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माष, वीर नि०सं०२४५६]
कर्णाटक-जैनकवि इसके अन्तिम अध्यायमें, जो १०९ पद्योंका है, गोम्म- मराज भूपालकारित-हयसारसमुपयाभिषान टेश्वर के मस्तकाभिषेक कावर्णन है । प्रन्थके प्रारंभमें चामराजीय ग्रन्थमेव इयशासटोल ।'' गोम्मटस्तुति है । फिर २४ तीर्थकर, मिद्ध, सरस्वती,
२६ चंद्रम (१६४६ यक्षाधिप, बेट्टदब्रह्म और पद्मावतीका स्तवन है। इनके
___ इसका बनाया हुआ 'कार्कल-गोम्मटेश्वरचरित' बाद कोण्डकुन्द ,पूज्यपाद, श्रुतकीर्ति, चारुकीर्तिपण्डित
उपलब्ध है । इसके विद्यागुरु 'श्रुतमागर' और प्रतगुरु और अपनी गृहदेवी पातालयक्षरमणी अनंतमतियम्म
महेन्द्रकीर्ति' थे । 'अरिगयरगंडरदावणि' उपनाम का स्मरण किया गया है।
धारक भैरव राजा की सहायता और 'ललितकीर्ति' की इस प्रन्थके सिवाय पंचवाणके कुछ फुटकर पद
आज्ञा से यह प्रन्थ लिखा गया है। इसमें सन् १९१६ गोम्मटेश्वर, त्यागदब्रह्म , बेट्टदब्रह्म आदिके सम्बन्धमें
में किये गये उस महामस्तकाभिषेक का उल्लेख है, जो
इम्मडि भैरवरायने अपने पिता भैरवरायकीपुण्यख्याति यह कवि बेलुगोलका रहनेवाला था। स्थानिक
के लिए, कुलगुरु 'ललितकीति' के उपदेश से और चेन्नप्पय्य इसका पिता और विद्यागुरु था । बोम्मप्प
महेन्द्रकीति' की सहायता से किया था । ऐसा जान और देप्पय्य इसके भाई थे। भुजवलिचरिते के अन्त
पड़ता है कि इस उत्सवके समय कवि स्वयं मौजूद था। में लिखा है कि शान्तवर्णी ने सन् १६१२ में गोम्मटे
____ 'कार्कलद गोम्मटेश्वरचरित्ते' सांगत्य छन्द में है। श्वर का मस्तकाभिषेक कराया। इस प्रन्थकी एक प्रति
इसमें १७ सन्धियाँ और २१८५पद्य हैं । इसमें गोम्मटेऐसी मिली है, जिसे प्रन्यकर्त्ताने स्वयं अपने हाथसे
श्वर का चग्नि और कार्कल में गोम्मटेश्वर की मूर्ति लिखा था।
की प्रतिमा का वर्णन है। इसमें इस बात का उल्लेख २८ पण पंडित (१६२७)
किया गया है कि उत्तरमधुरानाथ 'परिरायगंडरदावणि' यह कनकपुरके देवरसका पुत्र था और इसकी
उपनाम धारी पांड्यराजा ने ललितकीर्ति के उपदेश मे माताका नाम गम्माम्बा था। इसका बनाया हुआ गोमटेश्वर की मति बनवाई और उसे दस पहियों की 'हयसारसमुषय' नामका ग्रन्थ उपलब्ध है, जो मसूर गाड़ी के द्वारा एक महीने में पहार पर ले जाकर ई. के राजा चामराज (१६१७-३७) की श्राझासे लिखा स० १४३१ में प्रतिष्ठा करवाई। गया था। चामराजका आश्रित होने से इसका एक अपने आश्रयदाता के संबंध में कविने इस प्रकार नाम 'चामराजीवि ' भी है। 'हयसार समुषय' शक परिचय दिया हैसंवत० १५४९ (ई० स० १६२७ ) में समाप्त हुआ है। उस पाण्ड्य राजा के वंशमें वीर नरसिंह बंगराजेइसमें २० अध्याय हैं और प्रन्थसंख्या ८००० है। न्द्र ने जन्म लिया। उनकी पत्नी का नाम गुम्मटावा इसमें घोड़ोंकी आकृति, लिक, औषधादि का निरूपण और पत्रका इम्मरि भैरवराय था। भैरवरायकी पत्नी है। प्रन्यारंभमें जिनस्तुति है और प्रत्येक अध्यायके मलिदेवी से चार पुत्र हुए-भुवनैकबीर, पाणयेन्द्र, अन्तमें इसप्रकार का गय है -"इदु श्रीमद्राजा- पंद्ररोजर और परिरायगंबरदावणि इम्मति भैरवराय। पिराज-राजकुलतिलकरामशिखामणि-भीम- इस पडिपोपपपुगवराधीश्वर एम्मरि भैरवरायने ई०