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अनकान्त
[वर्ष १, किरण २
'अनेकान्त' पर लोकमत
TE VISA
'अनकान्त' पत्र यद्यपि अभी बहुत ही शैशवावस्था समय' खोजपूर्ण है । इसमें का 'जिनदीक्षा' चित्र में है-अनेक त्रुटियोंसे पूर्ण है-फिरभी उसकी पहली भी सुरचिका द्योतक है। श्राशा हैयह पत्र सुयोग्य किरणको पाकर जिन जैन-अजैन विद्वानों, प्रतिष्ठित सम्पादक के तत्वावधानमें उत्तरोत्तर वृद्धि करता पुरुपों, तथा अन्य सज्जनोंने उसका हृदय से म्वागत रहेगा।" किया है और उसके विपयमें अपनी शुभ सम्मतियाँ ३ मिचिन्ताहरण चक्रवति, एम.ए. कलकत्तातथा ऊँची भावनाएँ आश्रमको भेजनेकी कृपा I have very great pleasure in going करके संचालकोंके उत्साहको बढ़ाया है उनमेंसे through the tirst issueof the Anekant,कुछ सज्जनोंके विचार तथा हृदयोद
the organ of the Samantbhadrasham
The Scheme laid down by the editor is a अवलोकनार्थ नीचे प्रकट किये जाते हैं:
very commendable one. I should expect
that it will not be long dulore it is fully 'अनकांत'गहरी छाप जमानेवाला पत्र जान पड़ताहै। carried into effect. Most of the journals जैनधर्मावलम्बियोंके लियेतो वह अत्यन्त उपयोगी of the Jains at present deal with social है। प्रथम किरणके लेख वडीखोज और विद्वत्ताके
controversy and there is an urgent need
for the appearance of a journal dealing माथ लिग्वे गये हैं और गहन विषय भी मंक्षिप्त
with historical and philosophical probरूपमें ऐमी यक्तिम समझाये गये हैं कि मनमें
lems connected with Jainism. I hope वाच्छनीय प्रभाव पड़ता है । पत्र होनहार है। and beleive that the Anekant in no tinue उसकी सज धज सुन्दर, चित्र भव्य व पत्र चीकने will go to supply this need. हैं, सो ठीक ही है:- "होनहार शुभ पत्रके होत अर्थात्-मुझे समन्तभद्राश्रमके पत्र 'अनेकान्त' चीकने पात।"
के प्रथम अंकको पढ़ कर बहुत बड़ी प्रसन्नता (२) साहिन्याचार्य पं० विश्वेश्वरनाथजी रेऊ- हुई । सम्पादकन जो स्कीम प्रस्तुत की है वह
"इस अंककी सजावट और सामग्रीको देख कर अत्यंत प्रशंसनीय है। मैं आशा करता हूँ कि यह पत्रका भाविष्य उज्वल प्रतीत होता है । इसके बिना किसी बिलम्बके पूरे तौरसे कार्य में परिणत मब ही लेख उपयोगी और सुन्दर हैं । पहला की जायगी । जैनियोंके बहुतसे पत्र आज कल सम्पादकीय लेख 'भगवान महावीर और उनका मामाजिक वादविवादको लिये हुए हैं और इस.