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________________ १६४ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ३ स० १६४६ में गोम्मटेश्वर की पुनः प्रतिष्ठा, पूजा और 'धन्यकुमारचरिते' में ४१० पद्य हैं । ग्रंथारंभ में अभिषेक करवाया । ग्रंथ के प्रारंभमें नेमिजिनस्तुति जिनस्तुति है और फिर सिद्ध तथा 'पण्डितमुनि' की है। फिर बाहुबलि, चन्द्रनाथ, सिद्ध, यक्ष, यक्षी, बेट्टद स्तुति की गई है। ब्रह्म, भैरवरायकी कुलदेवी पोंबुचपनांबा तथा सरस्वती ३२ माघवदेव ल०१६५०) की प्रशंसा की गई है । इसके बाद महेन्द्रकीत्ति, अहहास भी इसका नाम है । इसका बनाया हुआ पनसोगेय सिंहासनाधीश देवकीर्ति, उनके शिष्य मल- शकुन-शास्त्र विषयक 'नरपिंगलि' नामका ग्रन्थ है । इसने धारि ललितकीर्ति, तद्वंशज अभिनव ललितकीर्ति, अपने को यंत्रमंत्रतंत्र में निष्णात बतलाया है। विद्यानन्द, श्रुतसागर, काणुर गणद भानुकीर्ति, बल्लालराय जीवरक्षक चारुकीर्ति, वीरसेन और ललितवर्णी ३३ गुणचन्द्र (ल०१६५०, का स्मरण किया गया है। इसका बनाया हुआ 'छंदस्सार' नामका ग्रंथ है जो बहुत अंशोंमें केदारभट्टके वृत्तरत्नाकरका अनुकरण ३० देवरस (ल.१६५०) है। इसमें संज्ञा-प्रकरण, मात्राछन्दोलक्षण, समवृत्तयह कर्नाटक देशस्थ पुगतटाक नामक नगर के प्रकरण और तालवत्त प्रकरण ये पाँच प्रसिद्ध जैन ब्राह्मण देवरस (?) का पुत्र था । इसका अध्याय हैं। प्रारंभमें जिनस्तुति है और अन्त में इस बनाया हुआ 'गुरुदत्तचरित्र' नामक ग्रंथ है, जिसमें प्रकार गद्य है- इति श्रीमदनपमनित्यनिरंजनप८१३ पद्य हैं । इसमें लिखा है कि पूगतटाकके समीपवर्ती पर्वत पर जहाँ कि पार्श्वजिनालय है, 'पूज्यपाद रमात्माईदाराधनापरमानन्दवन्धुग्गुणचन्द्रविरस्वामी' सिद्धरस की रचना करके प्रसिद्ध हुए थे। । चित छंदस्सारदाल । व ग्रंथ के प्रारंभ में २४ तीर्थंकरों की स्तुति करके सिद्ध, ३४ धरणि पंडिन (ल०१५५०). सरस्वती,सर्वाणहयक्ष,तथा कूष्मांडिनी का स्तवन किया इसके बनाये हुए दो प्रन्थ हैं-वरांगनृपचरित' है और पूज्यपाद, गुणभद्र, विजय, अकलंक, नागचंद्र, और 'विज्जलनपचरिते' । यह विष्णुवर्द्धनपुर के वरकुअग्गल, काम, भट्टाकलंक (१६०४) और शान्तिवर्म लागत वैद्यविद्यापरिणत परवैद्यकरिहरि धरणिपण्डित का स्मरण किया है । दूसरी प्रति में होन्न, पंप, नेमि, का पौत्र और पद्मएण पण्डितका पुत्र था । यह आपको गुणवर्म, मधुर के भी नाम हैं। ' विष्णुवर्द्धनपुरस्थपार्श्वजिनेन्द्रचन्द्रचरणवारिज,ग' ३१ भादियप्प (ल०१६५०) कहता है । इसने नेमिचन्द्र, होन्न, रन , हंप (पंप ? ), इसका बनाया हुआ 'धन्यकुमारचरित' नाम का और नागवर्म इन कवियों की स्तुति की है। प्रन्थ है । इसके पिता मुनियोण ( तयतिके शिष्य) 'वरांगनृपचरिते' की एक अपूर्ण प्रति उपलब्ध हुई और भाई ब्रम, चन्द्र, विजयप्प नामके थे । तुलवदे- है, जिसमें ६ अध्याय हैं। लिखा है कि पूर्व मुनि कथित शान्तर्गत गेरेसोप्पे के राजा भैरवराय के गुरु 'वीरसेन' कथा को मैं कनड़ी में लिखता हूँ। ग्रंथारंभमें मंगलाकी मात्रानुसार यह ग्रंथ लिखा गया था। चंद्रकीर्ति चरण के बाद कोंडकुंद, कविपरमेष्टी, कुमारसेन, के पुत्र 'प्रभेन्दु' मुनि इस कवि के गुरु थे। पूज्यपाद, जिनसेन, वर्द्धमान, वीरसेन,समन्तभद्र और
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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