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________________ पौष, वीर नि०सं०२४५६] अनेकान्त पर लोकमत १२५ बातकी सख्त जरूरत है कि जैनधर्मसम्बन्धी ऐति- इस विषयको इतने पाण्डित्यमे लिग्या है ...... । हासिक और दार्शनिक प्रश्नोंको हल करनेके लिये मेरी ममझमें आप पत्रको मचित्र बनाने के लालचमें एक पत्र प्रकट हो । मुझे आशा तथा विश्वास है. . न पड़ें। इसमें खर्च बहुत होता है और लाभ कम । कि 'अनेकान्त' इस ज़रूरतको शीघ्र पुरा करेगा"। ......समग्र अंक भारी गम्भीर लेखोंमे भग है। ४ महर्षि शिवव्रतलालना वर्मन एम० ए०- ...... नीच और अकृत नामक कविता बहुत "अनेकान्त” नामी रिसालेके पहले नम्बरमें महा- सुन्दर है । अंककी छपाई अच्छी हुई है, संशोधन वीरचरित्रका मुख्तसिर खाका बहुत अच्छा खींचा भी उत्तम हुआ है। मिलाई बहुत ही रही है। " गया है । ला० जुगलकिशोर साहव मुख्तार बहुत ___"आपका वीर निर्वाण संवन वाला ( महावीर का क़ाबिल और वाकिफकार श्रादमीमालूम होते हैं। समय) लेख पीछे पढ़ा वह बहुत ही महत्वका है। यह जैनधर्मका सबसे ज्यादा फहमी रिसाला नज़र और उमसे अनेक उलझनें सुलझ गई हैं।" आ रहा है । उनको मुबारिकबाद! महावीर स्वामी ८ बा ज्योतिप्रसादनी स जैनप्रदीप,देवबन्दकी तसवीर निहायत खूबसूरत दी गई है।...... "लेख बहुत ही मचिकर और लाभदायक है । श्री मैं इसे फ्रेम लगा कर लायब्रेरीमें नाजीम और वीर भगवानके विषयमें जो आपका लेख है वह शौक़के माथ रखलंगा । तस्वीर फर्जी है लेकिन अत्युत्तम है, बड़ी खोजके साथ लिग्वा गया है। फिर भी बहुत अच्छी है । बच्चे की तरह मासूमियत मेरी हार्दिक भावना है कि 'अनकान्त' अपनी टपक रही है " तंजस्वी किरणोंमे स्याद्वादका प्रकाश मंसारमें ५ श्रीकेदारनाथ मिश्र प्रभात'वो.ए.विद्यालंकार ___ फैलावे, जिससे मनुष्योंक हृदयसे मिथ्यात रूपी "पत्रिका बड़ी सुन्दर है । मैं आपके प्रयासकी अंधेरा दूर हो जाय ।" प्रशंसा करता हूँ। ईश्वर आपको सफलता दे यही ह बा० जमनाप्रसादजी एम. ए., एम. आर. कामना है”। ए. एस.,एलएल.बी., सबजज नरसिंहपुर६ श्री०आर.वेंकटाचल आइयर, थिकन्नमंगल -- "आपके अनकान्त' पत्रको देख कर हृदय गद्गद 'अनेकान्त' मिला । उसके अवलोकनसे मेरी हुआ व प्राचीन जैनसाहित्यसंशोधक व बादके जिज्ञासा पूर्वाधिक प्रबल होती जारही है । ..... जैनहितेपीका स्मरण हो आया । आपका प्रयत्न श्रापका लेख 'भगवान महावीर और उनका समय' म्तुत्य है । वास्तवमें समन्तभद्राश्रम सरीखी पवित्र मैंने पढ़ा, उसके अन्तर्गत 'महावीर-सन्देश' __मंस्थाकी उद्देश्यपर्तिकं लिए 'अनेकान्त' अमाघकविताका मैंने मनन किया । उसने मेरे मनमें वाणकी ही आवश्यकता थी। गम्भीरतम भावांको जागृत किया है।" १० बा० भगवानदासजी एम. ए.. चुनार-- ७ पं. नाथरामजी प्रेमी, बम्बई "अनेकान्तका १ अंक मिला । श्रीसुखलालजीका “पण्डित सुखलालजीका लेख इस अंकमें सर्वोपरि 'अनेकान्तवादकी मर्यादा' और आपके भगवान है। मुझे स्मरण नहीं कि किसी भी जैनविद्वान ने महावीर और उनका समय' के लेख पढ़ कर मैं
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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