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माघ, वीर नि०सं०२४५६] भगवती आराधना और उसकी टीकाएँ
१५१ बाद पक्षी चौपाए आदि क्षपकके शरीरके टुकड़े जिस पुरुष हैं। भगवती आराधना की रचना इनसे पीछे दिशा को लेगये हों, उस दिशा में क्षेम और सुभिक्ष अवश्य हुई है ।। जान कर समस्त संघ विहार कर जाय।
शकटाल मुनिकी कथा हमने तीन ग्रंथों में जहाँ तक हम जानते हैं, बहुत कम लोगों को यह तीन प्रकारकी देखी है। पुण्यास्रव कथाकोशमें (नन्दिमालम होगा कि पारसियोंके समान जैन साधओं का मित्रकी कथामें ) लिखा है कि शकटाल नन्द राजाका शरीर भी पूर्व कालमें खली जगह में छोड़ दिया जाता मंत्री था । शत्रुके चढ़ पाने पर उसने खजानेकी बहुत था और उसे पशु पक्षी भक्षण कर जाते थे। वास्तवमें सी दौलत देकर उसे लौटा दिया, इसपर राजाने उमे सर्वथा स्वावलम्बशील साधुसमुदायके लिए जो सपरिवार कैद कर दिया। परिवारके सब लोग बड़ी जनहीन जंगल-पहाड़ोंके रास्ते हजारों कोस विहार बरी तरह से मर गये, परन्तु शकटाल जीता रहा । पीछे करता था इसके सिवाय और विधि हो ही नहीं जरूरत पड़ने पर राजाने उसे फिर मंत्री बना लिया। सकती थी। श्वेताम्बरसम्प्रदाय के विद्वानोंसे मालूम मंत्री बनकर उसने अपना वैर लिया । और चाणक्य हुश्रा कि उनके प्रन्थों में भी मुनियोंके शवसंस्कार की को कुपित करके उसके द्वारा नन्दवंशका नाश करा पुरातन विधि यही है।
दिया। परन्तु इसमें शकटालके मुनि होने या संन्यास ___इस प्रन्थके कई प्रकरणों में कुछ ऐसे उदाहरण लेने आदि का कोई उल्लेख नहीं है । प्राचार्य हेमचंद्रके दिये हैं जिन में से अनेक ऐतिहासिक जान पड़त परिशिष्ट पर्व' में (स्थूलभद्रकथांतर्गत)शकटालको स्थलहैं । उनकी छानबीनहोनी चाहिए । ब्रह्मचर्यके प्रकरण भद्रका पिता बतलाया है। वररुचिन चुगली खाकर में नीचे लिखी गाथा है:
राजा नन्दको यह विश्वास करा दिया कि शकटाल सगडो हु जइणिगाए संसग्गीए दु चरणपन्भहो। राजाको मारकर अपने पुत्रको गद्दीपर बिठाना चाहता गणियासंसग्गीए य कूपचारो तहा णडो॥११॥ है। शकटालने यह सोचकर कि राजा मेरे वंश भरको
अर्थात् सकट नाम का मुनि जयिणिका ब्राह्मणी नष्ट करदेगा, अपने छोटे पुत्र श्रीयकको समझा बुझा के संसर्गसे चारित्रभ्रष्ट होगया और गणिका मर्ग कर इस बातके लिए राजी कर लिया कि राजाको से कृपचार नष्ट हो गया।
नमस्कार करते समय वह अपनेापिताका सिर काट ले
र पुत्रने लाचारीसे ऐसा ही किया और शकटालका प्रायोपगमन संन्यासके उदाहरण देते हुए कहा है
प्राणान्त होगया। तीसरे ग्रंथ 'आराधनाकथाकोश' में सगडालरण वितहासत्था गहणेण साघिदो भत्थो लिखा है कि शकटाल और वररुचि दोनों नन्द राजा. वररुइपभोगहे, रुठे णंदे महापउमे ॥ २०७२॥ मंत्री थे। दोनों एक दूसरेसे विरुद्ध रहते थे। महापन
अर्थात्-चररुचिके प्रयोगसे जब महापन नामका मुनिके उपदेशसे शकटालनं जिनदीक्षा ले ली । नन्द राजा रुष्ट हो गया, तब शकटाल मंत्री ने शम्न- बहुत समयके बाद शकटालमुनि विहार करते हुए फिर . महण करके अपने आराधना रूप अर्थको साधा। पटनामें पाये । उन्होंने राजान्तःपुरमें बाहार लिया ।
वररुचि,शकटाल और महापद्म ये सबऐतिहासिक इस पर वररुचिने शत्रुता वश चुगली खाई और उससे