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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३
महाराजा खारवेलसिरिके शिलालेखकी
१४ वीं पंक्ति
[ लेखक-श्री- मुनि पुण्यविजयजी]
मान्य विद्वन्महादय श्रीयत काशीप्रसाद जायस- है* इसके बदलेमें उपरि निर्दिष्ट अंशकी छाया और वाल महाशय ने कलिंगचक्रवर्ती महाराज खारवेल के इसका अर्थ इस प्रकार करना अधिकतर उचित होगाशिलालेखका वाचन, छाया और अर्थ श्रादि बड़ी छाया-कायनषेधिक्या यापनीयकेभ्यःयोग्यता के साथ किया है । तथापि उस शिलालेख में यापनीयेभ्यः। अद्यापि ऐसे अनेक स्थान हैं जो अर्थकी अपेक्षा शंकित
अर्थ-(केवल मन और वचन से ही नहीं बल्कि) हैं ।आजके इस लेखमें उक्त शिलालेखकी १४वीं पंक्ति
" काया के द्वारा प्राणातिपातादि अशुभ क्रियाओं की के एक अंश पर कुछ स्पष्टीकरण करनेका इरादा है।
.' निवृत्ति द्वारा (धर्मका) निर्वाह करने वालों के लिये । वह अंश इस प्रकार है___ "अरहयते पखीनसंसितेहि कायनिसीटी- यहाँपर "कायनिसीदीयाय यापनावकेहि" याय यापजावकेहि राजभितिनि चिनवतानि
- अंशका जो अर्थ किया गया है वह ठीक है या नहीं ?
इस अर्थ के लिये कुछ आधार है या नहीं ? , उक्त वासा सितानि "
शिलालेखके अंश के साथ पूर्णतया या अंशतः तुलना ऊपर जो अंश उद्धृत किया गयाहै इसमेंम सिर्फ
की जाय ऐम शास्त्रीय पाठ जैनग्रन्थों में पाये जाते जिसके नीचे लाइन की गई है इसके विषय में ही इम
हैं या नहीं ? उक्तशिलालेखका सम्बन्ध दिगम्बर जैन लेखमें विचार करना है।
सम्प्रदायसे है या श्वेताम्बर जैनसम्प्रदायसे है? इत्यादि श्रीमान जायमवाल महाशयन इस अंशकालिका निर्णय करने में सगमता होनेके लिये जैनप्रन्थों "कायनिषाद्या यापज्ञापकेभ्यः" ऐसी.संस्कृत छाया के पाठ क्रमशः उद्धृत किये जाते हैंकरकं "कायनिषीदी" (स्तुप) पर (रहनेवालों) पापx श्वेताम्बर जैनसम्प्रदायके साधुगणको प्रति दिन बताने वालों (पापज्ञापकों), के लिये ऐसा जो अर्थ किया श्रावश्यक क्रियारूपमें काम आने वाले 'षड्विधा
* अर्थकी अपेक्षा ही नहीं किन्तु शब्द-साहित्यकी अपेक्षा भी वश्यकसूत्र' के तीसरे 'वन्दणय' (सं० वंदन) नामक प्रभी शक्ति हैं । प्रकृत पंक्तिका पाठादिक भी पहले कुछ प्रकट आवश्यक सत्र में निम्न लिखित पाठ हैकिया गया था और पीछेसे कुछ, और इसलिये उसकी विशिष्ट जांच होनेकी जरूरत है।
-सम्पादक
* ठेखो, नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ८ प्रा३. ___x नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग १० मा ३ में "जो कदा- xमास्य कविहं पगणत, तंजहा—सामाइयं चउवीसत्यमो कित 'यापज्ञापक' कहलात थे।" ऐसा भी लिखा है।
वंदनाय पडिलमग काउस्सगो पचक्खागां । कदीमुतं ।