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________________ १६२ अनेकान्त कवि पेनुगोंडे देशके नन्दिपुरका रहने वाला था । पिताका नाम गुण मरणम्मबणजिगसेट्ठि और माताका केचम्म था । भव्यजनों को धर्मकथा बांचकर उसका अर्थ समझानेवाला यह उपाध्याय था। छोटी उम्र में ही भारतीके प्रसादसे यह कवि हो गया और स्त्री-मोह में न पड़कर ५५ वर्षकी अवस्था तक ब्रह्मचारी रहा । इसके बाद पार्श्वनाथबस्ती में सेनगणके लक्ष्मीसेन सुनिसे इसने दीक्षा ली । पार्श्ववस्ती में दीक्षा लेने के कारण पार्श्ववके नामसे भी यह प्रसिद्ध है । सन् १६०६ में सनत्कुमार चरित की रचना करने वाले पायरण मुनि इससे जुदा हैं, क्योंकि वे श्रीरंगपट्टणके रहने वाले थे । २३ शृंगार कवि ( ल० १६०० ) इसका बनाया हुआ 'कर्णाटक- संजीवन' नामक कनड़ी भाषाका कोश है, जिसमें ३५ पद्य (वार्धिकषट्पदी) हैं। यह रसवालिगेप्रभु वोम्मरसका पुत्र था । इसके नामसे मालूम होता है कि उक्त कोशके सिवाय इसके और भी ग्रंथ होंगे। रत्नाकराधीश्वर - शतकके कर्ता हंसराजका भी उपनाम शृंगारकवि है, इससे यह शंका हो सकती है कि उसीने यह कोश बनाया होगा । परन्तु इस ग्रंथ में हंसराज का नाम ही कहीं नहीं आया है, इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि ये दोनों जुदा जुदा हैं। [वर्ष १, किरण ३ २५ ब्रह्म कवि 'ल० १६०० ) इसके बनाये हुए 'वज्रकुमारचरिते 'की एक ही अपूर्ण प्रति उपलब्ध हुई है जिसमें केवल तीन ही आ श्वास हैं । यह ग्रंथ सांगत्य छन्द में है और बीच बीच में कन्द वृत भी दिये हैं। इसमें लिखा है कि धर्मामृत की पद्धति का अनुसरण करके अपने पुत्र गुम्मा के लिए यह ग्रंथ रचा जाता है। प्रारंभ में शान्तिजिनकी स्तुति है और फिर चतुरंगुलचारण कोण्डकुन्द, गुणभद्र, चारूकीर्ति पण्डित, विद्यानन्द, लक्ष्मीसेन, काणुरगण के भानुमुनि, पाल्य कीर्ति और शान्तिकीर्ति की स्तुति की गई है। नयसेन, अभिनत्र पम्प, गुणवर्म, पोन्न, जन नामक कनड़ी कवियोंका भी स्मरण किया गया है । २४ शान्तरस (ल० १६०० ) इसका बनाया हुआ 'योगरत्नाकर' नामका ग्रंथ है, जिसमें योगके यम, नियमादि आठ अंगोंके अनुसार आठ अंगोंका निरूपण है और इसीलिए इसका नाम 'ग' भी है। इस ग्रंथसे कविसम्बन्धी और कोई भी परिचय प्राप्त नहीं हुआ । यह कुन्तल देशके पुरहरक्षेत्रपुरका रहने वाला था, चेन्न नृप जहाँ कि पाण्ड्यवंशके विरूप नृपका पुत्र राज्य करता था । इसके पिता का नाम नेमण्ण, माता का बोम्मरसि, पुत्र का गुम्मण, गुरुवा गुणभद्र और कुलदेवका शान्तिजिनेश था । २६ पायण मुनि (१६०६ ) इनका बनाया ' सनत्कुमार चरिते ' नामक कनड़ी ग्रंथ है जो सांगत्य छन्दमें लिखा गया है। यह श्रीरंगपट्टणके आदिजिनेशके चरणसामीप्यमें शक संवत् १५२८ में समाप्त हुआ है । २७ पंचवाण (१६१४ ) इसने 'भुजवलिचरिते' नामक प्रन्थ सांगत्य छन्दमें लिखा है, जिसमें २२ सन्धियाँ और २८१५ पथ हैं । * मिस्टर ई.पी. राइसने अपनी 'हिस्टरी माफ कनहीजलिटरेचर' में ब्रह्म कविके बनाए हुए एक 'जिनभारत' नामके ग्रन्थका भी उस किया है। सम्पादक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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