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________________ १४ अनकान्त [वर्ष १, किरण १ "मनुजमात्र को तुम अपनाओ, हर सबके दुख-क्लेश । कुछ पुरानी गड़बड़, अर्थ समझांकी गलगी अथवा असद्भाव रक्खो न किसीसे, हो अरिक्योंन विशेष ।।२।। कालगणनाकी भुल जान पड़ती है। यदि इस गड़बड़, वैरीका उद्धार श्रेष्ठ है, कीजे सविधि-विशेष । ग़लती अथवा भलका ठीक पता चल जाय तो समय वैर छुटे, उपजे मति जिससे, वही यन यत्नेश ॥३३॥ का निर्णय सहज हीमें हो सकता है और उससे बहुत घृणा पापसे हो, पापीसे नहीं कभी लव-लेश। काम निकल सकता है। क्योंकि महावीरके समयका • भूल सुझा कर प्रेममार्गसे, करी उस पुण्येश ॥४॥ प्रश्न जैन इतिहासके लिये ही नहीं किन्तु भारतके तज एकान्त-कदाग्रह-दुर्गुण, बनो उदार विशेप । इतिहास के लिये भी एक बड़े ही महत्वका प्रश्न है । रह प्रसन्नचित सदा, करो तम मनन तत्व-उपदेश ।।। इसीसे अनेक विद्वानोंने उसको हल करनेके लिये बहत जीतो राग-द्वेष-भय-इन्द्रिय-मोह-कपाय अशेष । परिश्रम किया है और उससे कितनी ही नई नई बातें धराधैर्य, समचित्तरहो, औ' सुख-दुःखमें सविशेष ॥६॥ प्रकाशमें आई हैं । परन्तु फिर भी, इस विषयमें, उन्हें 'वीर' उपासक बनो मत्यक, तज मिथ्याऽभिनिवेश। जैमी चाहिये वैसी सफलता नहीं मिली-बल्कि कुछ विपदाओंसे मत घबराश्री, धरी न कापावेश ॥७॥ नई उलझनें भी पैदा हो गई हैं और इस लिये यह संज्ञानी-संदृष्टि बना, औ' ती भाव संक्लेश । प्रश्न अभीतक बराबर विचारके लिये चला ही जाता सदाचार पालो दृढ होकर, रहे प्रमाद न लेश सा है। मेरी इच्छा थी कि मैं इस विषयमें कुछ गहरा सादा रहनसहन-भोजन हो, सादा भूपावेष । उतरकर परी तफसील के साथ एक विस्तृत लेख लिखू विश्व-प्रेम जागृत कर उरमें, करो कर्म निःशेष।।९। परन्तु समयकी कमी श्रादिकं कारण वैसा न करके हो सबका कल्याण, भावना एमी रहे हमेश । मंक्षेपमें ही, अपनी खोजका एक मार भाग पाठकों के दया-लोकमेवा-रत चित हो, और न कुछ आदेश ।।"१० सामने रखता हूँ। श्राशा है कि सहृदय पाठक इस पर यही है महावीर सन्देश । म ही, उस गड़बड़, ग़लती अथवा भूलको मालूम महावीरका समय करके, समयका ठीक निर्णय करनेमें समर्थ हो सकेंगे। अब देखना यहहै कि भगवान महावीरको अवतार ___ आजकल जो वीर-निर्वाण-संवन् प्रचलित है और लिये कितने वर्ष हुए हैं । महावीरकी आयु कुछ कम कार्तिक शुक्ला प्रतिपदासे प्रारम्भ होता है वह २४५६ ७२ वर्षकी-७१ वर्ष, ६ मास, २८ दिनकी-थी । वर्तमान है। इस संवत्का एक आधार 'त्रिलोकसार' यदि महावीर का निर्वाण-समय ठीक मालूम हो तो की निम्न गाथा है, जो श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का बनाया उनके अवतार ममयको अथवा जयन्तीके अवसरोंपर - उनकी वर्षगांठ-संख्याको सूचित करनेमें कुछ भी देर पणछस्सयवस्सं पणन लगे । परन्तु निर्वाण-समय अर्सेसे विवादग्रस्त चल मासज गमिय वीरणिव्वादो। रहा है-प्रचलित वीरनिर्वाण संवत् पर आपत्ति की जाती है-कितने ही देशी विदेशी विद्वानोंका उसके । विषयमें मतभेद है और उसका कारण साहित्यकी चदणवतियमडियसगमास || ८५० ॥ ग्राk: ६०५ R
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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