एक सम(दूसरी प्रतिके अनुसार १३७१) पद्य हैं । इसमें कल्या- मना भ्रम है। दोनों की लेखनशैली में जरा भी समता णपुरके राजा जैनशासनवाधिवर्द्धनचन्द्र जैनवंशान्व- नहीं है। तिलक जैनमार्गानन्द पर विजलराजा की कथा है। ३६ सिंहगन (ल०१६५०) अपनी माता विजयन्ति को जो कथा सुनाई थी वही इमने 'चिन्मयचिन्तामणि' नामका प्रन्थ लिखा है, इसमें विस्तार से लिखी है, ऐसा कवि ने लिखा है। जिसे 'हरदनीति' भी कहते हैं । इसमें चंपकपुर के और सबका इतिहास इस प्रकार दिया है- 'चन्द्रकीति' नामक व्यापारीने अपने पुत्र 'सूरसेन' को
विजल राजाने अपने पुरोहित मादिराजकी कन्या दिये हुए उपदेश प्रथित हैं । बहुतों का खयाल है कि पागनी के साथ विवाह कर लिया और उसके बड़े इसका कर्ता 'कल्याणकीति' है, परन्तु हमें जो प्रति भाई वसवको राज्य का सेनापति बना दिया । शक्ति प्राप्त हुई है उसके ९९ श्लोक से स्पष्ट मालूम होता है पाकर वसव ने अचानक राजा पर आक्रमण किया, कि पुलिगेरे के सिंहराज ने ही इसे बनाया है। परन्तु वह सफल नहीं हुआ और पराजित होकर ३७ चन्द्रम (ल० १६५०) आत्महत्या करने के लिए पानी में डूब गया । इस पर इसने 'लोकस्वरुप' नामका प्रन्थ १४० कन्द पयों राजा ने उसे निकलवाया और क्षमा प्रदान करके फिर में संस्कृतके आधारसे लिखा है। इसमें तीनों लोकोंका पूर्व पद पर स्थापित कर दिया । परन्तु वमव का हृदय स्वरूप बतलाया है। इसका कर्ता चन्द्रकीर्ति योगीश्वर साफ नहीं हुआ। वह षड्यंत्र रचता रहा । एक बार का शिष्य था और तुलुमधुर देशके अलियरपुर गाँवका जब उसने सुना कि मेरे भेजे हुए विषयुक्त आमों की रहने वाला था। इसने 'गणितसार' नामका प्रन्थ भी गंधसे राजा मर गया, तब वह डरके मारे भागा और लिखा है परन्तु वह हमको प्राप्त नहीं हुआ। कडलतडि के वृषभपुरकी एक वापिका में गिरकर मर ३८ नेमि व्रतील. १६५०) गया । इसी लिए उक्त गाँव 'उलिवे' इस अन्वर्थक इसने सांगत्यछन्द में 'सुविचार परिते' नामका प्रन्थ कनड़ी नाम से प्रसिद्ध है।
लिखा है, जिसमें १२६५ पद्यों में चतुर्तिदुःख, श्राव३५ नत्न नागचन्द्र (ल०६५०) कोंकी ११ प्रतिमायें और मोक्षस्वरुप मादि विषयोंका इसका बनाया हुआ 'जिनमुनितनय' नामक १०६ प्रतिपादन किया है। प्रारंभ में नेमि जिनकी स्तुति है पद्योंका प्रन्थ उपलब्ध है। इसके प्रत्येक पद्यके अन्तमें और फिर सिद्ध, वृषभसेनादि गौतमगणधर, कोंबकुंद, 'जिनमुनितनया' यह पद आता है, इसी कारण इसका नेमिचन्द्र और गुणभद्रका स्तवन किया है। कविने यह नामकरण हुआ है । यह जैनधर्म और नीति का भापको 'ब्रह्मचारी' लिखा है।
____ ३६ चिदानन्द कवि (ल० १६८०) यह कवि 'रामचन्द्रचरित' और 'मल्लिनाथपुराण'के इसके बनाये हुए 'मुनिवंशाभ्युदय' प्रन्थकी एक कर्ता 'नागचन्द्र' से जुदा है, इसी कारण इसने अपने अपूर्ण प्रति मिली है, जिस में ५ सन्धियाँ हैं । कविने
प्रतिपादक प्रन्थ है।