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________________ 2િ દિશાબોધસ્માદિ કાકીકુછ સમીક્ષા नशासन (184 ) *वर्थ १3 * ४२६/२७ * ता. २७-२-२०११ १ 2 असीम गुणों क सर्वग्राही परिचय शब्दों में दे सकना तो कठिन ही । उत्पन्न होता है और उत्पन्न हुए ये जीव संभोगावस्था में पुरुषचिन्ह से र है। जहाँ नारी वा नरक मार्ग की निःश्रेणी, पापों की खान, अपवित्र | पीड़ित हुए, रुई से भरी नली में जैसे तपाये हुए लोहे के प्रवेश से से 51 और विषय वल्ली, मोहलता, इत्यादि कहकर कोसा गया है वहीं इस रुई जल जाती है वैसे, वे जीव मर जाते हैं इस तरह अनेक जीवों के स्पष्टीकरण की आवश्यकता है कि ये सब विशेषण मनुष्य की नाशक मैथुन में अहिंसाधर्म का रक्षण शक्य ही कैसे हो? स्वभाविक दुर्बलता और आत्म पराजय के ही मुखरघोष है। जिस कीचड में पैदा होने वाला कमल सिर पर चढ़ाया जाता है IC पुरुष वर्ग शास्त्र कार ने नारी के प्रति कठोर शब्दावली का प्रयोग वैसे जैन कर्म रुपी कीचड से पैदा होता है और कर्मरुपी कीचड से दूर किया है, वह पुष वर्ग दोषयुक्त है। रहकर साधु बनता है। कीचड में कमल को रखा जाए तो कमल की है मुनि विद्यानन्द क्या हालत होगी ? व्यभिचार से (पति से सिवाय अन्य के संभोग समीक्षा : से) पैदा होने वाला पुत्र कोई दोषी नहीं है। यह बेचारे हर्षवर्धन को “स्त्री पुष का यह मिलन धार्मिक कृत्य हैं" ऐसा कहने ज्ञान कहा से हो? वाले हर्षवर्धन म मूर्ख नहीं है क्या? और अपने आगे जैन' लिखता प्रश्न - सभी ब्रह्मचारी बन जायेंगे तो संसार कैसे चलेगा? । है। जैन यानी दिनेश्वर देव की आज्ञा को पाले, वह जैन । जैन शब्द उत्तर- यह प्रश्न ही मूल् का है। साधु चोरी नहीं करने का उपदेश 55 के साथ भी व्या चार कर रहा है। इसने जैन से इस्तिफा जाहिर किया देते हैं। कोई पुलिस साधु पर कोर्ट में केस करे कि ये साधु चोरी नहीं हस 1? होता तो ईमानद र तो कहते। क्या हर्षवर्धन बेईमान नहीं है ? मैथुन | करने का उपदेश देकर हमारे पेट पर पाट्र लगा रहे हैं। सब चोरी बन्द को श्री जिनेश्वर ने पाप बताया है और ब्रह्मचर्य को धर्म बताया है। कर देंगे तो हमारा पेट कैसे भरेगा? इस प्रकार केस करे तो न्यायाधश क्या जिनेश्वर देव आत्म-पराजित थे क्या ? मुनि विद्यानंदजी भी को कहना पड़ेगा कि चोर जिन्दे हैं इसलिए आपकी (पुलिस) की सोचे। काम नास्त्र के रचयिता वात्स्यायन लिखते जरुरत है परन्तु पुलिस की आजीविका के लिए चोरों को जिन्दामही (स हैं कि - रख सकते। रक्तजा: कृमप: सूक्ष्मा: मुदुमध्याधिशक्तयः । , “जिस पुरुष वर्ग शास्त्रकार ने नारी के प्रति कठोर शब्दावली जन्मवत सु कण्डूति, जायन्ति तथा विधाम् (७) का प्रयोग किया है, वह पुरुष वर्ग दोषयुक्त है।" अपनी तुच्छता का अर्थात् रक्त के उत्पन्न हुए सूक्ष्म कृमि, कि जो मृदुशक्ति आरोप शास्त्रकार पर मत स्खो। शस्त्रकारों ने वस्तुस्थिति ही बनाई 5 वाले हैं वे जन्म के मार्ग रुप योनियों में मृदु खुजली पैदा करते हैं, जो | है, किसी का भी पक्षपात नहीं किया। पुरुष को उद्विष्ट करके कहा र 7 मध्य शक्ति वाले हैं। वे मध्य खुजली उत्पन्न करते हैं और जो | इसलिए। नारी के लिए पुरुष भी जहर है। अधिक शक्ति पाले हैं वे अधिक खुजली पैदा करते हैं। स्त्री के समान अधिकार की बातें करने वाले "स्त्री भोग्यहि, श्री जैन शासन की स्थापना सर्वज्ञ करते हैं। श्री जिनेश्वर देव पुरुष भोग्य नहीं परन्तु भोक्ता है, स्त्री पाल्य है और पुरुष पालव है या 2 भी केवल ज्ञान पूर्व तीर्थ की स्थापना करते नहीं हैं। यानी राग, द्वेष | यानी कि रक्षक है ऐसा क्यों मानते हैं।” स्त्री को कमाने का कार्य (M और अज्ञान ये गेनों ही नष्ट होने से परम आप्तता को पाये हुए श्री सौपकर, स्वयं घर बैठने का क्यों नहीं स्वीकारते ? स्त्री अपने यहाँ जिनेश्वर देवों के वचन की प्रमाणिकता स्वत:, सिद्ध ही होती है। आती है, उसके बदले स्वयं घर क्यों नहीं जाते ? पुरुष ससुराल यानी इसमें असत्य के संभावना भी उन्हीं को होती है कि, जो मिथ्यात्व से | (स्त्री के घर) जाता है तो मान पान से गद्दी पर बैठता है और बी घिरे हुए हों। इस स्थान पर कामशास्त्र का प्रमाण दिया गया है, इसका आती है तब से ससुराल के घर का कार्य करती है, उसका क्या 5 अर्थ यह नहीं है है कि- योनि में जन्तु की विद्यमानता होने की बात | कारण है, स्त्री ही चूल्हे के पास बैठती है और पुरुष नहीं उसका यह वात्स्यायन के संवाद के अधीन है। परन्तु वात्स्यायन का वचन कारण :- आत्मा एक फिर भी यह पक्षपात क्यों ? इसका जवाब यहाँ इसीलिए दिया गया है कि - जिस को जिज्ञासु समझ सकेंगे बेचारे हर्षवर्धन के पास है क्या ? इसका कारण यह है कि ज्ञानी ने 65 कि- जो काम को ही प्रधान मानते हैं, वे भी योनियों में जीवों की विलक्षणता देखी है, इसीलिए पुरुष की प्रधानता कही है। अपने विद्यमानता है, 'म बात का अपलाप नहीं करते। शास्त्रकार श्रीजिनेश्वर देव को माने हैं, कोई रागी को नहीं माने, पान्तु मैथुन । अहिंसा का अभाव तो स्पष्ट है। अनन्त उपकारी वीतराग को माने हैं। वीतराग का आकार होता है परन्तु स्त्री या फुष फरमाते हैं कि- योनिरुप यन्त्र में अतिशय सूक्ष्म ऐसे जन्तु का समूह दोनों में से एक भी वेद नहीं होता। स्त्री अच्छी या पुरुष अच्छे ऐसा S SSSSSSS ४४33---------- --
SR No.537264
Book TitleJain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2000
Total Pages354
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size22 MB
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