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________________ माघ, वीर नि०सं०२४५६] महाराजा खारवेलसिरिक शिलालेखकी १४ वी पंक्ति १४६ इच्छामि खमासमणो . वंदिउं जावणिज्जा- निमोहियाए मत्थरण वंदामि ." खमासमणसुत्।। ए निसीहियाएअणुजाणह मे मिउग्गाहं निसीहि । इन उद्धृत पाठोंमें कायनिमीठीयाय यापनावxxx जचा में जवणिज्जं च भे .. केहि " अंश से पूर्णतया और अंशतः तुलना की जाय मान्य आचार्य श्रीजिनदासगणि महत्तरने और एस ऐसा दोनों प्रकार का उल्लेख्य है। याकिनीमहत्तरासन श्रीहरिभद्राचार्य ने 'पविध विवाहपगणती' (मंन्याख्याप्रज्ञप्ति दमरा नाम आवश्यकसूत्र' की चूर्णी और टीका में इस मूत्र पर भगवती सूत्र ) और 'नायाधम्मकहानी' ( मं० ज्ञाताअतिविस्तृत व्याख्या की है, जिन में से उपयोगी अंश धर्मकथाः) श्रादि जैन आगम प्रन्याम “यापनावकेहि" अंशके साथ तुलना की जाय ऐमा पाठ और साथ में यहाँ पर उद्धृत किया जाता है - "चूर्णी-जावणिज्जाए निसीहियाए । इसका अर्थ भी मिलता है । जो इस प्रकार है “वाणियगामे नामं नगरे x x x सोयावणी यानामना केणति पयोगेण कज्जसमत्या, मिले नामं माहणे x x x समणं भगवं जा पुण पयोगेण वि न समन्था सा अजावणीया, महावीरं एवं बयासी-जत्ता ते भंते ! १ जबताए जावणिज्जाए । काए ? निसीहियाए , 'णिज्ज ते भंते ! १ अन्याबाई पि ते? फासुयनिसीहि नाम सरीरगं वसही थंडिलं च भएणति, ' विहारं ते १ सामिला ! जत्ता वि मे, जबणिज्ज जतो निसीहिता नाम प्रालयो वसही थंडिल च, पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फायविहारं पि मे । सरीरं जीवस्स प्रालयो ति, तथा पडिसिद्धनिसेवणनियत्तस्स किरिया निसीहिया, ताप" xxx कि ते भंते ? जवणिज्नं सांमिला। " जाणज्नं दुविहे पएणत्ते, नं जहा--इंदियजआवश्यक ची उत्तरभाग पत्र ४६ ।। . वणिज्जे य नो इंदियजवणिज्जे य । सं किं तं टीका -या प्रापणे, अस्य एयन्तस्य कर्त्त- इंदियजवणिज्ने ? सोमिला ! जं मे सोइन्दिय र्यनीयच, यापयतीति यापनीया तया । पिधु चविखंदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियाइनिगत्याम्, अस्य निपूर्वम्य पनि निषेधनं निपधः वहयाई वमे वटंति से तं इन्दियजवणिज्जे । निषेधेन निर्व त्ता नैपधिकी, प्राकृनशैन्या छान्द- से किं तं नाइन्दियजवणिज्जे ? सोमिला ! जं सत्वाद्वा 'नैधिका' इत्युच्यते ।x x x याप- पं कांहमाणमायालोमा वोच्छिन्ना नो उदोरेंनि नीयया' यथाशक्तियुक्तया 'नषेधिक्या' प्राणाति- से तं नाइन्दिय जवणिज्ने । सेत्तंजवणिज्ने । पातादिनिवृत्तया तन्वाशरीरेणेत्यर्थः ॥ xxx -भगवतीसत्र सटीक पत्र ७५७-५८ ।। यापनीयं चन्द्रिय नोइन्द्रियोपशमादिना प्रकारेण यह उपर्युक्त पाठ ही अक्षरशः 'नायाधम्मकहानो' '' भवताम् १शरीरमिति गम्यते॥" आदि जैनागमोंमें नज़र आता है। फर्क मात्र इतना है -आवश्यक हारिभद्री टीका पत्र ५४६-४७॥ कि-भगवतीसत्र में सोमिलनामका ब्राह्मण श्रमण "इच्छामिखमासमणोविंदिउंजावणिज्जाए भगवान महावीरको ये प्रश्न पूछना है तब 'झानाधर्म
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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