SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ अनेकान्त उत्तेजित होकर राजाने शकटाल मुनिको घातकसे मरवाडाला । घातकको आता देख कर ही शकटालने संन्यास ले लिया था । यह तीसरी कथा भगवती धारा धनाके उक्त उदाहरणके बहुत कुछ अनुरूप तो है; परन्तु शस्त्रप्रहरणका इसमें भी कोई उल्लेख नहीं है । कथाओं की यह विषमता चिन्तनीय है । | गोठे पाउदा गोव्बरे पलिविदम्पि तो चाणक्को पडिवरलो उत्तमं श्रहं ।। १५५६ अर्थात् - गोष्ट (गोशाला ) में सुबन्धु ने भाग लगा दी, उसके भीतर जलते हुए चाणक्यने उत्तम स्थान प्राप्त किया । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आर्य 'चाक्य' और 'सुबन्धु' दोनों ऐतिहासिक व्यक्ति हैं और आराधना कथाको में चाणक्य मुनिकी जो कथा है, उससे भी मालूम होता है कि यह चाणक्य नन्दवंशो छेदक से भिन्न कोई दूसरे नहीं हैं। 1 मोदरिए घोराए भद्दवाहू असं किलिहमदी । घोराए विगिछाए पडिवो उत्तमं ठाणं ।। १५४४ अर्थात् - घोर अवमोदर्य से - अल्प भोजन के कष्टसे - भद्रबाहु मुनि घबराए नहीं। उन्होंने संक्लेशरहित बुद्धि रखकर उत्तम स्थानको प्राप्त किया । [ वर्ष १, किरण ३ पृष्ठ १६३ में ४२७ नम्बर की गाथाकी टीका करते हुए लिखा है -" इनका विशेष बहुज्ञानी होइ सो आगम के अनुसार जारिण विशेष निश्चय करो । बहुरि इस ग्रंथ की टीका का कर्ता श्वेताम्बर है । इस ही गाथा में वस्त्र पात्र कम्बलादि पोषै है कहै है तातें प्रमाणरूप नाहीं है सो बहुज्ञानी विचारि शुद्ध सर्वज्ञ की श्राज्ञा के अनुकूल श्रद्धान करो।” इससे बहुत से स्वाध्याय करने वालों का यह विश्वास हो गया है कि भगवती आराधना पर दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वानोंकी बनाई हुई कोई संस्कृत टीका नहीं है। केवल एक संस्कृत टीका है, जिसके कर्ता कोई श्वेताम्बराचार्य हैं। परन्तु पाठक यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि इस ग्रंथ पर एक नहीं चार चार संस्कृत टीकाएँ दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वानों की बनाई हुई हैं और वे प्रायः सभी पं० सदासुखजी के निवासस्थान जयपुरमें उपलब्ध थीं । उन चारों टीकाओं के नाम ये हैं—१ विनयोदया, २ मूलाराधनादर्पण, ३ राधापञ्जिका, और ४ भावार्थदीपिका । श्रागे क्रम से इन चारों का संक्षिप्त परिचय दिया जाता हैअगले में समाप्य ) तब पाठक देखेंगे कि भद्रबाहूकी अन्य प्रचलित कथाओं में [ले० – श्रीकेदारनाथ मिश्र 'प्रभात' बी. ए. विद्यालङ्कार ] उनके इस ऊनोदर कष्टके सहन करनेका कोई उल्लेख नहीं है । विस्तारभयसे अन्य उदाहरणों को छोड़ दिया जाता है । SARAHT आराधना की टीकाएँ भगवती आराधना की पं० सदासुखजी काशलीबाल कृत भाषाबचनिका मुद्रित हो चुकी है। उसके * माराधनाकपा कोशमें भगवती माराधना के उदाहरणोंका जो विस्तार है, वह कुछ शिथिल और अद्भुत सा है। इस कथार्मे लिखा है कि, मागास्य नन्वराजाको मार कर स्वयं राजा बन गया था ! जब इस तिमिरावृत कुटीर में आह, प्रदीप जला लूँगा; धूल झाड़ कोने-कोने की जब मैं इसे सजा लूँगा । जब वीणा के छेदों में भर लूँगा स्वागत-गीत उदार; कर लूँगा तैयार गूंथ कर जब मैं अश्रु-कुसुम का हार । X X X भेजूँगा तब मौन निमन्त्रण हे अनन्त ! तू आ जाना; मेरे डर में अपना अविनश्वर प्रकाश फैला जाना ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy