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________________ पौष, वीरनिम्म०२४५६] तीर्थकरोंके चिन्होंका रहस्य इम मम्बंधमें मैं इनना और बतला देना चाहता हूँ कि वर्णन करते हुए इस स्थानपर 'शल्य चिन्हका ही उल्लेख तीर्थकगेंके मब चिन्ह वे ही नहीं हैं जो इस लेखमें किया है। यथाःदिये हैं किन्तु कोई कोई उनसे भिन्न भी पाए जाते गोर्गजोऽश्वः कपिः कोकः सरोज स्वस्तिकं शशी। हैं जिसके कारण को खोजनेकी ज़रूरत है-जैमा मकरः श्रीयतो वृक्षो गण्डो महिपशकरी ॥ कि निम्न वाक्य से प्रकट है: शल्यवज्रमगाश्छागः मत्म्यः कुंभोऽथकच्छपः । गोर्गजोऽश्वः कपिः कोकःसगेज स्वस्तिकं शशी। उत्पलं शंखसपो म्यः सिंहम्तीर्थकना ध्वजाः ॥ कटकस्य कास्यो?) द्रुमो गण्डो महिपो वनश्करः।। यहाँ तीर्थकगेकी ध्वजाओंके चिन्हभी वही होनम ऋक्षो वज्रो मगश्छागो पेपः कलशकच्छापो। जाकि उनकी प्रतिमाओंके आसनों पर दिये होते हैं उत्पलं शंखनागेन्द्रो केमरी जिनलांछनम् ॥ प्रकृत विषय पर प्रकाशकी एक अच्छी रेग्या पड़ती है। __ ये वाक्य 'मिद्धान्तरमायनकल्प' नामके एक तीर्थकर चूंकि गजा थे नब उनकी ध्वजाांक खाम ग्रंथमें दिये हुए हैं जो कि बम्बई लक पन्नालालजी के खाम चिन्ह होने ही चाहिये । बहुन मंभव है कि उनकी सरस्वती भवनमें मौजूद है। इसमें मुमति का चिन्ह ध्वजायोंके वे चिन्हही मूर्तियोंक निर्माणकं समय कोक, अनन्त का रीछ और अग्नाथ का मेप (मेंढा) पहचान के लिये उनके आसनोंपर उस वक्तम दिये दिया है। और कोकका अर्थ भेड़िया, चकवा तथा जाने लगे हो जबम कि अलग अलग तीर्थकरकी मनि मेंडक होता है। मालूम नहीं यहां इनमेंसे किमका बनानेकी भेदकल्पना प्रबल हो उठी हा; और उममे पहले ग्रहण है। परंतु यह स्पष्ट है कि इन तीनों तीर्थकगेंके की या बिना चिन्हकी जो मतियाँ होवे ग्वालिम बहनकी चिन्ह उक्त लेखके कथनम भिन्न पाये जाते हैं। मतियाँ हों-किसी तीर्थकर विशेपकी नहीं । जहाँनक में वसुनन्दी आचार्यनभी अपने प्रतिष्ठापाठमें मुमतिनाथ- ममझनाहूं इम मंभावना और कल्पनामें बहुत कुछ प्राग का चिन्ह 'कोक' दिया है-चातक या हम नहीं। जान पड़ता है। बाकी पण्डिनोंके जिम उत्तरकी बानका यथाः उल्लेव लग्यक महाशयने किया है. उममें तो कुछ भी गोगजोऽश्वः कपिः कोकःसरोजं स्वस्तिकं शशी। प्राण मालूम नहीं होता-न ना उममें प्राकृनिकताका मकरः श्रीयतो वृक्षो गण्डो महिपशकगे। दर्शन है और न प्राचीन माहित्य परमही उमका कहीं कुछ ममर्थन होता है। अतः जबतक किमी विशेष शेधी वनं मगश्छागः पाठीनः कलशस्तथा। रहस्यका उद्घाटन न हो तब नकमरी रायमें, यह मानना कच्छपश्चोत्पलं शंखो नागराजश्च कसरी ॥ ज्यादा अच्छा होगा कि ये चिन्ह तीर्थकगंकी ध्वजाइसमें अनन्त का चिन्ह 'शेध' बतलाया है परन्तु परन्तु ओंके चिन्ह हैं । और शायद इमीम मूर्तिक किमी अंग शेधका कल अर्थ ठीक नहीं बैठता। हो सकता है कि, परन दिय जाकर श्रासन पर दिये जाते है। यह रीछका वाचक 'ऋक्षो' पाठही हो अथवा भालेका वाचक 'शल्यो' पाठ हो, क्योंकि 'पूजासार ममुच्चय' नामक ग्रंथमें २४ तीर्थकरोंकी ध्वजाओंके चिन्होंका
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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